अब का पोरा-जाँता जी ?

अब का पोरा जाँता जी?
ठाढे़ अँकाल के मारे,
होगेव चउदा बाँटा जी |
अब का पोरा जाँता जी।

सपना ल दर-दर जाँता म,
कब तक मन ल बाँधव ?
चांउर-दार पिसान नइहे,
का कलेवा राँधव ?
भभकत मँहगाई म,
अलथी कलथी भुंजात हौ |
भात- बासी ल तको,
चटनी कस खात हौ |
उबके हे लोर तन भर,
पड़े हे गाल म चाँटा जी….|
अब का पोरा जाँता जी….?

सिरतोन के बइला भूख मरे,
का जिनिस खवाहूं |
माटी के बइला बनाके,
अब का करम ठठाहूं |
किसान अउ गाय-गरूवा,
जघा-जघा कुटात हे |
सहर-नगर म कहॉ,
कोनो पोरा मनात हे ?
कइसे नाचे नंदियॉ बइला,
गड़गे गोड़ म काँटा जी…….|
अब का पोरा जाँता जी…….|

गांव के गरीब किसन्हा,
कब तक चिमोटे रिही |
जुग अउ समाज के संग,
बिधाता के जुलूम होते रिही|
अइसन जमाना म,
पोरा-जाँता नँदा झिन जाय |
बइला के जघा म किसन्हा,
फँदा झिन जाय |
हिरदे छर्री-दर्री होगे,
कोन लगाही टाँका जी……|
अब का पोरा-जाँता जी….?

जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया”
बाल्को(कोरबा)



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One Thought to “अब का पोरा-जाँता जी ?”

  1. bhahut badiya rachna.

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