चर डारिन गोल्लर मन धान के फोंक ।
हकाले म नइ मानय अब लाठी ठोंक ।।
जॉंगर चलय नही जुवारी कस जान ।
बिकास के नाम म भासन के छोंक ।।
भईंस बूड़े पगुरावय अजादी के तरिया ।
जिंहा बिलबिलावत हे अनलेखा जोंक ।।
खेत मन म लाहसे हे खेती मकान के ।
दलाल मन उड़वावत हे झोंक भाई झोंक ।।
सोन के चिरइया ल खावन दे खीर ।
बॉंचे खूंचे पद ल आरकछन म झोंक ।।
चिटिकन जघा नइहे धरे बर इमान के ।
भिथिया म कोनो मेर टॉंग खीला ठोंक ।।
का करबे कमाके सस्ता हे चॉंउर ।
घर म लड़ खेत बेंच दारू ल ढोंक ।।
इसकूल म पढ़बे त आगू बढ़बे नोनी ।
टठिया भर दारे भात झन झोंक ।।
भल के जबाना नइहे ऑंखी ल मूंद ले ।
बिजती सहि सकबे त कोनो ल टोंक ।।
धन वो दाई ददा जनमे रहिस नेता एक ।
अब तो कुकुर पीला होगे गली गली थोक थोक।।
मुरसेट के मार डारय मंहगाई भस्टाचार ।
तेकर पहिली कम से कम ताल ल तो ठोंक ।।
धर्मेन्द्र निर्मल
ग्राम पोस्ट कुरूद भिलाईनगर
जिला दुर्ग (छ.ग.) 490024
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2 Thoughts to “अब लाठी ठोंक”
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Adbad sughar rachana..
sirton kehech guruij fer “Nakta ke naak kate sawa hath badhe ,jag jasmmo nakta ma bharge sajjan kon mer thadhe”