पढ़ना लिखना छोड़ के, खेलत हे दिन रात ।
मोबाइल ला खोल के, करथे दिन भर बात ।।
आजकाल के लोग मन , खोलय रहिथे नेट ।
एके झन मुसकात हे , करत हवय जी चेट ।।
छेदावत हे कान ला , बाला ला लटकात ।
मटकत हावय खोर मा , नाक अपन कटवात ।।
मानय नइ जी बात ला , सबझन ला रोवात ।
नाटक करथे रोज के, आँसू ला बोहात ।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कवर्धा )
छत्तीसगढ़