Categories: कविता

आथे गोरसी के सुरता

पागा बांधे बुढ़गा बबा
पहिरे पछहत्ती चिथरा कुरता।
पियत चोंगी तापे खनीया
आथे गोरसी के सुरता॥
नंदागे गोरसी नंदागे चोंगी,
मन होगे बिमार तन होगे रोगी
बदल गे दुनिया बदल गे बार
बदल गे बखरी बदल गे खार।
नंदागे जाड़ ठंडा
नंदागे तपई बरई भुर्री
नंदागे झिटी बिनय काड़ी।
नंदागे भइंसा बैला गाडी॥
अब्बड़ दूर चल दीस गांव
बिसरागे हमर आजा पुरखा
नइए चिमनी दीया के दिन
आथे गोरसी के सुरता।
धरे बइठे भिंसरहा बबा
तापत गोरसी बियारा धान
सुरता आथे बिसरे गोठ
होगे अब अंधयारी रात॥
सुखागे नंदिया नरवा
टूटगे पियार परवा।
बिसरागे पुरवा के बिहाव
आगे सरकारी मड़वा॥
पानी के दिन बादर भागे
जाड़ के दिन गर्मी लागे
जरोटा मेमरी ल भेड़ी खागे
गोरसी के बदला कम्बल जाकिट आगे॥
पाकगे डोकरी दाई के चुंदी
झरगे बबा के सब दांत।
बिसरागे सब जमाना के मया
बइठे-बइठे गोरसी तीर करय गोठ बात॥
आकाश म ठण्डा हवा सिरागे
सब दुनिया ल पहिरागे कुरता।
नई लागय अब जाड़ गांव शहर म
आथे गोरसी के सुरता॥

श्यामू विश्वकर्मा
नयापारा डमरू बलौदाबाजार

Share
Published by
admin