परउ परिनिया
दूनों परानी ।
धरे बासी
चटनी पानी ।
कोड़े फेंके
ढेला ढेलवानी ।
पेरथें जांगर
तेल कस घानी –
एक बीता पेट बर ।
तिरवर मंझनिया ,
तपत घाम ।
भूंजत भोंभरा
लेसत झांझ ।
पेलत झेलत
कूदत डंगोवत ।
लहकत डहकत
तलफत झकोरत –
एक बीता पेट बर ।
टूटगे कनिहां ,
हाय राम ।
सुख हे सपना
दुख के काम ।
बुधरू बुधनी
बेटा - बेटी ।
उघरा नंगरा
मांगे रोटी –
एक बीता पेट बर ।
-गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा
बहुत ही बढ़िया रचना बधाई हो जय जोहार
abhi sirf yaado me hai ye
सुग्घर रचना देवांगन जी…बधाई हो
mere baaboojee kee kavitaa hai
yah
सुघ्घर कविता । एक बित्ता पेट बर , जिनगी ल पेरत – पेरत , जिनगी ह सिरा जाथे फेर जीते – जियत मनखे के तृष्ना हर कभु नइ सिरावय । बहुत – सुन्दर वर्णन करे हावय ग । मार्मिक – कविता ।
mor babooji ke kavita aay !aap la pasand aais tekar bardhanyavaad 1