मितान जी जमीन ले जुडे़ रचनाकार आय जइसने देखे हें वइसने लिखें हवंय। बतर-बियासी, निंदई-गुडई, धान लुवई, करपा उठई, भारा बंधई तक के वर्णन ल पढबे़ त खेती किसानी के जम्मो दृश्य ह आँखी के आघू सनिमा कस दिखे लागथे। किसान के दु:ख-पीरा ल देख के मितान जी लिखथे –
हरहर-कटकट घेरे रहिथे /रात दिन हम ला किसानी म
बड़ चढऊ-उतारू हे संगी / किसनहा के जिनगानी म।
छत्तीसगढी़ संस्कृति म अँगाकर के महिमा ल सबो जानथव एकर बखान कवि ह जबरस्त ढंग ले करथे –
वाह रे अँगाकर /तोला कहिथे भँदाकर /तैं छेना कर चाकर…..
समाज म व्याप्त बुरई ले रचनाकार ह अनभिज्ञ नई हे, कन्या भ्रुण हत्या विरोध म उन मुखर होके अपन बात रखथे-
मारत हच तैं कोंख के बेटी / बहू कहाँ ले पाबे रे,
अरे हइतारा मनखे जात /तैं जर सुद्धा नाश हो जाबे रे।
गाँव-गंवई के संगे-संग देश के चिंता घलो कवि ल झकझोरथे, सीमा पार के संभावित खतरा उपर आह्वान करथे-
तैं खरतरिहा बीर बेटा / बीर नरायन बन जा
दुसमन मन के आघू म /बन्दूक बन के तनजा
अपन तीर तखार के गाँव म लगने वाला किरवई के प्रसिद्ध मवेशी बाजार अउ सोमनाथ मेला के वर्णन मितानजी अपन कविता म सुघ्घर ढंग ले करे हे जेन ल पढ के मन म उत्सुकता होथे के अतेक प्रसिद्ध जघा कोन मेर होही –
लखना सोमनाथ के मेला / चल ना जाबो संगवारी
भुइया फोर के उद्गरे हे / बबा भोले भण्डारी ।
साहूजी जउन माटी म जनमिस, जिहाँ के पानी पीस, जेकर धुर्रा फुदकी म खेल के बडे होइस वो माटी के करजा ल उतारे के काम ए संघरा के माध्यम ले करे हवय जेमा रचनाकार पूर्ण रूप ले सफल होय हवय। चूँकि उँकर पहिली संघरा आय वो हिसाब से शब्द चयन अउ मात्रा उपर पूरा सावधानी बरते गे हवय। अनुस्वार, अनुनासिक, लिंग अउ वचन के पूरा धियान रखे गे हवय ये कारण से भी लेखक के परिपक्वता साफ झलकथे। पुस्तक के छपाई सुघ्घर अउ कव्हर पेज “ओरिया के छाव” शीर्षक के हिसाब ले सटीक बने हवय।
– अजय ‘अमृतांशु’