कबिता : मनखे के इमान

कती भुलागे आज मनखे सम्मान ला
लालच मा आके बेचत हे ईमान ल।
जन जन मा भल मानुस कहात रिहिन
देखव कइसे दाग लगा दिन सान ल।
छल कपट के होगे हावे इहां रददा
भाई हा भाई के लेवत हे परान ल।
दुख पीरा सुनैया जम्मों पीरहार मन
गाहना कस धर देहें अपन कान ला।
चोंगी माखुर के निसा मा कतको
फोकटे अइसने गंवात हे जान ला।
पाप-पुन धरम-करम हा खोवागे
दिंयार कस खावत हे ईमान ला।
कुंभलाल वर्मा

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2 Thoughts to “कबिता : मनखे के इमान”

  1. aaj ke paristhiti ke hisaab se likhe ge kavita . bahunt achachha ..

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