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कविता : छत्तीसगढ़ तोर नाव म

भटकत लहकत परदेसिया मन,
थिराय हावंय तोर छांव म।
मया पिरीत बंधाय हावंय,
छत्तीसगढ़ तोर नाव म॥
नजर भर दिखथे, सब्बो डहर,
हरियर हरियर, तोर कोरा।
जवान अऊ किसान बेटा ला –
बढा‌‌य बर, करथस अगोरा॥
ऋंगी, अंगिरा, मुचकुंद रिसी के ‌ –
जप तप के तैं भुंइया।
तैं तो मया के समुंदर
कहिथें तोला, धान – कटोरा॥
उघरा नंगरा खेले कूदे –
राम किरिस्न तोर गांव म।
मया पिरीत बंधाय हावंय
छत्तीसगढ़ तोर नाव म॥
अरपा –पैरी, खारून, सोढू‌
सुखा, जोंक, महानदी बोहाथे।
तोर छाती म, दूध के धार बरोबर .
इंदरावती, रात दिन निथराथें।
कहूं भुखाय निही, पियासा निही,
तोर गोदी म, जऊन बइठ जथे।
सिहावा, कांदा डोंगर, मलेवा,
तोर जुन्ना इतिहास बताथें।
राजिम, आरिंग, बमलई, दंतेसरी
सब्बो तिरीथ तोर पांव म।
मया पिरीत बंधाय हावंय
छत्तीसगढ़ तोर नाव म॥

गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा

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