पहिली के सब्बो जुन्ना खेल कहां नंदागे। हमर पहिली के जुन्ना खेल तो कतेक हावय फेर दू-चार ठन गिनाय ले सब्बो खेल आप मनके सुरता जाही गिल्ली डंडा, बांटी-भौंरा, पिट्ठुल, नदी पहाड़, रेसटीप, कोसम्पा भई कोसम्पा अब आप मन अपन सब्बो जुन्ना खेल के सुरता आय लागिस होही। फुगड़ी छत्तीसगढ़ के परमुख खेल आय। घरघुदिंया बना के पुतरी-पुतरा के खेल सबो नोनी मन कतका मगन रहैं। सीताफल के बीजा, कनेर के फर के बीजा अउ इमली के बीजा जेला चिचोला कथे घलो खेल खेले जाय। ताश पचीसा अउ कौड़ी के खेल गरमी के बड़े बेरा कइसे बीत जाय पता नई चलै। शारीरिक बिकास के लिए खेलना बहुत जरूरी हे। बाहिर दउड़-दउड़ के खेले से शारीरिक अउ मानसिक बिकास होथे।
पहिली के मनखे खूब खावंय खूब खेलय सब पचा डारै स्वस्थ रहैं। अब के मनखे आनी-बानी के जिनिस बाहिर खाथे घर बइठे सब्बो काम करत हे। फुस-फुस बीमार परत हे। कहां नंदा गे पहिली के सब्बो खान-पान, जुन्ना खेल। अब तो मोबाइल, फेसबुक जइसे जिनिस के रेलमपेल।
सुषमा पाठक ‘रानू’
बिलासपुर
(दैनिक भास्कर, बिलासपुर ‘संगवारी’ ले साभार)