कहिनी : ईरखा अउ घंमड के फल

– भगवान कृष्ण मंझनिया के आराम करत राहय। घमण्ड से चूर दुरयोधन भगवान के मुड़सरिया कोती बइठ के कृष्ण के नींद खुले के इंतजार करे लगथे। ओतके बेर अर्जुन घलो मदद के नाम से पहुंचथे। ओला देख के दुरयोधन के मन में भय समा जाथे के अर्जुन तो कृष्ण के फुफेरा भाई ए अउ ओखर झुकाव घलो पाण्डव कोती हे। दुरयोधन के जनम-जनम के सकलाय इरखा उबले लगथे।
– अइसे कोन भारतवासी हो ही जेला रामायन अउ महाभारत के किस्सा बने नई लगत हो ही। ये दूनों ग्रंथ हरेक भारतवासी के दिलों-दिमाग में रचे-बसे हवय। तभे तो एखर प्रसंग ल कतको बार सुनव-पढ़व, हर बार येमा मन रम जाथे। महाभारत के एक ठन नानकुन प्रसंग हे जेमा ये पता चलथे के ईरखा अउ घमंड कइसे आदमी के बुद्धि ल भ्रष्ट कर दे थे।
– लाख कोसिस करे के बाद महाभारत युद्ध ल टारे नी जा सकिस। कौरव अउ पाण्डव दुनों कोती ले युद्ध के तियारी सुरू हो जाथे। दुनो पक्ष भगवान कृष्ण से घलो मदद पाना चाहथे। वो समय भगवान कृष्ण द्वारिका म चलदे राहय। पहिली दुरयोधन पहुंचथे। भगवान कृष्ण मंझनिया के आराम करत राहय। घमण्ड से चूर दुरयोधन भगवान के मुड़सरिया कोती बइठ के कृष्ण के नींद खुले के इंतजार करे लगथे। ओतके बेर अर्जुन घलो मदद के नाम से पहुंचथे। ओला देख के दुरयोधन के मन में भय समा जाथे के अर्जुन तो कृष्ण के फुफेरा भाई ए अऊ ओखर झुकाव घलो पाण्डव कोती हे, दुरयोधन के जनम-जनम के सकलाय इरखा उबले लगथे। फेर ये सोच के मन मढ़ाथे के पहिली मय आय हों तो पहिली मांगे के हक मोर हे। ओतका बेर घमण्डी दुरयोधन ल गियान नई होवय के सुते आदमी के आंखी खुलही तो गोरतरिया के आदमी ऊपर पहिली परही अउ वइसने होथे, भगवान आंखी खोलेथे तो पहिली अर्जुन दिख थे अउ ओखरे से बात करे ल धर ले थे। दुरयोधन बगिया जाथे-”कृष्ण पहिली मैं आय हों एखर सेती पहिली मोर बात ल सुन।”
– ”अरे भई, भले तंय पहिली आय होबे फेर मोर नजर तो पहिली अर्जुन ऊपर पड़िस हे। तंय हर गोरतरिया कोती बइठे ल अपन अपमान समझेस ओमा मोर का गलती हे। बोल भई अर्जुन कइसे आना होईस।”
– ”युद्ध बर आपके सहायता मांगे बर आय हों प्रभु।” अर्जुन कथे। युद्ध बर सहायता मांगे बर तो महूं हों कृष्णा।” बीचेच में दुरयोधन बोल पारथे।
– ”ठीक हे भई! जब तुम दुनों झन ल युध्द बर सहायता चाही तो एक डाहर मोर अट्ठारा लाख अक्षौहिनी सेना रिही अउ एक डाहर मय अकेल्ला रहूं। फेर एक बात अउ हे, पूरा युध्द भर मय अस्त्र-शस्त्र नी उठांव।”
– भगवान के बात पूरा नी हो पाय रिहिस दुर्योधन पहिलीच मांगे बर उतावला होगे ये डर से के कृष्ण फेर अर्जुन ल पहिली मांगे बर झन कहि दे।
– ”कृष्ण, मोला तो तोर अठारह लाख अक्षौहिनी सेना चाही।” दुरयोधन फट ले किथे।
– इंहा ईरखा अउ घमंड से चूर दुरयोधन के अकल ल टमड़ौ। वो सोचथे अकेल्ला अउ निहत्था कृष्ण ल मांगे में का फायदा हे। ओखर सेना से मोर ताकत बाढ़ही। अकल के अंधरा अतका नी समझ पाइस के कोनो राजा के सेना युध्द में अपने राजा ऊपर कईसे वार करही एती अर्जुन ल तो बिन मांगै भगवान के संग मिलगे राहय। ईरखा अउ घमण्ड के फल दुर्योधन ल कौरव के नाम, रूप में मिलिस।

दिनेश चौहान
शीतला पारा, नवापारा (राजिम)
जिला-रायपुर (छ.ग)

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One Thought to “कहिनी : ईरखा अउ घंमड के फल”

  1. कथ्य पूर्व विदित है इसलिए अत्यल्प यत्न से ही नयी/अलग भाषा होने पर भी मामला समोसम समझ में समाता जाता है ! शुक्रिया !

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