कहिनी : कोंदी केंवटिन

‘केंवटिन ह राम मंदिर बनवाए के सोचिस। महानदी के तीर एक राम मंदिर बनवाए के इच्छा ल अपन घर म बताइस त तियार तो सबे होगे। बात आइस पइसा-कौड़ी के। रात के अपन लोहा के पेटी ल सबके आगू कोंदी ह खोलिस त पेटी भर रुपिया पइसा देखके पूरा परिवार अकचकागे।’
‘अना, उर्रा, आडू ले ला’ समान बेचवइया के अवाज ल सुनके सबे ल अटकरे बर परय कि येहा कोन ए, अउ का जिनिस बेचत हे। अतका जरूर पता चल जाए कि ऐहा कोई माई लोगन आय। घर ले बाहिर निकले म पता चलय कि ए हा केंवटिन ए अउ कोंदी हे। ओहा सुनथे-समझथे सबे ल मगर गोठ-बोली ह अस्पष्ट हे। ओकर इ गोठ बोली ह लइका सियान सबे ल अपन कोती खींचय। ऐकरे नाम से ओहा जेन गली म जाए पहिली देखइया अउ बाद म लेवइया मन के भीड़ लग जावय। धीरे-धीरे ओकर चना, मुर्रा, लाड़ू सब बेचा जाए।
कोंदी केंवटिन ह अब रोज बिहनिया चना, मुर्रा, लाड़ू बेचे आवय। पांचों पारा किंदरय। हर मोहल्ला म एक जगहा कुछ बेर बइठके बेचय फेर आगू बढ़ जावय। सात से दस-ग्यारा के बीच म ओकर पूरा टूकना, टुकनी खाली हो जावय अउ ओमा धान-चाउर ह जगहा पा जावय। ओहा लइका मन ला अपन कती आवत देख खुश हो जावय। ओमन धान, चाउंर, पइसा जतको लावय ओकर बलदा म चना, मुर्रा, लाड़ू दे दय। इ खूबी के नाम से सब लइका ओकर रस्ता अगोरै अउ आवाज सुनते चुरकी दौंरी लेके निकल जावैं।
गांव वाला मन ला बाद म पूरा पता चलिस कि ऐहा सनकिहा केंवटा के दूसर घरवाली ए। पहिली घरवाली ह दूसर जचकी के समै म खतम होगै रहिस। ओकर पहलौंटी जचकी म एक टूरा होए रहिस जेन ह अब छै बच्छर के होगे रहिस। महतारी बिना अपन ददा अऊ डोकरी दाई संग रहै। सनकिहा केंवटा के असली नाव तो बिसेसर रहिस मगर ओकर सनक के नाम से ओला सनकिहा केंवटा के नाव से सबै जानैं। ओहा कोनो दिन कतको जुआर जाल, चोरिया अउ ढिटौरी (मछली पकड़ने एवं रखने का सामान) लेके निकल जावै। कभू-कभू तो पन्द्रही, महीना तक मछरी पकड़ै के नाव नई लै।
सनकिहा केंवटा ह अपन दाई के बुढ़ाती उमर अउ अपन इकलौता बेटा के लइकई ल देख के दूसर घरवाली लाए के उदिम करिस। कोंदी के भाग म ओहा अउ केंवटा के भाग म कोंदी ह रहिस। वइसे भी कोंदी ल सरोत्तर घरवाला मिलना मुश्कुल रहिस। ओकर दाई-ददा मन सरोत्तर दमाद बर बड़ परयास करिन। नई मिलिस त ए दूजहा संग बिहा दिन। संतोषी सदा सुखी, एला अपन नेम धरम बनाके कोंदी केंवटित ह अपन ससुराल, सउतेला बेटा म रच बस गिस। कोंदी के मया ल देख के कोनो नई कह सकत रहिंन कि बेटा ओकर सउतेलहा ए।
कोंदी केंवटिन ह काम बुता करे म कभु आलस नई करिस। बिहन्ने राम-राम के बेरा म जाग जाए तहां ले नहा के आए। चना, मुर्रा फोरै। सबे ल जमावै अऊ चहा पियाके समान सजाके टुकना ल मुड़ म बोह के बिहन्ना सात बजे किंदर-किंदर के बेचे बर निकल जावै, गयारा बजे तक घर लहुट जाए अउ रांधै पसावै। सबे ल खवावै-पिवावै अउ आखरी म खुद खावै।
मझनियां करी, मुर्रा, लाई अउ जवार के लाड़ू बनावै। गांव के हटरी बजार बर भजिया, गुलगुला बनावै अउ चार बजे सब समान ल लेके निकल जावै संझाती होवै त मुंधियार होए के पहिली घर लउट जावै। घर-द्वार ल संभालै अउ रात दस बजे तक सबे झन सुत जावैं। केंवटिन के जीवन क्रम ह मउसम देखके बदलत संवरत रहै।
बचपन के राम भक्त केंवटिन ह अब घर गिरहस्थी संभाले के बाद अपन कमाई के एक चौथाई हिस्सा राम भगवान बर जोरे लागिस। अउ जादा कमाई होवै त दान धरम म लगा देवै।
कोंदी केंवटिन ह अपन सउतेलहा बेटा ननकी ल सजा-संवार के तियार करके स्कूल भेजे लागिस। परिवार म सब अनपढ़ रहिन मगर बेटा ल पढ़ाए म कोई कमी नई करिन। कोंदी केंवटिन ह अपन खुद के लइका के साध कभु नई करिस। ओकर सगरे मया ह सउतेलहा बेटा ननकी बर उमडै। अोहा सबे के मया पाके बिगड़िस नहीं। ननकी ऊपर तो अपन नवा महतारी के छांव परे रहिस। पढ़ाई-लिखाई, सेवा धरम सब म कभु-कभु अपन नवा महतारी कोंदी केंवटिन ले अगुवा जावै। ओहा पढ़-लिख के आगु बढ़गे गांव के स्कूल म मास्टर बनके पढ़ाए लगिस।
ननकी के उमर देखके दाई ददा मन ओकर बर बिहा के सोचे लागिन। पहिली ओकर बर नवा कुरिया बनाइन। फेर बहुरिया लाइक लड़की खोजिन। लड़की अउ घर-द्वार पसंद आइस तहां राम नवमी के दिन बिहा करके बहुरिया ले लाइन। नवा कुरिया अबाद होगे। दाई-ददा संग डोकरी दाई सबे के मन ह हुलास मारे लागिस। डोकरी दाई ह तो अपन पोता अउ बहू ल देखके जनम सहराए लागिस।
कहीं कोई बात के कमी ल नई देखके कोंदी केंवटिन ह राम मंदिर बनवाए के सोचिस। महानदी के तीर एक राम मंदिर बनवाए के इच्छा ल अपन घर म बताइस त तियार तो सबे होगे। बात आइस पइसा कौड़ी के। रात के अपन लोहा के पेटी ल सबके आगू कोंदी ह खोलिस त पेटी भर रूपिया पइसा देखके पूरा परिवार अकचकागे।
नदिया तीर पांच एकड़ भुइयां के खोज ओकर बेटा ननकी ह करिस। कोंदी के नाम रजिस्ट्री करके राम भगवान ल चढ़ा दिन अउ राम मंदिर बने के काम शुरू होगे। कोंदी ह रुपिया-पइसा ल एकरे नाव लेके तो जोरे रहिस। केंवटा श्रमदान करिस, डोकरी दाई सब ल मंदिर के बनत तक पानी पियाइस। सबसे इंतजाम अउ बचे-खुचे ल ननकी अउ ओकर घरवाली पूरा करिन। मंदिर बनत देख दान करवैया अड़बड़ आइन। साल भर के भीतर राम मंदिर बनगै। प्राण प्रतिष्ठा होगै।
कोंदी केंवटिन के काम ल जेन भी सुनै, वाह-वाह करैं। ओकर बेटा ननकी ह एक ठन करिया पथरा म छेनी ले टंकवा के लिखवाइस ‘रामसेविका कोंदी केंवटिन’ ओ फर्सी पथरा ल आज भी मंदिर के बाहिर बिछे हे अउ फर्सी पथरा के बीच लगे हे। मंदिर अवइया-जवइया के पांव ह ओमा अवश्य पड़थे। कोंदी केंवटिन के बस अतके इच्छा रहिस।
ओ करिया पथरा ह घिसके अब चिकनात जात हे। मंदिर बाहिर बड़ अकन फर्सी पथरा के बीच ओहा लगे हे। सबके नजर नई परय मगर बरसात के पानी म साफ होके ओहा सावन-भादो म अवश्य दिखथे। सबै ओ मंदिर ल केंवट समाज के कथें मगर ओ फर्सी पथरा ह असल ल आज भी उजागर करथे।
डॉ. सीतेश कुमार द्विवेदी
पानी टंकी के पास
पारिजात एक्सटेंशन
बिलासपुर

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One Thought to “कहिनी : कोंदी केंवटिन”

  1. सीतेश भाई के छत्‍तीसगढ़ी पढ़ के मजा आगे, किस्‍सा तो जोरदार हइ हे.

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