कहिनी – खिरकी के संध

भागो लाड़-दुलार म बाढ़े रहिस हे। ओखर दू झन भाई रहिस हे। ददा किसानी करय अउ दाई ह धूम-धूम के गांव के हर घर म कुछु न कुछु काम करय। अपन घर के कुआं, बारी म बहुत साग-भाजी लगाय रहिस हे। कांदा भाजी, कोचई पान, अम्मारी, पटवा, चेंच, खेड़हा, खीरा, चिरपोटी पताल अउ अंग्रेजी मिर्चा। छै एकड़ खेत रहिस हे तेला भागो के ददा गनपत ह कमावय। एक दिन बारी के बोहार के रुख म चघ के बोहार भाजी तोड़त-तोड़त भगवंतिन ह गिरगे। उही बेरा म ओखर परान छूटगे।
बारह साल के भागो ऊपर घर के काम-बुता ह आगे। भागो के दूनो भाई कॉलेज म पढ़त रहिन हे। उही साल भागो के बिहाव कर दिस। गनपत ह बनिहार लगा के खेत ल कमावय। फेर एक बेर तीजा म बेटी ल जरूर लानय। बडे बेटा सुंदर के नौकरी सिलतरा में लगगे अउ छोटे बेटा शिक्षाकर्मी बनगे ओखर नांव इन्दर रहिस हे।
कहिथे न समय एक असन नई राहय। भागो ह धमतरी के अस्पताल म एक बेटी ल जनम देथे। इन्दर ह अपन मोटर साइकिल म बहिनी अउ भांजी ल देखे बर निकल जथे। इन्दर ह अस्पताल म पहुंच के सब ल मिठई बांटिस अउ काहय मोर घर लक्षमी दाई आय हावय। भागो के छुट्टी होवत रहिस हे। इन्दर ह पईसा पटईस अउ जचकी के समान अउ कपड़ा लेय बर गोपाल के संग म रयपुर डाहर निकलिस। धमतरीच्च के चऊंक म ट्रक ले टकरा के गिर परथे। दूनों झन के परान ह छूट जथे। होनी ल कोनो नई टार सकय। उही अस्पताल म दूनों के लास ह पहुंचथे। भागो अन्जान बस बर रद्दा म खड़े रहिथे। जाके देखथे त सन्न रहि जथे। ओखर तो सब कुछ लुटागे।
भागो ह कहिथे मोर घर तो कोनो नइए, कोनो मोर घर येमन ल पहुंचा देतेव। एक समाज सेवी संस्था गाड़ी करके गोपाल ल धमतरी के तीर म, इन्दर ल तूता म पहुंचा देथे। गनपत ह अचानक आए दुख ल सहि नई सकिस अउ चुप होगे। गांव के मन सिलतरा फोन करके सुन्दर ल बलाथे। सुन्दर आके तुरंत इंहा के काम ल निपटा के भागो घर जाथे। सुन्दर ह देखते के अंगना म भागो आंसू ढरकावत बइठे हावय। गांव के मन तइयारी करके बइठै रहिन हे। भागो ह बिदा नई करत रहिस हे। सुन्दर कहिस ”चल बिदा कर” तब भागो उठथे। लइका ल सुन्दर ह धरे रहिथे। गोपाल बिदा होगे सदा दिन बर।
भागो के सास भर रहिस हे, किराया के घर म राहंय अउ बनी-भूती करयं। सुन्दर ह भागो ल अपन घर ले आनथे। दू एकड़ खेत ल बेचथे। दस-दस लाख, बीस लाख मिलथे। पंचायत करके ये पइसा ल दे देथे अउ कहिथे के दूनो इन्दर अउ गोपाल के नांव म स्कूल बनाय बर ये पइसा ल दान म देवत हंव। मैं ह समाज के खात-खवई नई करंव। ओखर विचार के सब सम्मान करथे। भागो के सास ह सदमा म गुजर जथे। किराया के मकान ल छोड़ के भागो ह अब तूता म गनपत घर आ जथे। सुन्दर अउ गनपत अब धीरे-धीरे बोले ले लगगें। एक साल म बने होगे। एक दिन सुन्दर अउ गनपत सुमता होंगे एक एकड़ खेत अउ बारी ल भागो के नांव म कर देथे।
सुन्दर के बिहाव होगे। सुषमा बहु बनके अइस फेर भागो ल देखना पसंद नई करय। भागो के बेटी लक्ष्मी ह पूरा अंगना म दऊंड़य। सुषमा घलो सिलतरा म राहय। भइगे देवारी भर म आवय। दू साल के बाद एक दिन सुंदर कहिथे ”देख भागो तैं ह अब अपन कुरिया म अलग बना खा। अपन बारी अउ खेत के जतन कर मैं ह अपन दू एकड़ ल रेगहा दे हूं। हमन ल तो इंहा रहिना नइए।” ”जेन बहिनी बर अतेक करीस तेन सुंदर कोन भाषा बोलत हावय।” भागो कहिथे ये ह भौजी के भाषा बोलत हावय। अब मैं फेर अकेल्ला हो गेंव। मोर एक झन बेटी के काय होही। गनपत कहिथे चिंता झन कर भागो सुख अउ दु:ख तो ऊपर वाला देथे। दु:ख देथे त सहे के ताकत घलो देथे।
भागो ह अपन मां सरिख बारी-बखरी कमावय। एक एकड़ खेत ल रेगहा म दे दिस। सुंदर घलो अपन तीन एकड़ ल रेगहा म दे दिस। भागो ह कभू-कभू अपन भाई के घर ल खोल के लीप, बहार देवय। एक दिन सुंदर कहि दिस मोर घर म पैर झन रखे कर। तोर हिस्सा म रह। तीजा, राखी, भाई दूज सपना होगे।
सात बछर म लक्ष्मी स्कूल जाए ले लगगे। दूनो घर के कुरिया के बीच म खिरकी रहिस हे। ओमा दू लकड़ी के बीच म संध रहिस हे। झांके ले ओ पार ह थोरिक दिखय। लक्ष्मी ह उंहा झांकय अउ काहय ममा आ ममा आ। दुर्घटना ह तो जइसे पठेराच्च म माढे राहय। सिलतरा के पावर प्लांट म आगी लग गे। सुंदर के देह ह अइसे झुलस जथे के दूनों हाथ ह उठबे नई करय। सुंदर के सुंदरता ह आधा बरे लकड़ी कस हो जथे। सुषमा ह ओला धरे बर घिनावय। एक झन नौकर रखे रहिस हे। वेतन बंद होगे। रुपिया पइसा सिरागे त तूता अपन गांव म आगे। भागो ह अपन अंगना ले झांक-झांक के देखय। सांझ कन लक्ष्मी ल धर के भाई घर जाथे। सुषमा अपन कुरिया ले गरजिस ”हिस्सादारिन अस मोर अंगना म झन आ। तोला तोर हिस्सा मिलगे त फेर मोर अंगना डाहर काबर देखत रहिथस।”
भागो के आंखी म आंसू आगे” मैं ह अपन सुंदर भैया ल देखे बर आय हावंव।”
”मैं ह तोर दुश्मन अवं का?”
”नहीं भाभी सब ले मिले बर आय हंव।” लक्ष्मी ह कहिथे ”ममा कहां हे मां।”
सुते हावय चल घर जाबो कहिके, लक्ष्मी ल धर के घर आगे, आंखी म आंसू छलछलावत रहिस हे। गनपत कहिथे कतका लाड़ करय तोला, अपन मन के तोला खेत देय हावय। अब दुश्मन बन गेस। भगवान ह ऐखर सजा देवत हावय।
”अइसना झन कह बाबू।”
रात के लक्ष्मी ह खिरकी ले अंजोर आत देखथे त ममा, ममा कहिथे, ओती ले सुषमा कहिथे- अब तो सुतन घलो नइ देवय, छाती ऊपर बइठे हावय। हिस्सा बांटा ल लेके मन नई भरे हे अब हमर जी ल ले ही। लक्ष्मी चुप अपन मां ले चिपक जथे।
दूसर दिन नहवावत सुषमा ह काहत राहय तोर देह ह आधा जले कोइला असन दरदरहा होगे हे। कोनो नौकर बला ले तोर जतन करे बर, मोर ले नई होवय। ऐती दूनो झन के आंखी म आंसू आगे। भागो अपन ससुरार धमतरी जाए के सोचथे। सुन्दर ह सुन लेथे। सुषमा ल कहिथे- ”झन नहवा मोर ददा, बहिनी हावय। भाई होतिस त हिस्सा होतिस न, इन्दर के हिस्सा ल तो राखे हन। मोर बहिनी ह मोर बाप के सेवा करत हावय। आज ले मोर बहिनी ल कुछु झन बोलबे।”
लक्ष्मी ह स्कूल जात-जात ममा घर ल झांकय। आज वोह सोझ निकलगे। छुट्टी लगगे। देखत-देखत देवारी आगे। धनतेरस के दिन लक्ष्मी ह चुपचाप ममा घर दिया रखके आगे। सुंदर ह अपन कुरिया ले देखिस।
देवारी के दिन लक्ष्मी अउ भागो भाई के अंगना म दिया रखके अइन। गनपत ह पैर नई रखिस। दूसर दिन गांव भर म सब अपन ले बड़े के पांव परिन। संझौती बेरा म सुंदर ह दीवार तीर खड़ा होके बाबू-बाबू काहत राहय। लक्ष्मी सुनिस अउ ममा, ममा काहत बारी डाहर ले गनपत ल बलइस।
”पांव परत हंव बाबू मोर हाथ ह नई चलय, अब मैं समझगे हावंव। दूसर के बात म नई आना चाही। आज मोला तोर जरूरत हे।” कहिके झट कुरिया म चल दिस।
दूसर दिन अपन घर के काम ल जल्दी निपटा के बटलोही म तसमई चढ़ा के भाई घर नेवता देय बर चल दिस। भागो ह पहिली सुषमा के पांव परिस। ओखर बाद भाई के पांव परिस। खटिया म बइठे सुंदर ल देख के ओखर आंखी म आंसू आगे। वो ह कहिस काली मैं ह धमतरी चल दे हूं, आज भाई दूज हे। आज के दिन बहिनी घर नेवता खाय ले भाई ल जीवन दान मिलथे। ओखर ऊपर कोनो परकार के विपदा नई आवय। मैं तोला मोर रांधे तसमई अउ सोंहारी खाय के नेवता देवत हावंव। घर तो तोरे आय। तोरे घर तोला आए के तो नेवता नई दे सकंव। सुंदर चुप रहिथे। भागो अपन मामी ल कहिथे आज आखरी दिन मोर रांधे ल खा ले भाभी। साग ह घलो तोरे बखरी के आय।
सुंदर ह कहिथे ”कइसे कहिथस बही, तोर घर ये, मोर अउ तोर तो बरोबर हक हावय। हां, मैं ह तो आहूं तो भाभी के ल उही जानय। अचानक सुषमा ह कुदरी ल धर के बीच के माटी के दीवार ल खोदे ले धर लीस। माटी के दीवार भरभरा के गिरगे। टंगिया ल फेंक के कहिथे, ”मैं ह इही मेरे ले जाहूं, मोर भांची ह मोर अंगना म खेलही, तैं ह अपन भाई ल राख। मैं ह अपन बाबू अउ बेटी ल राखहूं। जा जल्दी रांध आवत हन दूनो झन।”
सुषमा गोहार पार के रोईस। भागो के आंसू ह पार म बंधाए रहिगे। वोह अपन भाई ल देखत रहिस हे। सुंदर कहिस ”रो ले भागो। बांटा लेय या देय ले बहिनी ह भाई नई हो जाय। बहिनी के मया ह अलगे रहिथे। ओखर मया म कोनो सुवारथ नई राहय। एक बेटी होके सुषमा ह बेटी के दरद ल नई समझ सकीस।”
सुषमा कहिथे, ”तोर दरद ल देखके मोला भागो के दरद के एहसास होईस। अब तो वोह मोर बेटी आय। चलव जल्दी खाबो तहां ले गंज अकन गोठियाबो।”
भाई अंगना म अइस त भागो ह आरती उतारिस अउ बइठार के तसमई अउ सोंहारी परोसिस। खात-खात लक्ष्मी ल सुंदर ह पूछथे। ”ये खिरकी ले तोला काय दिखथे?”
”ममा मैं नई बतावंव।”
”बता न दाई, मोला तो खिरकी ल बंद करे बर परही।”
बतावत हावंव ममा। खिरकी ल बंद झन करबे। मैं ह न मैं ह न मामी डाहर देखत कहिथे, देखथंव मामी ह तोला मारथे, हाथ ल तीरथे।
मामी ह जोर से हांसथे अउ बही कहिके मुंह ल नवा देथे। लुगरा के कोर ले अपन आंसू ल पोंछथे। सब के आंसू ढरथे त फेर लक्ष्मी कहिथे, ”ममा ल मारथे त ममा ल रोना चाही सब झन काबर रोवत हावव?”
सबके हंसी ह गूंजे ले लगगे।

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One Thought to “कहिनी – खिरकी के संध”

  1. gurtur lagis.

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