कहिनी – जुड़वा बेटी

जसोदा ल होस आगे। संघरा दू दू नोनी के महतारी बने के खुसी म जम्मो दु:ख, पीरा ल भुलाके हांस-हांस के गोठियाए ल धर लीस। वो बेचारी ल का पता द्वापर जुग के यसोदा माता जइसे येमा के एक झन लईका के महतारी ओहा नोहय। सच्चाई ह तो नोहर अउ परमपिता परमेश्वर के छाती म दबके रहिगे।
तीन चार दिन के चहल-पहल अउ उछाह के पाछू नोहरसिंग के घर आज के रतिहा हा सांय-सांय करत हे। बर्तन-भाड़ा अउ समान मन येती-वोती जतर-कतर परे हे। ईंकर बटोरा करईया घर मालकिन जशोदा ह सगा आए माई लोगिन मन संग कुरिया के भुंईया म सुख के नींद सुते हे। पुरुष सगा मन घलो जेला जिंहा जगा मिलिच उहें अंगना म, परछी म, कोनो दरी ल बिछा के त कोनो बोरा ल दसा के त कोनो खोर्रा खटिया म कुंभकरन असन नाक ल बजावत सुते हें। बीच-बीच म छोटे-छोटे लईका मन खुसरे सुते हे। सच बात ए कोनो बड़े काम होये के पाछू थकासी ह जनाथे अउ पट ले नींद ह पर जथे। आजेच्च नौ दस बजे रतिहा के तो बात आए घर ले जुड़वा बेटी मन के बिदा होए हे। हिरदे म उमड़त-घुमड़त खुसी अउ आंखी ले फूल जइसे झरत आंसू ले अगास म बइठे छिटिके चंदा ह जी भरके टकटकी लगा के देखे हे।
रात के तिसरईया पाहर बितईया हे। चारों खूंट शांति हे। फेर नोहर के आंखी म नींद नइए। ओमा तो बीस बछर पहिली घटे घटना ह रहि-रहि के मछरी असन तउरत हे। ओला सुरता आवत हे जब जशोदा ह दूदी बेर मरे लईका जन के आज तीसरईया पईत दू भाग होवईया हे।
कातिक के महीना अइसे लागत हे, जइसे आन साल ले जादा ठंडा परत हे। रात के दू बजे रहिस होही जब जशोदा ह पीरा म छटपटाए ल धरलीच। कमरा ल ओढ़के अउ एक ठन नानचुक डंडा ल धरके बस्ती के छेंव म रहईया दाई बलाए ल निकलगे। नोहर ह।
जइसने डबरी तीर पहुंचीस झुरमुट के तीर म खड़े दू झन माईलोगिन असन दीखिच। देखते साठ तो पहिली वो हा कांपगे फेर हिम्मत करके आमा पेड़ के पीछू म लुकाके उही कोती ल देखे ल धरलीस। चेत लगा के सुनीच त नवजात लईका के रोए के आवाज सुनई दीच। अइसे लगीस जइसे वो माईलोगिन मन घलो सुसकत हें। थोकुन पाछू वो दूनो कोई जल्दी-जल्दी बस्ती कोती जाये ल धरलीन। थोकुन बने झांक के देखीच त चिन्हे म बेरा नई लागीच के वो मन तो गांव के बरबाद पियक्कड़ कुंभकरण के बाई अउ ओकर कुंवारी बेटी कुंती ए। वो ह समझगे, लोक लाज ल डर्राके नजाएज पैदा करे बच्चा ल फेंक के ये दुखियारिन मन हिरदे ल पथरा करके जाथें। नोहर के हिरदे घिरना अउ गुस्सा ले भरगे। ओकर मन होइच कि दंऊड़ के जांवव अउ कोनो गली म परे निशा मत धुत् कुंभकरण के चुंदी ल धरके खींचत लाके देखांवव के ओकर दारू के आदत ह दाई-बेटी ल कइसे दाना-दाना बर मोहताज करके अतका अभागिन बना दीच कि कुंवारी बेटी ह कोनो मनचला के हवस के शिकार होके, अपन असमत लुटा के कलंक ल धोए बर अपराधिन बनगे।
लोग तो कइथे पुरुष के हिरदे ह लोहा, पथरा असन होथे। ये बात ह सोला आना सच नोहय तभे तो नोंहर ह देखते रइगे। वो मन चुपचाप चल दीन। वो हा चाहतीच त रंगे हाथ पकड़ के, गांव भर गोहार पारके ओ मन ल फंसा देतीच। फेर बड़ अचरज के बात ए ओकर हिरदे ले कुंती बर मया, दया अउ के छिमा के त्रिवेणी बोहाए ल धरलीच।
झटकुन झुरमुट के तीर आके देखीच त एक झन एकाध घंटा पहिली जनमधरे नोनी पिला लईका फरिया म लपटाय कल्हर-कल्हर के रोवत हे। ओला सुरता नइए कतका बेर अउ कइसे ओ लईका ल उठाके दाई ल बिना बलाए अपन घर आगे। होश तो ओला तब अईच जब भगवान के किरपा ले ईंहो नानचुक बेंवर के रोए के आवाज सुनईच। ओहा अपन जशोदा ल हुंत करईच फेर जइसे कि वोला डर रहीस, बीते साल जचकी के बेरा बेहोश होगे रहीसे आजो खटिया म बेहोश परे हे। फूल असन लईका गोड़ हाथ डोला-डोला के रोवत हे। लकर-धकर साज संभाल करके। दूनो लईका ल तीर म सुता के सरपट डॉक्टर बाबू ल बलाए बर दऊंड़गे।
भगवान के किरपा ले सब ठीक होगे। जसोदा ल होस आगे। संघरा दू दू नोनी के महतारी बने के खुसी म जम्मो दु:ख पीरा ल भुलाके हांस-हांस के गोठियाए ल धर लीच। वो बेचारी ल का पता द्वापर जुग के यसोदा माता जइसे येमा के एक झन लईका के महतारी ओहा नोहय। सच्चाई ह तो नोहर अउ परमपिता परमेश्वर के छाती म दबके रहिगे।
खुसी के वो घड़ी ओखर आंखी म झांक गे जब मनमाड़े उच्छल मंगल करके ऊंखर छट्ठी होये रहीसे। सोचत गुनत नोहर के आंखी ले खुसी के आंसू बोहाय ल धरलीच। लागथे सूरज नारायण ओकर आंसू ल पोछे बर कुकरा ल भेज के सब ल जगायेल कहिदीच। बिहनिया होगे।
चोवाराम वर्मा ‘बादल’
ग्रा.पो. हथबंध
तह. सिमगा
जिला रायपुर

आरंभ में पढ़व – लेह … अब यादें ही शेष है 

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One Thought to “कहिनी – जुड़वा बेटी”

  1. बने कहिनी हे
    हरेली तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई

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