कारी गाय के बहुत महत्व हावय। कारी गाय के तो अतका महिमा हे के वोकर दूध अऊ कारी तुलसी के पत्ती ल छै महिना तक खाय त कैंसर तक ठीक हो जाथे अइसे काशी नगरी के प्रख्यात वैद राजेश्वर दत्त शास्त्री के कहना हे। एक समे रहिस जब मनसे प्रकृति के संग म रहय तेखर सेती उनकर जिनगी सहज, सरल रहय। वो समे म गउ माता के पूजा करंय वोला महतारी मानंय, उंकर दे दूध, दही, घीव ल पी खा के मनसे तंदुरुस्त रहंय। महाभारत म गउ माता के बिसे म कहे गेहे-
गाव: श्रेष्ठ: पवित्रा च पावना जगदुत्तमा।
ऋते दधि घृतामयां च पावना जगदुत्तमा॥
गउ पालन ह छग के किसानी के जुरे धंधा आय। छत्तीसगढ़िया आदिकाल ले पशुधन के पालन-पोसन करके अपन जिनगी चलावत आवत हें। खेती के संगे-संग गउ पालन म लगे रहे ले उनकर आमदनी म बढ़ोतरी होथे अउ तन म बिमारी नइ आवय। तेखरे सेती येला जनम देवइया दाई ले ऊंचा दर्जा मिले हे।
मातर सर्वभूतानां गाव, सर्वसुख प्रदाय।
बुद्धिनाकांक्षता नित्यं गाव: कार्य प्रदक्षिणा॥
हमर गंवई म एक ठन परपंरा हे देवारी के बाद गाय चरवाहा मन (जेला बरदिहा-पहटिया कंथे) मातर मनाथे ये समे म वो मन चार महतारी के पूजा करथें 1. धरतीमाता 2. जनम देवइया माता 3. गऊमाता अउ 4. लोकमाता। लोक माता वोला कथें जेनमन समुद्र मंथन के समे म परगट होइन। उनकर नाव हे-नंदा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला अउ बहुला। इही मन ल लोक माता कहे जाथे। ये पांचों गऊ माता ल देवता मन पांच महाऋषि मन ल दे दिन उनकर नांव हे-जमदगि्, भरद्वाज, वशिष्ठ, असित अउ गौतम ऋषि। मातर के दिन राऊत मन के दोहा म एकर झलक ह दिखथे। एक कांछ मारौं रे भाई धरती माता ल सुमिरौं हो। दूसर जनम देवइया बर, तीसर गौ माता ल बिनवौं हो॥
चउथा कांछ मोर सब माता बर सुमर-सुमर मैं झुमरौं…हो॥ एक किसम को हमर गांव परदेस के संस्कृति ल इहां के रहवइय्या मन बचा के राखे हंवय। हमर छत्तीसगढ़ के किसान अपन पसुधन के उमर के चिन्हारी उकंर दांत ल देख के करथें। तीन बछर के पाछू बछिया बछवा के दांत ह जामथे वोकर पहिली वोला ‘उदंत’ कहे जाथे। तेखर बाद हर साल दू-दू ठन दांत जमावत रथे तेन हिसाब से वो मन ल दू-दत्ता, चार दत्ता छै दत्ता कथे आठ दांत जमाय म पूरो डारे हे। अइसे कथे वोकर बाद दांत नई जामय। पहटिया-बरदिहा मन अपन टेन के गाय-गरु के नाव उंकर रूप-रंग ल देख के धरथें। जइसे जेन गाय ह मारथे तेला मरकनहिन पीयर रंग के ल पिंकरी, माथा म सफेद पट्टा रही ते गाय ल बल ही, कारी, लाली, धबरी आदि-आदि। कतेक गऊमाता के नांव कुछु कारन बनथे त वोसनेहे रखे जाथे जैसे-टिकावन म आइस तेला टिकली दसरमा गांव ले आइस तेला दसरमहिन सरिख नांव रखे के गांव म रिवाज हे। कतको श्रध्दालु मनसे अपन गाय के नांव गंगा-जमुना घला धर देथें जेमा तीरथ बरथ के नाव लेवावत राहय। गाय के ओखी म मनसे के सद्गति घला हो जाथे।
(देवीभागवत) एक ठन अलग किसम के गाय घला होथे जेला गोरोचन गाय कथें। ये गाय ह पियास घाम म पेट भर पानी म जाके खड़ा हो जाथे अउ पानी पीथे। ये किसम के गाय बड़भाग वाले मन ल मिलथे। जेकर कोठा म ये गाय आगे त जान ले वोला सबे फल मिलगे। भूषन लाल परगनिहा रचितं ‘गऊरमायन’ म एकर जिक्र करे गेहे। गऊ माता के तन म सबे देवता अउ तीरथ के वास है-सर्व देवमया गाव: सर्वतीर्थ मयास्तथा। -बृहद पाराशर स्मृति. इही बात ल स्कन्द पुरान म घला कहे गे हे-
क्षुरपृष्ठे च गांधार्वा वेदाश्चत्वार एव च।
मुखाग्रे सर्व तीर्थानि स्थावराणि चराणिच॥
(स्कन्द, ब्रह्म, धर्मारण्य 1018-20)
जे मनसे गाय के खूंदे धुर्रा ल माथा म लगाथे वो ह ये भवसागर के दु:ख ल नि पावय अउ वोकर आत्मा ह मुक्त हो जाथे। हमर छत्तीसगढ़िया भाई मन जेवन के पहिली गउ माता ल गउ ग्रास जरूर खवाथें अइसन करे म बड़ शांति मिलथे।
ये प्रकार ले हमर सभ्यता अउ संस्कृति ह हमला गउ रक्षा के संगे-संग कतका कुछ मिलथे तेला बताथे। कारी गाय के तो अतका महिमा हे के वोकर दूध अउ कारी तुलसी के पत्ती ल छै महीना तक खाय त केंसर तक ठीक हो जाथे। अइसे काशी नगरी के प्रख्यात वैद राजेश्वरदत्त शास्त्री के कहना हे। उन यदु कथें के कारी गाय के दूध ल गोरसी म चुरो के वोकर घीव निकारे जाय अउ वोला सफेद दाग म लगाय जाय त दाग मिटा जाथे अउ अपन पहिली के रंग म चमड़ी ह आ जाथे। गाय के घीव अमृत जो हे- ‘घृतं मे वीर भक्ष्यं स्यात (श्रीमद्भा. 91422)’।
हम देखथन के हमर संस्कृति म गउ के महत्वपूर्ण स्थान हे अउ हमर किसान कामना करथें गऊधन सदा ऊंकर आगू-पाछू म रहंय-गावो ममाग्रतो नित्यं गाव पृष्ठत एव च। गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये बसाम्यहम॥ (महा अनु 5013)
आज सामाजिक, आर्थिक बदलाव आय के कारन एकर असर हमर संस्कृति म देखे बर मिलत हे। पूंजीवाद के कारन मसीन म खेती करे बर धर लीन। जेकर ले खेती के तासीर ह बिगड़त हे अउ गउबंश के विनास होवत हे। आर्थिक दसा ल सुधारे खातिर जरूरी हे के गऊ पालन बर किसान धियान देवयं। सरकार घला ल चाही के तकनीकी सलाह अउ आर्थिक मदद दे के प्रोत्साहित करय। येकर ले देश के माली हालत तो सुधरबे करही गोवंश के बाढे ले पहिली साही हमर देश म दूध, दही के नदिया घला बोहाही। तभे तो कहे गे हे जहां गऊ हे तिहें लक्ष्मी के वास हे अउ जहां गऊ के निरादर होते उहां लक्ष्मी नि रहय-
‘गौश्च यस्मिन गृहे नास्ति तद् लक्ष्मी रहितं गृहम्
यद गृहे दु:खिता गाव: सयाति।’ (पद्य, सृष्टि 50155-156)
नरकं नर: के भावना में श्रद्धा रखइय्या हिन्दु संस्कृति ये सिद्धांत म विश्वास करथे के गऊ रक्षा ह देस के उन्नति के मूल साधन ये। बिनोबा जी तो कहय हिन्दुस्तानी सभ्यता के नांवे ह ‘गऊ सेवा’ आय। त अपन संस्कृति अउ संस्कार ल नइ छोड़ना चाही अऊ अवइय्या देवारी म गऊमाता के ‘गाव: विश्व मातर:’ के भावना रख के पूरा सम्मान के साथ पूजा, अर्चना करना चाही अऊ भरपेट खिचरी खवाना चाही।
रूपायाध्न्ये ते नम:
हे अवध्य गऊ तुंहर सरूप खातिर तुहंला प्रनाम हे।’
(अथर्व शौन. 10109)
राघवेन्द्र अग्रवाल
आरंभ मा पढव : –
छत्तीसगढ म धौंरी गाय अउ कारी गाय दुनों के अडबड महत्व हे । इहॉं गाय के दूध ल ‘गोरस’कहिथें । राघवेन्द्र अग्रवाल जी ह बहुत बढिया आलेख लिखे हावय , बधाई । मैं ह गोरस म आदा अउ तुलसीदल ल कुचर के , थोरिकन डबका देथौं , चिटिकन शक्कर डार के छान के पीथौं,एकर नाव ” वृन्दावनी ” हावय । एहर बहुत स्वास्थ्य-वर्धक पेय ए ।
” गाय नहीं होगी तो गोपाल कहॉं होंगे फिर गऊ-माता के हित में विचार होना चाहिए
गाय दीन-हींन है किसान-खेत जर्जर हैं गाय ही समृध्दि है समझ लेना चाहिए ।”