किताब कोठी : सियान मन के सीख

भूमिका

रश्मि रामेश्वर गुप्ता के “सियान मन के सीख” म हमर लोकज्ञान संघराए हे। ऋषि-मुनि के परंपरा वेद आए अउ ओखर पहिली अउ संगे-संग चलइया ग्यान के गोठ-बात सियान मन के सीख आए। हमर लोकसाहित्य अउ लोकसंस्कृति म ए गोठ समाए हे। कबीरदास जी लिखे हें- तुम कहियत हौ कागद लेखि, मैं कहियत हों ऑखिन देखि। “सियान मन के सीख” कागद लेखि ले जादा ऑखिन देखि बात आए। जिनगी के पोथी आए “सियान मन के सीख” कमिया-किसान मन के गीता आए “सियान मन के सीख”।
रश्मि रामेश्वर गुप्ता घर-परिवार अउ समाज के सियानी गोठ ल सुनके अउ ओला सीखे के रूप मा गुन के जउन लेखनी चलाए हे, ओहर हमर संस्कृति के ढंग अउ जिनगी के रंग आए। आज नवा पीढी ल एखर जादा जरूरत हे। नीति अठ धरम के गोठ-बात तभे बने लागथे जब ओखर जरी ह भुइयाँ ले जुडे रहिथे। रश्मि रामेश्वर गुप्ता ह ए लोकज्ञान ल साहित्यिक सरूप दे के सहराए के लटक काज करे हे।
मैं रश्मि के लिखाई-पढाई अउ ओखर छत्तीसगढी बेटी के रूप मा सेवा-साधना ल देखत दैनिक भास्कर मा उनकर छत्तीसगढी लेख छपते रहिथे। ओमा आगू बढे़ के जउन गुन हावै, ओहर अउ उजराही अउ छत्तीसगढी साहित्य ल पोठ करही, मोला लागथे। हर वो नवा पीढी ल जउन छत्तीसगढी ल ‘फैशन’ के रूप मा नई, ‘संभावना’ देख के नई, भलुक अपन अंतस के धुन सुन के लिखे के उदिम करथें, मोर पूरा सहयोग उनकर बर रइही। जय जोहार, जय छत्तीसगढ़।

विनय कुमार पाठक
सी-62, अज्ञेय नगर, बिलासपुर (छ.ग.)




जम्मों संगवारी मन ला राम-राम!
जय-जोहार !

संगवारी हो ए किताब “सियान मन के सीख” जउन ला मैं आप मन के सामने अपन लेखनी के माध्यम से रखत एखर एक-एक आखर मा मैं अपन अंतस के मया अउ पिरीत ला संजोय । एखर एक-एक आखर मा सहयोग हावय मोर बिंदी अउ सिंदूर श्री रामेश्वर प्रसाद गुप्ता के जिंखर बिना मोर लेखनी अधूरा हावय। एखर संगे-संग मोर करेजा के टुका राजर्षि कान्तम् गुप्ता अउ ऋषिका गुप्ता के घलाव भरपूर सहयोग हवै । इन तीनों के अगर मोला सहयोग नई मिलतिस तब ए सियान मन के सीख हर मोर मन मा उपजबे नई करतिस एखर संगे–संग मैं अपन पूज्यनीय ससुरजी स्व. श्री कामता प्रसाद गुप्ता अउ पूज्यनीया सासू मॉ श्री मती पुनिया गुप्ता के चरन-कमल मा कोटि-कोटि नमन करके अपन श्रद्धा-सुमन अरपित करत काबर के एक बेटी के जिनगी मा जतका महत्तम दाई-ददा के होथे ओतके महत्तम सास अउ ससुर के घलाव होथे। मोर जबर बड़ भाग आय के मोला दाई-ददा के मया मा अउ सास.ससुर के मया मा थोरको फरक नई जनाइस | संगवारी हो सियान मन के हमर जिनगी मा अड़बड महत्तम होथे। इंखर गोठ–बात हर हमर जिनगी ला संवार देथे। जिखर जिनगी हर सियान मन के आसीरबाद के छइंहा मा फरथे-फूलथे उमन अड्बडड भागमानी होथे। संगवारी हो मैं हर ए किताब ला समर्पित करत मोर बुढा बबा स्व. श्री चंद्र साहेब गुप्ता अउ बूढी दाई स्व. श्रीमती बिंन्दा गुप्ता के संगे–संग मोर जनम देवइया दाई-ददा देवी स्वरूपा स्व. श्रीमती प्रकाशा गुप्ता अउ देव स्वरूप स्व. श्री उद्धभव साहेब गुप्ता के चरन-कमल मा काबर के इंखरे आसीरबाद से तो मैं ए दुनिया मा आए नई तो न मोला ए जिनगी मिलतिस न अपन अंतस के गोठ-बात ला लिखे बर बुद्धि अउ कलम। एखर संगे-संग मोर जिनगी में अवइया जम्मों सियान मन के चरन-कमल के मैं वंदना करत जिखर गोठ-बात ला मैं अपन लेखनी मा उतारे भगवान गणेश माता पारवती अउ पिता महादेव के संगे-संग मैं ए किताब के पढड्या जम्मों छोटे-बडे भाई-बहिनी मन से मैं विनती करत हँव के मोर छोटे-बडे भूल-चूक ला माफ करके मोला अपन स्नेह अउ आसीरबाद जरूर प्रदान करिहौ…

आप सब के स्नेहाकांक्षी

रश्मि रामेश्वर गुप्ता

अनुक्रमणिका




1. रूख-राई ला काटे ले अड्बड पाप होथे27. घुरूवा के दिन घलाव बहुरथे
2. कुँआ-तरिया मा जलदेवती माता के निवास होथे28. जम्मो जीव के दुख एक बरोबर होथे
3. धर-बाँध के भक्ति नइ होवय29. पानी पियय छान के,गुरू बनावै जानके
4. जभे पेट भरथे तभे पुरखा तरथे30. भगवान हर दीन–दुखी के रूप मा आथे
5. जंवारा बोए ले अन-धन बाढथे31. दूर के सोच
6. हमर घर मा लक्ष्मी आही32. दुनिया हर मेला तो आय
7. तुलसी के बिरवा मा अड्बड गुन33. आगू दुख सहिले
8. भिनसरहा उठे मा हावय भलाई34. चुप बरोबर सुख नहीं
9. दाई ददा के सेवा करे ले भगवान मिलथे35. जिहाँ सब सियान तिहाँ मरे बिहान
10. अपन मरे बिना सरग नई दिखय36. चोला माटी के हे राम
11. जइडसन बोबे तइसन तो लुबे37. एक ठन दूबी के ताकत
12. जिनगी मा मया के रंग38. बेटी बहू घर के लछमी होथे
13. मनखे के चिन्हारी दुख मा होथे39. सुख-दुख के साथी मोर परसा पान
14. का जमाना आगे ?40. दुब्बर बर दू अषाढ
15. पुन ला जोर-जोर के रखना चाही41. दया-मया हर बजार मा नई मिलय
16. मेहनती मनखे ले बीमारी घलाव डेराथे42. महादेव के महिमा अपरंपार हे
17. धीर मा खीर हे43. पसहर चाउर के तिहार
18. मानुस तन अनमोल हे44. महतारी अ महतारी भाखा
19. दुख अउ सच्चाई के भट्ठी मा तपथे मनखे45. जियत मा मारे डंडा, मरे मा पहुँचाए गंगा
20. अक्कल बिना परान दुख46. भुतवा हर दन्दोरथे भर, कुछु करय नही
21. रूख-राई मन हमार पुरखा आय47. दाई अउ ददा बिसाए मा नई मिलय
22. बेटी माई मन के तिहार के महीना48. रखिया बरी के अड्बड गुन
23. तीजा तप के तिहार आय49. मकर संक्रान्ति के अड्बड महत्तम
24. आगे पूण्य कमाए के पितर पाख50. करम हमर हाथ मा हावय
25. दाई महामाया के अवतार होथे51. विचार के लहर
26. परबुधिया नई होना चाही





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