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गजानंद प्रसाद देवांगन जी के कविता

चूनी के अंगाकर
कनकी के माढ़ ।
खा के गुजारत हे
जिनगी ल ठाढ़ ।

कभू कभू चटनी बासी
तिहार बार के भात ।
बिचारा गरीब के
जस दिन तस रात ।

चिरहा अंगरखा
कनिहा म फरिया ।
तोप ढांक के रहत
छितका कस कुरिया ।

उत्ती के लाली अउ
बुड़ती के पिंवरी ।
दूनो गरीब के
डेरौठी के ढिबरी ।

गीता पुरान होगे
करमा ददरिया ।
गंगा गदवरी कस
पछीना के तरिया ।

कन्हार मटासी ल
खनत अउ कोड़त ।
धरती अगास ल
एके म जोड़त ।

फेर तरी ले भोंभरा
ऊप्पर ले घाम ।
भूंजत होरा कस
गजब हे राम ।

तिरवर मंझनिया के
झकोरत झांझ ।
तरसुनहा के पेट ल
दंदोरत हे सांझ ।

टूटगे गांधी के
सुराजी सपना ।
जियत मरत ले
रोना अउ कलपना ।

दया मया सेवा
रख अपन नसीब ।
दूसर बर सरग
बनावत हे गरीब ।

गजानंद प्रसाद देवांगन

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