गांव शहर ले नंदा गे हे पतरी भात, मांदी

विकसित होत गांव शहर हा अपन संस्कृति ला छोड़ के भुलावत जात हे, अब के बेरा म हमर पहली जइसे संस्कृति देखे ल नई मिलये, अईसे कई किसिम-किसिम के चीज हे जेन आज के बेरा म नंदात जात हे,  येही म हमर छत्तीसगढ़ी संस्कृति म पतरी भात (मांदी) एक संग बईठ के खाये के महत्व अब्बड़ रहिस हे जेन हा आज के आधुनिक दौर म नंदात जात हे अब कमे देखे ल मिलथे। मादी म भुइयां म चटाई ल बिछा के आराम ले बईठ के सब्बो लईका सियान एके संग बढ़ सुग्घर भात खाथे, जेमा परसोइया ह अपन हाथ ले जम्मो झन ल बरोबर परोसथे जेखर ले भात साग के बरबादी घलोक नई होवय। मांदी म सब के संग म बईठ के एक संग भात खाये म बने गोठ- बात भी होथे जेमा सब्बो सियान मन ले बने गोठ-बात सुने समझने के अवसर मिलथे।

विकसित होत आधुनिक दौर म बिहाव, मरनी, चट्टी, सब्बो म भात साग खावये के तरीका ह बदल के बफर सिस्टम हो गे हे। जेन हा मांदी भात के महत्व ला कम करत हे। पहली सुरुवात सहेर ले होइस हे विदेशी परमपरा ले बड़े सहेर म प्रचलित बफर सिस्टम ह अब्बड़ तेजी ले गांव कोती आघु बड़ गे। जेमा सब्बो मनखे मन खड़े होके नई तो किंजर-किंजर के भात-साग खाथे, अब्बड़ भीड़ होइस त लाइन म लग के घलोक खाये ल लगथे, कहु भी भात खाये के तरीका ह बफर सिस्टम होथे त सब्बो लइका सियान मनखे मन लाइन म लग के भात खाथे। अभी के बेरा म येही सहेर के परमपरा अब गवई-गांव कोती घलोक अपन पैर पसार ले हे अब गांव के मनखे मन घलोक दिखावा म अपन घरो म कुछु होइस त बफर सिस्टम जइसे  भात खवाना सुरु कर दे हे।

सहेर होवय चाहे गांव सब्बो डहर सादी बिहाव म भात खवाये के परमपरा जुन्ना चलत आत हे फेर कोनो संस्कृति म ये नई हे की कहु भी खड़े हो के भात खाना चाही अउ खावाना चाहि। जेमा भात-साग के बरबादी करना चाहि। भारती संस्कृति म तो सियान मन सुरु ले भुईया म पालटी मार के बड़े अराम ले बइठथे अउ मन भर के खाथे। अउ बहुत झन सियान मन त भात साग के अब्बड़ महत्व रखते अउ खाये के बेरा म थारी ल पिड़वा म मड़हा के भात खाथे। येही ह भात खाये के सही तरीका हे। येखर ले भात भी बने खवाथे अउ पचथे घलोक जेखर ले सरीर के बने ढंग ले विकास होथे। येहि ह हमर जुनना छत्तीसगढ़ी परमपरा हे। जेला आज के आधुनिक दौर म सब भुलाते जात हे।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर।
मो:- 7722906664
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