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गीत-“कहां मनखें गंवागे” (रोला छंद)

दिखय ना कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे
खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।।
दिखय ना कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे
खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।।

जंगल झाड़ी खार, डोंगरी मा जा जाके ।
सहर सहर हर गांव, गीत ला गा गाके ।।
इहां उहां खोज, मुड़ी हा मोर पिरागे ।
खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।।

रद्दा म मिलय जेन, तीर ओखर जा जा के ।
करेंव मैं फरियाद, आंसु ला ढरा ढरा के ।
जेला मैं पूछेंव, ओखरे मतिच हरागे ।
खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।।

गरीब गुरबा संग, रहय ओ मन ल लगा के ।
पोछय ओखर आॅसु, संगवारी अपन बना के
अइसन हमर मितान, हमर ले घात रिसागे ।।
खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।।

ऊॅच-नीच के भेद, मिटाये मया जगा के ।
मेटे झगड़ा पंथ, खुदा ला एक बता के ।।
ले मनखेपन संत, जगत ले कती हरागे ।
खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।।

दरद मा दरद जान, रखय ओ अपन बनाके ।
हेरय पीरा बान, जेन हर हॅसा हॅसा के ।।
ओखर ओ पहिचान, संग ओखरे सिरागे ।
खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।।

दिखय ना कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे ।
खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।।
खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।
खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।।

रमेश चौहान
मिश्रापारा, नवागढ
जिला-बेमेतरा

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