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गीत

गीत : धनहा डोली

चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली।
सुनाहूँ तोला, तीतुर, पपीहा के बोली।

मेड़ -पार म उगे हवे, रंग – रंग के काँदी।
खेत म खेलत हवे, डँड़ई, कोतरी, सराँगी।
नाचत हवे रुख राई संग, पँड़री-पँड़री कांसी।
कते रुख तरी खाथों, बइठ मैंहा बासी?
तँहूँ ला खवाहूँ, मुंग – मुंगेसा ओली-ओली।
चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली…………….।

मेचका के टर-टर हे, पुरवाही सर-सर हे।
मुही के पानी झरे, झर-झर झर-झर हे।
भादो बुलकगे, सजोर होगे धान।
नाच देथे कई परता, खेतेच म किसान।
सँसो – फिकर के, जर जथे होली ।
चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली……….।

बइठ के मेड़ म, तन – मन ल हरियाले।
कोलिहापुरी, फोटका, फुट- फुटैना खाले।
कर्मा – ददरिया सुनले, धान निंदईया के।
असल रूप आके देख ले, धरती मइया के।
आ हँस ले मुस्काले अउ, कर ले ठिठोली।
चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली………….।

जीतेन्द्र वर्मा”खैरझिटिया”
बालको(कोरबा)
9981441795