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कविता

गोरी के सुरता

सुरता आथे तोर वो गोरी,
रही रही के मोला रोवाथे।
का मया के जादू डारे,
नैना ला तँय हा मिलाके।।

रतिहा मा नींद आय नहीं,
तोरेच सुरता हा आथे।
अन पानी सुहाय नहीं,
देह मा पीरा समाथे।।

संगी संगवारी भाय नहीं,
बइहा कस जिवरा जनाथे।
चँदा कस तोर रूप गोरी,
सुरुज पियासे मर जाथे।।

खनर-खनर तोर चूरी खनके,
छम-छम बाजे तोर पइरी।
कब आबे मोर अँगना मा,
तँय बता देना ओ गोरी।।

गोकुल राम साहू
धुरसा-राजिम (घटारानी)
जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
मों.9009047156