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कविता

चतुर्भुज सिरक्कटी धाम

गुरू पूर्णिमा के परब मा,
सुग्घर भराथे मेला।
चलो संगी चलो मितान,
जाबो सब माइ पिला।।

महा ग्यानी ब्रम्हचारी गुरू,
भुनेश्वरी शरण के अस्थान हे।
पइरी नदी के घाट मा सुग्घर,
सिरक्कटी धाम महान हे।।

छप्पन भोग सुग्घर पकवान,
सब भगत मन हाँ पाबोन।
आनी बानी के साग भाजी के,
खुला गजब के खाबोन।।

रिषि मुनि सब साधु मन के,
सिरक्कटी मा हावे डेरा।
गईया बछरू के करथे जतन,
देथे सब झन पानी पेरा।।

जउन जाथे सिरक्कटी धाम,
सब झन के पिरा भगाथे।
निर्धन, बाँझन सबो झन,
मन भर के आशिश पाथे।।

गोकुल राम साहू
धुरसा-राजिम(घटारानी)
जिला-गरियाबंद(छत्तीसगढ़)
मों.9009047156