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चिरई बोले रे

घर के छान्ही ले चिरई बोले रे…
घर के दाई अब नइ दिखे रे…
अंगना ह कईसे लिपावत नइ हे….
तुलसी म पानी डरावत नइ हे….
सूपा के आरो घलो आवत नइ हे….
ढेकी अउ बाहना नरियावत नइ हे….
जांता ह घर में ठेलहा बइठे हे….
बाहरी ह कोंटा म कलेचुप सुते हे….
चूल्हा म राख ह बोजाये हबे….
राख के हेरइया दिखत नइ हे….
कोठा ह घर के सुन्ना होगे हे….
खूंटा म गेरवा लामे हबे रे….
डंगनी ह लत्ता के अगोरा म हे….
सिल अउ लोड़हा बइरी होगे हे….
तावा संग चिमटा घलो नइ बोलत हे….
चुकिया म पानी अब कोन दिही रे….
कनकी के देवइया दिखत नइ हे….
दिया के बरइया कहाँ चल दिस रे….
घर अउ अंगना ल अंधियार कर दिस रे….
दाई के अड़बड़ सुरता आथे रे….
छान्ही ल छोड़ जाये ल भाथे रे….

नोख सिंह चंद्राकर

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