आदरणीय सुकवि बुधराम यादव संपादक “गुरतुर गोठ”, वरिष्ठ साहित्कार बिलासपुर छत्तीसगढ़ के प्रकाशनाधीन छत्तीसगढ़ कबिता संग्रह ” मोर गाँव कहाँ सोरियावत हंव “ ले एक-एक ठन कबिता रूपी फूल चुन के “सरलग” हम आपमन के सेवा म परसतुत करत हन. गत अंक में आपमन पढेव ….
“तोला राज मकुट पहिराबो ओ मोर छत्तीसगढ़ के भाषा, तोला महरानी कहवाबो ओ मोर छत्तीसगढ़ के भाषा…”
आज के अंक म अनंद लेवव एक ठन अउ सुघ्घर रचना के अउ अपन असीरवाद देवव हमला.
आज के अंक म अनंद लेवव एक ठन अउ सुघ्घर रचना के अउ अपन असीरवाद देवव हमला.
” चेरिया का रानी बन जाहय………”
काबर कुलकत हवस भुलउ राज नवा पाके
मने मन झन फूल रे बइहा मनलडुआ खाके
का गुनत हस तैं लउहा कुन जमो जिनिस पा जाबे
सरग निसैनी मे बिकास के अउ झटकुन चढ़ जाबे
चेरिया का रानी बन जाहय थोरकुन सुघराके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….
सच कहिबे ता मुड़ के पथरा गोड़ में पटक डारेन
जीते बर जीते हम तभो लागत हावय हारेन
अवगुन अबड़ बिसायेन कई ठन गुन ला बिसराके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….
हमरे गाल अउ हमरे चटकन देखत रहिबे होही
का जानी हम फूल चढायेन रहिके कांटा बोही
कहनी किस्सा कस सुन ले झन दुख कर पतियाके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….
अपने घर में हम डेहरी ले भीतर नई चढ़ पाबो
झोंकवा देहे ला उनकरे कोंदा बउरा बन खाबो
दुख भर ला पोगाराबो सगरी सुख ला सिरवाके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….
हीरा भीतर मं दबियाके ऊपर कोइला भरही
आमा असन चिचोर के जबरन हमला खोइला करही
राख के हिरदे में बिलकुल ये बात ला गठियाके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….
खोरागिन्जरा, बेलबेलाहा, चेलिक मन के दिन फ़िर जाहे
घुरवा घलव के चोला बदलथे ये दुनिया पतियाहय
आना जाना लगे इंहा कोई न रहंय रतिहाके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….
अमरबेल कस देखते देखत चारो डहर बगरहीं
संढ़वा कस डकरत छुछंद ये फुंसर फुंसर के चरहीं
कत्तेक ला हरियाबे तैं खोटनी कस खोट्वाके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….
बिछी के मंतर जाने बिन डोमी बार अड़ियाहय
अपन जर मुर ले जाहंय जजमान घलो सिरवाहय
अड़हा बैद ले का करबे नारी ला देखवाके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….
जेकर हाथ में लाठी सिरतों संग भैंसा ले जाहय
तोर हमर कस सिधवा बपुरा कल्ले चुप रहि जाहय
कोंटा मे तिरयाये संगी निच्चट दबियाके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….
हमला मिलही पेज पसिया वोमन खीर उड़ाहय
हाथी के पेट में डार सोहारी मन मे जबर जुड़ाहंय
ठाड़ होवे परही हमला फेर जोरहा जुमियाके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….
उन्ना कोठी मुसवा कुदही भरे मा अन्न भरहीं
धनबल कलबल बिन जिनगी हा जांगर परत सरही
बहुत ठगायेंन आज फभाबो उठ चल खोभियाके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….
नहीं तो इंहा इमान धरम के नई रहिजय चिनहारी
अलरहा रुंधना बंधना अजरा होही ये बारी
कत्तेक दिन देखबे अइसनहा आंखी मटियाके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….
राम राज में राजा के धोबी अवगुन गिनवावय
बघवा गरुवा, बोकरी जम्मो एक घाट जल पांवे
डरपोकना सब कहय कौन ये गोठ ला फरियाके ..
मने मन झन फूल रे बइहा…….