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छत्तिसगढ़ के गंगा : हरि ठाकुर के गीत




दूध असन छलकत जावत हे, महानदी के धार।
छत्तिसगढ़ के माटी ओखरे सेती करे सिंगार।।

लहर लहर लहरावै खेती, डोलावै धान
कोदो राहेर तिंबरा बटुरा, मां भरथे मुस्कान
हरियर हरियर जम्मो कोती दिखथे सबो कछार।
दूध असन छलकत जावत हे, महानदी के धार॥

छत्तिसगढ़ के गंगा मइया, सब जन के महतारी
तोर अँचरा मां राजिऊ लोचन तीरथ अब्बड भारी
तोर दया जेखर उप्पर हे निरव ओखर संसार।
दूध असन छलकत जावत हे, महानदी के धार ॥

तोर चरन मां पाप चढा़ के, पुन्न सकेले पायेन
तोर भरोसा जीयेन-खायेन इतरायेन मेछरायेन
ये महतारी के कोरा मां, सदा सरग दरबार।
दूध असन छलकत जावत हे महानदी के धार॥

– हरि ठाकुर



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