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छत्तीसगढ़िया होटल

कवि – कुबेर

छत्तीसगढ राज म एक ठन,
छत्तीसगढ़िया होटल बनाना हे।
चहा के बदला ग्राहक मन ल,
पसिया-पेज पिलाना हे।

सेव के बदला ठेठरी-खुरमी,
इडली के बदला मुठिया-फरा,
दोसा के बदला चिला रोटी,
तुदूरी के बदला अंगाकर रोटी खवाना हे।

मंझनिया तात पेज, संग म अमारी भाजी,
रात म दार-भात अउ इड़हर के कड़ही,
बिहिनिया नास्‍ता म आमा के अथान संग,
दही बरा के बदला, दही-बासी खवाना हे।

कुर्सी के बदला मचोली, टेबल के बदला पिड़हा,
प्‍लेट के बदला बटकी, कप के बदला कटोरी,
बेयरा ल बस्‍तर के, बस्‍तरिहा पगड़ी पहिराना हे।

न कोई कपाट-बेड़ी, न कोई छेंका-फरिका,
छकत ले खाओ संगी, अउ जी ल जुड़ावव जी,
जनता के होटल, जनता के द्वारा, जनता बर
होटल के आगू अइसने साइन बोर्ड लगाना हे।
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कुबेर
भोड़िया, राजनांदगांव
मो. 9407685557
kubersinghsahu@gmail.com

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