आज हिन्दी जनइया मन हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी जनइया मन ल छत्तीसगढ़ी बोले म तकलीफ होथे। ये मन अंगरेजी अउ हिन्दी भासा के परयोग करथे।
अपन भासा ल पढ़े-लिखे म सरम आथे, काबर? अपन भासा के प्रति हीनता इंखर बीमारी आय। जेन ह सिर्फ परचार ले अउ ननपन ले अपन भासा के प्रति परेम ले दूर हो सकथे।
मोला सुरता हे, मोर गांव तीर खम्हरिया गांव म रमायन प्रतियोगिता होत रीहिस हे। ये मा बड़का पहुना बना के अभी दू महीना भगवान घर गे होय लाल लंगोट पहनइया बालक भगवान ला बलाय गे रीहिस हे। ये प्रतियोगिता के संचालन करइया हा हिन्दी म अउ शेरो शायरी म बोलय। बालक भगवान हा ये बोलइया ला टोकिस- हमन छत्तीसगढ़िया हरन हमर बोली भासा हे तउन मा बोलव। ‘मुझसे छत्तीसगढ़ी में संचालन नहीं हो सकता।’ कहिके वोहा बालक भगवान के बात ला नई मानिस। येला देख के बालक भगवान हा गुस्सावत उठ के चल दिस।
हमन देखथन जइसे हमन छत्तीसगढ़िया भासा ला प्रतियोगिता कार्यकरम म नइ बोलन तइसने हिन्दी संग घलो होथे। बड़का-बड़का जघा के कार्यकरम म हिन्दी छत्तीसगढ़ी जनइया मन घलो एक-दूसर संग मिलथे-जुलथें त अंगरेजी तउर तरीका म हाथ मिलाना बोलचाल ला करथें। मुम्बई के फिल्मी कार्यक्रम म संचालन ला अंगरेजी में करथें। तइसने अब छत्तीसगढ़ी फिलम वाला कार्यकरम म हिन्दी म बोले जाथे। छत्तीसगढ़ी भासा संस्कृति म फिलम (सनिमा) बनाथें पइसा कमाथें अउ हिन्दी म बोलथें संचालन करथें। अइसने हिन्दी संग होवत हे।
पढ़े-लिखे लोगन मन अपन तरक देथे इहां-उहां ले, जगा-जगा ले, किसम-किसम के मइनखे आथे, तेकर सेती अइसे भासा ला बोले- केहे जाथे जउन ला सबें झन समझें अउ जानय। येला येमन कॉमन भासा कहि देथे। अंगरेज चल दीस अपन अउलाद छोड़ दिन। अंगरेजी बोलइया मन ला देख- सुन के अइसना मन बर लोगन के घुस्सा अउ खीझ हरे। छत्तीसगढ़ म येकर सहर मन म कारकरम होते रहिथे। सबे जगा इही रंग-ढंग हे। छत्तीसगढ़ म जेतका बाहरी राज के आदमी आय हंवय तउन मन अपने भासा म गोठियाथें अउ कारकरम के संचालन करथें। माइक म जउन ल बोले बर बलाय जाथे उहु मन अपने भासा बोली म बोलथें गोठियाथें। छत्तीसगढ़िया मन अउ हिन्दी बोलइया मन ला ये बात से सबक लेना चाही सीखना चाही। जउन कारकरम म छत्तीसगढ़िया मन जादा सकलाय हें उहां दूसर भासा बोले के जरूरत नइए। राज्योत्सव होइस। वोमा येकर संचालन छत्तीसगढ़ी म होनी रीहिस हे। राजिम मेला म घलो इहां के संचालन छत्तीसगढ़ी म होना चाही।
अच्छा पढ़-लिख के जउन अच्छा नौकरी म इहां-उहां हे तउन मन ला चाही। छत्तीसगढ़ी म बोले-बतावय अउ प्रचार करे जउन हिन्दी छत्तीसगढ़ी ला सुन-बोल के बाढ़िस। पढ़िस-लिखिस, तउन मन ल वाही अपन भासा-बोली ल छोड़ंय झन।
अपन भासा बोली म केहे गे बात ह ठीक-ठीक समझ म आथे। घेरी-बेरी केहे ले नइ लागय। बरात, छट्टी, बिहाव, पारटी अउ अइसने कतको कारकरम म हिन्दी छत्तीसगढ़ी गाना चलथें अउ इही म नाचथें।
महात्मा गांधी ह जउन बात ला लिखे हिन्दी म लिखे। वोकर बाद येला गुजराती अउ अंगरेजी के भासा म लिखे जाय छापे जाय, गांधी जी के मातृभासा गुजराती हरे फेर गांधी जी हा हिन्दी म लिखिस।
बसंत कश्यप
डंगनिया, पाटन
जिला दुर्ग