लिखित साहित्य में अपन अनुभव ल बांटे बर पद्य अउ गद्य के उपयोग करे जाथे। जेमा पद्य के उंचहा मान हवय, पद्य ल गद्य के कसौटी तको कहे गए हे। तेखरे खातिर दुनिया के अलग अलग भाखा के साहित्यप मन म पद्य विधा ह सबले पहिली अपन जघा बनाए हे अउ लोक के कंठ म समाये हवय। पद्य के अपन स्वयं के गुन अउ विसेसता होथे जेखर सेती पद्य म लिखे अभिव्यसक्ति ल जन मानस ह लउहे समझथे अउ वोला गीत के रूप म अपन कंठ म बसा लेथे। आप हम सब जानत हवन के छंद म बंधे रचना कंठ म सहजे विराजथे जइसे तुलसी, सूर, कबीर के लोक भाखा के काव्य हमला मुअखरा याद हे। मनखे के अनुभव ल अभिव्यक्त करे बर भाखा अउ ओखर सबद सहायता करथे। इंखर सहारे अभिव्यक्ति जब लय अउ स्वर संग गीत के रूप म जब बाहिर आथे त ओखर सुन्दरता बाढ़ जाथे। अइसन रूप म सिरजे गीत ह गति के संग भाव ल बगराए के सामरथ रखथे। अइसन गीत मन लउहे बगरथे अउ लोक कंठ म बस जाथें। गीत के बनावट के विधान जउन ल संस्कृ त अउ हिन्दीब साहित्यम म छंद कहिथें, तेखर सांचा म रचे कसे गीत म ये गुन समाये रहिथे ।
छंद सास्त्रे के सांचा म लिखे गीत मन के उम्मर जादा होथे, येखर सेती छंद म लिखईया रचनाकार के जस घलो अड़बड़ दिन तक बने रहिथे। छंद ल काव्य के आत्मा कहे जाथे, येला प्रकृति के आरो अउ आदिम अभिव्यक्ति तको कहि सकत हन। छंद के प्रयोग ह गीत म अजब खिंचाव पैदा करथे अउ ओखर लय ओला संगीत म बांधे बर सहज बनाथे। छंद म बंधे रचना मन के सबद अंतस म प्रभाव डारथे जेखर अरथ सहजे म दिमाग म बईठथे। तेखरे सेती छंद म बंधे रचना मन हमला कई बछर ले सुरता रहिथे अउ हमर चिंतन ल तको प्रभावित करथे। छंद के इही प्रभाव के सेती हमर भाखा के साहित्य के पोठ समय म लय अउ सुर के गीत मन छाये रहिन, उही गीत मन अपन छंद प्रधान गुन के कारन आज घलव हमर सुरता म बसे हवय। संस्कीकृत, हिन्दी के संगें संग हमर सियान रचनाकार मन दोहा, चौपाई अउ कुंडली जइसे छंद के रसदा ल धर के छत्तीीसगढ़ी म घलव रचना सिरजाये हवंय। हमर रचनाकार मन छंद के अनुसासन ल मानत जउन गीत सिरजाये हें उंखर लिखे उही गीत मन हमर साहित्य ढाबा के अनमोल भंडार हे। फेर अइसन रचना हमारा भाखा के साहित्यत म कम हवय। छंद विधान के कठिन अनुसासन अउ छंद सास्त्रन के जानकारी सहज नइ होए के कारन बीच के समय म या तो तुकबंदी वाले रचना म बढ़ोतरी होईस होही, या छंद के गलत-सलत प्रयोग होवई सुरू होइस होही। येखर कारन छत्ती़सगढ़ी भाखा के सियान मन सहज सरल रूप म गीत के सिरजन बर रचनाकार मन ल सीख दीन होहीं।
इही समें म छत्ती सगढ़ी साहित्या के विकास के रसदा म हमर भाखा के लोकगीत मन ल लोकप्रिय बनाये अउ ओला मान देवाये खातिर पं.द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ ह हिन्दी के प्रचलित छंद के जघा म हमर लोक छंद के प्रयोग बर जादा जोर देइन,उमन हिन्दी के प्रचलित छंद के निषेध करिन अउ लोकछंद ल पंदोली देइन। समे म डॉ.विनय कुमार पाठक घलव छत्तीसगढ़ी काव्य म लोक छंद ल मान्यता देइन। हमर सुवा, ददरिया, करमा अउ जस गीत जइसे लोकगीत तब लोक छंद के रूप म स्थापित होइस अउ माई सियान मन के पंदोली पाईस। ये समें म हमर वाचिक परम्परा के लोकगीत मन कस नवा नवा रचना हमर कवि मन करिन अउ हमर साहित्य म लोक छंद ह पोठ होइस। जउन ह उछाह के बात हवय, फेर येखर सेगें संग हिन्दी के प्रचलित छंद के प्रयोग म कवि मन के उदासीनता बाढ़िस अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य म छंद प्रयोग कम होत गइस। येखर बावजूद सास्त्रीय छंद कोनो ना कोनो रूप म छत्तीसगढ़ी साहित्य म जीयत जागत रहिस। छत्तीसगढ़ म बाल्मीकि ले सरलग बोहावत हमर प्रदेश के सास्त्रीय छंद काव्य सरिता ह आज तक बिन धार टूटे बोहावत हवय। जेमा कालिदास अउ जगन्नाथ प्रसाद ‘भानु’, बाबू रेवाराम, रघुवर दयाल, श्या्म सुन्द्र बाजपेयी जइसे कईयोन कवि मन के नाव लेहे जा सकत हवय। ये गंगा छत्तीसगढ़ी के पं.सुन्दर लाल शर्मा ले आघू बढ़त कपिल नाथ कश्यप, जनकवि कोदूराम दलित ले होवत कब सीधा अरूण निगम तक पहुंच गए पताच नइ चलिस।
छत्तीलसगढ़ी काव्य साहित्य एक जमाना रहिस जब हमर बड़का कवि मन रेडियो अउ कवि मंच म हमर भाखा के झंडा सरलग फहरावत रहिन हें। फेर अभीन के समय म अंदाजन पाछू दसक बछर ले ये बात म एक सुन्नाहपन नजर आवत हे। हमर भाखा के साहित्य म सरलग गीत, नवगीत, गज़ल, हाईकू, खण्ड, प्रबंध काव्य अउ महाकाव्य तक रचे के आरो समे समे म मिलत रहिथे, फेर ओमा छंद के जादा प्रयोग होत नइ दिखय। जगन्नासथ प्रसाद ‘भानु’ के रस-छंद-अलंकार के आठ किताब, दुर्ग निवासी कवि रघुवर दयाल के छंद रत्नसमालिनी, भाठापारा के पिंगल कवि श्यािम सुन्देर बाजपेयी के काव्यद प्रमोद जइसे हिन्दी अउ संस्कृ त के किताब तो मिलथे फेर हमर महतारी भाखा छत्तीजसगढ़ी म एको ठन किताब देखे ल नई मिलय। अइसन म हमला छंद ल जाने बर हिन्दी या संस्कृत साहित्य के मुह ताके ल परथे। अरूण निगम के ये किताब ह हमर इही परेसानी ल दूरिहा करही। छत्तीसगढ़ी भाखा म आज तक अतका प्रकार के छंद के प्रयोग कोनों रचनाकार नइ करे हवंय, जतका ये किताब म अरूण निगम करे हावंय। ये किताब म देहे किसम किसम के छंद अउ ओखर रचना विधान देहे के सेती ये किताब के महत्ता बाढ़ गए हे। ये किताब म अरूण निगम छंद के नियम कानून ल सोझे सोझे बताए के बजाए वोला छत्तीसगढ़ी पद्य म गुंथ के बताए हवय जेखर ले सीखइया कवि मन सहजे म छंद ल सीख सकंय अउ ओखर विधान ल समझ सकंय।
अरूण निगम ल छंद विधान अपन पिताजी जनकवि कोदूराम दलित ले परम्परागत रूप म मिले हे । ये किताब ल पढ़े लें आपमन ल भान हो जाही के, उमन अपन परम्परागत गियान ल अउ निखारे हें अउ काव्य के आत्मा, रस-छंद अउ अलंकार ल साधे हें। नवा जमाना के नवा उदीम करत अरूण निगम जी ह इंटरनेट के माध्यम ले दुनिया भर म फइले छंद परेमी मन ल ओपन बुक आनलाईन नाम के वेब साईट म गीत ल छंद म बांधे के पाठ पढ़ाथें। उंखर हिन्दी म छंद के संग्रह आ गए हे, ये ह छत्तीसगढ़ी छंद के संग्रह आए, ये किताब छत्तीसगढ़ी काव्य साहित्य म परखर अंजोर बगराही। छंद विधान के परेमी अउ सोर करइया गुनिक मन बर ये किताब ह, छंद के रसदा परखर करही।
संजीव तिवारी
संपादक गुरतुर गोठ