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छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल : कइसे मा दिन बढ़िया आही

कइसे मा दिन बढ़िया आही।
कइसे   रतिहा  अब  पहाही।

गाए बर  ओला  आय  नहीं,
कइसे ओ हर ताल मिलाही।

बिन सोचे काम जउन हर करही,
ओ हर पाछू  बड़  पछताही।

अब तो  मनखे  रक्सा  बनगे,
मनखे के जस कौन ह  गाही।

साधु के संग जउन हर करही,
ओ मनखे हर सरग म  जाही।

पखरा पूजे  म  क  होवत  हे,
मन पूजौ जिनगी  तर  जाही।

‘बरस’ बात ला सुन  लाबे  तैं,
आज नहीं तब  काली  जाही।

रतिहा =रात, पखरा पत्थर, काली=कल।
बलदाऊ राम साहू