छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

झन फँसबे माया के जाल,
सब  के  हावै  एके  हाल।
कतको   तैं   पुन   कमाले,
एक दिन अही तोरो काल।
कौनो   इहाँ  नइ  बाँचे  हे,
बड़का हावै जम के गाल।
धन-दौलत  पूछत हे कौन,
जाना हे  बन  के  कंगाल।
कौन देखे  हे  सरग-नरक,
पूछौ तुम मन नवा सवाल।
अंत समे मा पूछ  ही कौन,
कतका हावै तोर कर माल।
‘बरस‘ कहत हे सोझ-सोझ,
नइ  हे तुँहर  कौनो  लेवाल।
जम=यम,कतका=कितना, लेवाल=खरीददार, सोझ-सोझ=सीधा-सीधा, तँहर=तुम्हारे।
बलदाऊ राम साहू
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