हमर ये समय ल, जेमा हम जीयत हन जमों ला भुला जाय (स्मृति भंग) के समय कहे जा रहे हे। ए समय के मझ म बइठ के मैं सोचत हॅव के भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अपन आज ल हमर काल बर सौंपे के बात कहत रहिन तउन ह छत्तीसगढ़ के तात्कालीन साहित्यकार मन बर फालतू गोठ असन रहिस । काबर के उन अपन आत्म-मुग्ध व्यक्तित्व के संरचना खातिर अपन दूध के भासा म रचना नइ करके हिन्दी बर अपन कृतित्व ल समरपित कर दिहिन । उही समय म भोजपुरी, मैथिली, अवधी भासा मन म बड़े-बड़े लेखक मन के नांव पढे म मिल जाथे । ये हा उल्लेख करे के बात आय के नागार्जुन ल साहित्य एकेडेमी के एवार्ड मैथिली भासा के कवि के रूप में नवाजे गीस । छत्तीसगढ़ म इंकर ले कम हैसियत के कोनों साहित्यकार नइ रहिन । श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ले लेके पं.मुकुटधर पाण्डेय तक । अइसनहे कइ ठोंक उदाहरन दिहे जा सकत हे। बात के बतक्का असन कहे म इही कहे जा सकत हे, इंकर आत्ममुग्धता, जउन आज ले छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार मन म देखे ल मिलथे, तेकरे कारन छत्तीसगढ़ी ल वो सम्मान नइ मिल सकिस, जउन वोला बहुत पहिली मिल जाना रहिस ।
ये करा तर्क करे जा सकत है के रास्ट्र के रास्ट्रवादी लहर माने रास्ट्र अउ रास्ट्र भासा के जरूरत ज्यादा मायने रखत रहिस । हमर पुरखा मन अपन घर के भासा ले ज्यादा रास्ट्र के रास्ट्र भासा बर अपन सर्वस्व झोंक दिहिन । इंकर करा पूछे जा सकत हे के कबीर साहब घलो अपन घर ल दॉव म लगा दिए रहिस । ‘घर फूंके जो अपना’ कहय । फेर का अपन घर-परिवार के चिंता वोला नइ रहिस ? काबर जुलाहागिरी करत रहिस ? काबर अपन घर परिवार ल नइ त्यागिस ? कबीर के जीवन प्रसंग ल सुनात जुन्नटहा मनखे मन बताथें के एक पइत एक झन संसारी कबीर साहब करा आ के इंकर घर परिवार म रचे-बसे प्रेम के अरथ जानना चाहिस । कबीर साहब अपन परानी ल ठाढ़ मॅझनिया कहिस ‘देख तो, दिन बुड़ गय, दिया ल बार के लान’ । वोकर परानी दिया ल बार के लान के रख दिहिस । थोरकुन बेरा जाय के बाद कबीर साहब दिया ल ले जाय बर कहिस । वोकर परानी वइसनहेच् करिस । कहे के मतलब ये हे के घर एला कहिथें । घर म प्रेम विस्वास ह ही ईस्वर के प्रति प्रेम विस्वास ल आधार दे थे । ये ला नइ कहॅय के आने वाला पीढ़ी प्रस्न के बौछार लगा दॅय अड जुन्ना पीढ़ी अपन सफाई देत फिरय । राम के प्रति कबीर साहब के प्रेम अउ विस्वास अडिग रहिस तब घर के प्रति प्रेम अउ विस्वास वोतके मजबूत रहिस । कहे के मतलब ये के घर, घर के बाद गांव-गांव के बाद प्रदेस अउ प्रदेस के संपन्नता ह रास्ट्र ल संपन्न बनाथे । घर दरिद्र होंगे तब राष्ट्र के दरिद्र होना वोकर नियति बन जाथे। हमर जुन्नटहा साहित्यकार मन के रास्ट्र प्रेम घर ल फूँक के भुर्री तापे असन लागथे । परिणाम हमर सामने स्पस्ट हे के साहित्य के इतिहास लिखइया आत्ममुग्ध साहित्यकार मन झूठ के अउ निहायत झूठ के सहारा ले के छत्तीसगढ़ी मनुस्य ल एक घनघोर अंधियार म आज ले ढकेलत हें ।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी मन स्वदेसी के बात करॅय । वोमन जानत रहिन के भारतीय मनुस्य ल अपन धरम, जात, रहन-सहन अउ भासा उप्पर गर्व करे के पाठ सिखाय म ही ‘स्वराज’ के कल्पना ह रूप पा सकत हे । इही सेती उनमन खादी, ग्राम-उद्योग अउ हिन्दी ल स्वतंत्रता आन्दोलन के औजार बनाइन। हिन्दी भासा ल औजार बनाय के मतलब अंग्रेजी विरोध बिलकुल नइ रहिस । महात्मागांधी के अनुसार ”मैं नहीं चाहता कि मेरा घर चारों ओर से प्राचीरों से घिरा हुआ हो और मेरी खिड़कियाँ बंद हों । मैं चाहता हूं कि मेरे घर में सभी देशों की संस्कृतियों का बिना रोक-थाम प्रवेश हों । लेकिन मैं नहीं चाहता कि कोई भी संस्कृति मुझे अपनी जड़ी से उखाड़ दे । मैं दूसरे के घरों में घुसपैठिए, या अपने घर में गुलाम की तरह नहीं रहना चाहता” दुनिया के ग्यान, विग्यान, भासा, साहित्य अउ संस्कृति मनुस्य के व्यक्तित्व ल संवार थे । एकर मतलब वोकर स्वतंत्रता हे हनन नइ होय । फेर का करे जाय, इहाँ उलटेच बात होत हे । आयातित संस्कृति अउ भासा इहाँ के मनखे मनन उप्पर हावी होत जात हे । अंत: सलिला अरपा म छठ-घाट बनगे । बिलासपुर के इतिहास के साक्छी पचरीघाट के रहवइया मन ल मरनी-हरनी हावन के इंतजाम नगर निगम के किराया के पानी (टेंकर) म निपटाय बर पर थे । कुल मिला के आयातित संस्कृति अउ भासा इहाँ के मनखे मनन के उपर हावी होत जात हे । एक किसिम के मानसिक भर नहीं सामाजिक, सांस्कृतिक अउ आर्थिक सोसन के दायरा बढ़त जात हे । परतिंगा लेना हे तब भाई डॉ. परदेशीराम वर्मा के ‘झन भरमा सरमा जी’ कहानी ल पढ़ लेवॅव।
छत्तीसगढ़ के इतिहास म जाय म मालूम होथे के एक लम्बा समय तक छत्तीसगढ़ गुलाम रहे हे। ये गुलामी के दौर म घलो छत्तीसगढ़ी के आन-बान-सान के जीवित रहना वोकर जुझारू जिजीविसा के कथा कहिथे । भारत के स्वतंत्रता संग्राम म स्वभासा के उन्नति के राग अलापे के विपरीत छत्तीसगढ़ी भासा के घोर विरोध अउ अपमान छत्तीसगढ़ी के जिजीविसा ल धीरे-धीरे नुकसान पहुंचात गइस । ये तथ्य के गवाही छत्तीसगढ़ी रचनाकार मन के संघर्ष कथा दे थे । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम म छत्तीसगढ़ के नेतृत्व गैर छत्तीसगढ़ी भासी मन ल हमर छत्तीसगढ़िया मन सौप दिहिन । परिनाम स्वरूप स्वतंत्रता संग्राम अउ वोकर बाद छत्तीसगढ़ी मनुस्य के संग -संवाद के भासा छत्तीसगढ़ी नइ हो के विजातीय भासा होंगे । विजातीय भासी नेतृत्व अउ इंकर सिपहासालर मन के द्वारा उपेक्छित छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ के मनुस्य हीन भावना ले ग्रस्त अपन भासा ले विमुख होत, गइस, अउ होत जात हें ।
पुरातन काल ले चले आत भारतीय सिक्छा व्यवस्था मनुस्य ल मनुस्यत्व ले संस्कारित करके समाज ल सौंप देत रहिस । वोहा समाज के एक इकाई बन के समाज के बीच रहय । अंगरेजी राज आय के बाद समाज म ‘पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब’ के हाना चलन म आगे । ये नवाबी ह समाज के एक मजबूत आर्थिक इकाई बनाय के जमा मनुस्य ल स्वतंत्र इकाई के रूप म प्रतिस्ठित करिस । इही व्यवस्था अबले पोठात जात हे । हमर वर्तमान सिक्छा व्यवस्था रोजी-रोटी तलासे के रद्दा बनगे । अइसन रद्दा जेमा पढे-लिखे युवक छोटे ले छोटे नौकरी के फिकर म लग के सड़क नापत हे । हमर सामाजिक सोच घलो इसी कतर घिन्नी म घुमरत हे । उच्च सिक्छा बर भासा बीच म आथे । उच्च सिक्छा माने अंग्रेजी के अच्छा ग्यान । आज अंग्रेजी भासा कोनों किसिम के नौकरी बर जबर्दस्त माध्यम बन गय हे । एकखर सोज्झ असर हम छत्तीसगढ़ सरकार के भासा नीति म देखत हन, जेमा मिडिल स्कूल ले अंग्रेजी भासा के सिक्छा ल अनिवार्य बनाय गय हे । ये हा समय अउ बजार के मांग आय । अउ आज के जमाना म उही भासा, उही ग्यान चलही जउन बजार के मांग के अनुरूप हो ही । फेर हमला समझना परही के जउन बजार के इसारा म बजार के भासा कती हम जात हन, वोमा हमर भासा भर नइ जा ही, हमर संस्कृति, आचार विचार जमों जाही । हम सफ्फा देखत हन के आजकल बजार वेलेटाइन डे, मदर्स डे, फादर्स डे मनाय के रिवाज चलात हे, कभू हम सोचे हन के का हो ही हमर भोजली, जॅवारा, महापरसादी के । का होही हमर पितर-पाख के ।
ये मेर मोला एक ठन घटना के सुरता आत हे । मैं डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर म कुल सचिव पदस्थ होयेव । उहाँ मनोविग्यान विभाग म एक झन व्याख्याता तीन साल ले नौकरी करत रहिस । वोकर वेतन निर्धारित नइ होय रहिस । मोर तीर आ के वो हा अपन दु:ख ल बताइस । सरी प्रकरन ल देखे म ग्यात होइस के वोकर अंतिम वेतन प्रमान पत्र अउ सेवा पुस्तिका नइ आय हे । सागर विश्वविद्यालय के सेवा म आय के पहिली वो महोदय पंजाब सरकार के मुलाजिम रहिस । जबर्दस्त लिखा पढ़ी करे म ले दे के अंतिम वेतन प्रमान पत्र अउ सेवा पुस्तिका आइस । वोमा अंगरेजी म लिखाय रहय ”गुरूमुखी भासा नई सीखे के सेती वेतन वृद्धि, स्थायीकरण, पदोन्नति वंचित करत सेवा सामप्त।” वोकर नियुक्ति पत्र म छै महीना के भीतर गुरूमुखी सीखना अनिवार्य कर दिए गय रहिस । अउ, हमर छत्तीसगढ़ म बाहिरी आदमी आ-आ के अपन भासा, अपन देसराज के संस्कृति, कर्मकाण्ड, के डंडा चलात हें अउ छत्तीसढ़िया मनखे बक्क खाय सबला सहत हे । सहना वोकर मजबूरी बन गे हे काबर के हमर छत्तीसगढ़ के माई मंत्री ‘छत्तीसगढ़ के विकास चाहत हव तव अइसनहा चाल ल सहे पर परिही’ कहिके हमरेच् हॅसी उड़ा के चल दे थे । अउ हम दांत निपोरत अपन दुर्दसा के विकास ल देखत रहि जाथन ।
छत्तीसगढ़ी मनुस्य के अड़बड़ सोसन होत हे । सामाजिक आर्थिक सोसन ल हम मन अपन आंखी म देखत हन् । मैं काला कहॅव । एक रंगा ल के दू रंगा ला, के तीन रंगा ल । सब के हथेली धन रूपी पथरा म मसकाय हे । धन म इंकर तन, मन अतका डूब चुके हे के तन अउ मन धन म बदल के धन हो गे हे । तन मन अउ धन दूनो मिलके छत्तीसगढ़िया मनखे ल, इंकर खेत खार ले अउ कहॉ तक कही, बस्तर के आदिवासी मन ल, उकर घर बार ले निकार के गरूवा-भैंसा असन सिविर नॉव के कोठा म धांध दि हे हें । एक कती सरकार कथे के वोहा इंकर आजादी के लड़ाई लड़त हे अउ दूसर कती सरकार करा लड़इया मन घला इंकरे आजादी के लड़ाई के भरोसा देवात हे । ये दूनों गोठ के होरा म बडे-बड़े फेक्टरी स्थापित करत पूंजीपति अपन हाथ ल सेंकत हें । अउ कोठा म धंधाय बस्तरिहा मनखे दूनो के आजादी देवाय के लड़ाई म अकबकाय न दीन के रहि गे हे न दुनिया के ।
येकर ले ज्यादा सोसन भावनात्मक स्तर म छत्तीसगढ़ी मनुस्य के हो रहे है । ये बात ल समझे बर हमला इतिहास डहर जाना परही । अंगरेज राज हिन्दुस्तान म स्थापित होइस । एकरे संगे-संग अंगरेज मन भारतीय वाग्डमय के अध्ययन सुरू करिन । उन मन उद्घोस करिन के भारत दुनिया के आध्यत्मिक गुरू आय। अध्यात्म, दर्सन म भारतीय मनुस्य, जाति अनुपमेय हे । भारतीय मनुस्य ये छल म फॅस गय अउ भारत के धन दोगानी इंग्लेंउ चले गय । ये बात बिलकुल अलग हे अउ कहे सुने म आथे के ढाका के बारीक ले बारीक मलमल के कपड़ा बनवइया मन के हॉथ कटे के बाद ये सोसन के चेहरा उजागर होइस । तब तक ‘दांत हे तव चना नइए अउ चना हे तब दॉत नइये’ के स्थिति म भारतीय मनुस्य पहुंच गे रहिस ।
ठीक वइसनहे हालत छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िहा मनखे के हे । छत्तीसगढ़ी भासा के जब बात निकलथे तव हतास करे बर छत्तीसगढ़ी के व्याकरण, मानक छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी, लिपि जइसे प्रस्न उछाल दिये जाथे । अउ छत्तीसगढ़ी के विद्वान मन इही प्रस्न के उत्तर देत फिरत रथें अउ भासा के सवाल ल कइ साल के सूली म टांग दिये जाथे । छत्तीसगढ़िया के उत्तर के कोहों सुनवाई नइ होय, अउ वोही प्रस्न घेरी बेरी हमर तीर उत्तर मांगे बर उठाय जाथे । बाहरी मनखे मन के ये सवाल हे तब दूसर कती हमर मनखे याने के छत्तीसगढ़िया विद्यान मन के छत्तीसगढ़िया मनखे के सोसन के तरीका बिलकुल अंगरेज मन असन हे । छत्तीसगढ़ राज बने के बाद बहुत झन (उद्) विद् जनम गे हें । कोनो भासाविद् हें तब कोनो इतिहास विद्, तव कोनो पुरातत्व विद् अउ उवा – उवा के विद् । इन मन कभू छत्तीसगढ़ के माटी, नदी-नरवा, पहाड़-पहाड़ी, जंगल-घाटी, देवी-देवता के जस उप्पर किसान-किसानिन के कायिक, सुंदरता के बरनन करथें । जस गाथें, तब कभू प्राचीन ले प्राचीनतम् इतिहास संग छत्तीसगढ़ के नता जोर थें अउ छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी ल महान ले महानतम् घोषित कर थें ।
एकर एक दू ठों का कइ ठों उदाहरन दिए जा सकत हे । राजनीति के उछाले ‘छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया’ नइ त ‘अमीर धरती के गरीब मनखे” नई त छत्तीसगढ़ के संत असन ‘राम ह अपन छत्तीसगढ़ी प्रवास म छत्तीसगढ़ी म गोठियावय’ कहना कोन कती इसारा कर थे? राम छत्तीसगढ़ी बोलय एकर अरथ होइस के छत्तीसगढ़ी त्रेता युग ले चले आत भासा आय । ये बात के प्ररतिंगा भासाविद् मन करा लेना चाही । अइसे म हमला छत्तीसगढ़ी के विद्वान मन ल धन्यवाद देना चाही के ओमन राम के जनम भूमि छत्तीसगढ़ ल नई बताइन। अइसनहा उन कहि सकत रहिन का बर के माता कौसिल्या छत्तीसगढ़ के बेटी ए । छत्तीसगढ़ी समाज म बेटी के पहिलावॅत लइका मैके म हो थे । कौसिल्या के राम पहिलावॅत बेटा आय । परंपरा के अनुसार वोला इहें जनमना रहिस । कहूं अइसनहा कहि देतिन तब छत्तीसगढ़ अयोध्या बन जातिस अउ मनखे के जीना हराम।
ये करा हबर के भोला एक ठन छत्तीसगढ़ी लोक कथा के सुरता आत हे । कथा के अनुसार महादानी मोरध्वज के छत्तीसगढ़ म एक पइत एक झन चतुरा भिखमंगा आइस । सम्पन्न मनखे के घर दुआर ल देखिस तब वोकर मन म चोर हमागे । चोरी के नीयत म वोहर एक ठन कथा सुनाइस –
कथा कहॅय कंथली
जरय पेट के अंतली
खेत म मिरगा मरे
कोइ खाता न पीता
संपन्न घर गोंसइयाँ खेत म मरे मिरगा के बात सुनिस तब वोकर छाल ल पायेबर खेत कती दउड़िस। घर ल सुन्ना पा के भिखमंगा जमो जिनिस बारी ल डोहार डारिस । तइसने हाल हमर हे । हम अपन वर्तमान ले मसगूल मरे मिरगा के छाल बर भागत हन । अतीत डहर देखत हन, अपनेच बड़ाई करत आत्म मुग्धता के अंधियार म भटकत हन । इहाँ तक के हमर भासा बजार के अउ राजनीति जाल म फॅस गे हे । भासा के ये तरा फॅसना छत्तीसगढ़ी मनुस्य बर वोकर अस्तित्व के संकट पैदा कर दिये हे । भासा नंदाही तब छत्तीसगढ़िया के छत्तीसगढ़िया-पन घलो समाप्त हो जा ही ।
उपर के आलेख म अपन कथन के भूमिका बांधे के बाद मोर कहना हे के –
1 छत्तीसगढ़ी घर-परिवार म बात-चीत के माध्यम छत्तीसगढ़ी भासा ही होय ।
2 छत्तीसगढ़ी के चिंतक, अउ लेखक मन वास्तविक संसार, अपर आज के संसार ले जुड़ के सोंचय अउ लिखय अउ छत्तीसगढ़ी मनुस्य के भावनात्मक सोसन ले बाज आय।
3 छत्तीसगढ़ी मनुस्य छत्तीसगढ़ी भासा के पत्रिका, पुस्तक मन ल बिसा के पढ़य ।
4 छत्तीसगढ़ी सरकार, सरकार के अमला मन संग छत्तीसगढ़ी म बात-चीत करॅय । जब भी जनगणना होय तेमा अपन भासा छत्तीसगढ़ी लिखावय ।
5 मीडिया ल हमर राजनीतिग्य, नेता मन छत्तीसगढ़ी म साक्छात्कार देवॅय ।
6 छत्तीसगढ़ सरकार प्रायमरी सिक्छा ले हाइस्कूल के सिक्छा तक छत्तीसगढ़ी भासा के ग्यान, अध्ययन अध्यायपन ल अनिवार्य बनावय ।
7 प्रायमरी मीडिलअउ माध्यमिक सिक्छा व्यवस्था में छत्तीसगढ़ीहिन्दीअंग्रेजी के भासा ग्यान अनिवार्य रूप से सामिल रहय ।
8 छत्तीसगढ़ सरकार के जमोच कर्मचारी-अधिकारी मन के लिये छत्तीसगढ़ी भासा के ग्यान अनिवार्य बनावय । एकर बर पं सुंदर लाल शर्मा ‘मुक्त’ विश्वविद्यालय छत्तीसगढ़, बिलासपुर एकठन विसेस पाठयक्रम के निर्धारण करय। पाठयक्रम डिप्लोमा कोर्स के 6 महीना के अवधि के रहॅय।
9 विश्वविद्यालय के पाठयक्रम म छत्तीसगढ़ी साहित्य के विविध संरचना के उच्च अध्ययन के व्यवस्था करॅय । पाठय सामग्री बर ‘छत्तीसगढ़ ग्रंथ अकादमी’ ल समय सीमा निर्धारित करके जिम्मेदारी दिए जाए ।
नंदकिशोर तिवारी
-रवीन्द्र नाथ टैगोर नगर
मुंगेली रोड, बिलासपुर