छत्तीसगढ़ म रा.ब.क्ष.ण. के उच्चारन नई होय। अउ उच्चारन नई होय तिही पाय के जुन्ना विद्वान मन ये वर्न मन ल वर्नमाला म सामिल नइ करिन अउ छत्तीसगढ़ी वर्नमाला म ये वर्न मन गैरहाजिर हे।
तौ ये वर्न मन ल जब मन लगिस सामिल कर लौ अउ जब मन लगिस छटिया दौ, ये नीति ल ठीक नइ केहे जा सकय। हां, यदि सब विद्वान मन हिंदी के वर्नमाला बर बिना बदलाव के एकमत हो जाय तब बात दूसर रइही। तब अइसन म सब्द मन के दोहरा परयोग ले बांचे ल परही।
छ त्तीसगढ़ी भासा कइसना होय ये सवाल खड़ा हो गे हे कहना ठीक नइ हे। ये सवाल खड़ा करे गे हे। असली सवाल तो दूसर आय। जब तक इसकूल म छत्तीसगढ़ी माध्यम ले पढ़ई सुरू नई होही तब तक छत्तीसगढ़ी भासा के भलई के बात जागत आंखी के सपना छोड़ के कुछू नो हे। येला मय डंका के चोट में काहत हौं। अभी छत्तीसगढ़ी-छत्तीसगढ़ी के जउन गोहार परत हे वो ह नवा-नवा राज बने के परभाव आय। तइहा ले लेके आज तक जतका छत्तीसगढी लेखन होय हे अउ होवत हे तेखर लिखइया कोन आय? सब के सब हिन्दी माध्यम ले पढ़े-लिखे रचनाकार तो आय। एखरे सेती ले दुनिया भर के बात ल छोड़ के सब धियान छत्तीसगढ़ी माध्यम ले पढ़ई सुरू करे कोती देय के जरूरत हे। रहिगे बात आने-आने भासा के सब्द मन ल छत्तीसगढ़ म सामिल करे के। येमा कोनो ल आपत्ति नई होना चाही। आपत्ति करइया मन कुआं के मेचका आय। फेर अइसन सब्द सम्मेलन में छत्तीसगढ़ी के पहिचान जरूर झलकना चाही। कोनो भी भासा के सबले खास पहिचान ओखर वर्नमाला आय। बियाकरन तो 125 बछर पहिली बन गे हे अइसे बड़का विद्वान मन के कहना हे। फेर उही बिदवान मन वर्नमाला म भ्रमित जान पड़थे। अइसन काबर हे? वर्नमाला तो कोनो बियाकरन के पहिली अध्याय होथे। मय ह जउन छत्तीसगढ़ी बियाकरन देखे हौं, ओमा देवनागरी लिपि के ङ, ञ, ण, ष, श, क्ष, त्र, ज्ञ ऋ अक्सर सामिल नइ हे। इही पाय के जब छत्तीसगढ़ी के एकरूपता के बात होथे तौ छत्तीसगढ़ी के अधिकृत वर्नमाला के बात घला होना चाही। ये बिसय म भासाविद् मन ल अपन बिचार ल सार्वजनिक करना चाही। फेर एखर बर कोनो आगू नई आवत हे। डॉ. चितरंजन कर ल घला मय व्यक्तिगत पत्र लिखे रेहेंव। ऊंखर ले ये बिसय म व्यक्तिगत जवाब के आसा घलो रिहिस हे, फेर को जनी उन ल पत्र मिलिस के नइ मिलिस? वर्नमाला ल अधिकारी विद्वान मन दतइया के छत्ता बरोबर डर्रावत काबर हे, ये समझ से बाहिर हे। सिरिफ सुशील भोले एकमात्र अइसे रचनाकार हे जेन देवनागरी के जम्मो वर्न ल सामिल करे के बात सार्वजनिक रूप म कहिथे। फेर स, श, ष ल ले के वहू भ्रमित हे अउ ओखरो कहनाहे के वर्नमाला के बिसय म भासाविद् मन ल अपन बिचार ल सार्वजनिक करना चाही।
ये बहस म नंदकिसोर तिवारी के कहना हे के सब्द के परयोग म एकरूपता आना चाही। एखर जवाब सुधा वर्मा कर हाजिर हे- ‘जम्मो डाहर के सब्द ल पर्यायवाची के रूप में सामिल करना’ एकदम सही बिचार जान परथे। ‘छत्तीसगढ़ी वर्नमाला अउ नाव एक बहस’ म मय अभी तक के ज्ञात वर्नमाला अउ छत्तीसगढ़िया मन द्वारा सहज उच्चारित वर्न के मुताबिक कई झन नामी-गिरामी छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन के नाव के छत्तीसगढ़ीकरन करे रेहेंव, जउन ह कतको इस्थापित साहित्यकार मन ल नइ सुहाय रिहिस। वइसे हे बात डॉ. चितरंजन कर घला ह ‘मड़ई’ दिनांक 20 दिसम्बर 2010 के अंक म करे, हवैं के व्यक्तिवाचक नाव अउ पारिभासिक सब्द ल जस के तस लिखे जाथे। उनला मय पूछना चाहत हौं के भासा, सुध्दि, सब्द, सच्छम, कारन आदि लिखे के कारन का ए? इही न के छत्तीसगढ़ी म श, ष, क्ष, ण के उच्चारन नइ होय। अउ उच्चारन नइ होय तिही पाय के जुन्ना विद्वान मन ये वर्न मन ला वर्नमाला म सामिल नइ करिन अउ छत्तीसगढ़ी वर्नमाला म ये वर्न मन हइच नइ हे तौ शंकर सुरेश लिखना कइसे संभव होही? इहां तक के छत्तीसगढ़ी के अउ जम्मो बोली मन म घला ये वर्न मन गैरहाजिर हे। तौ ये वर्न मन ल जब मन लगिस सामिल कर लौ अउ जब मन लगिस छंटिया दौ, ये नीति ल ठीक नइ केहे जा सकय। हां, यदि सब विद्वान मन हिन्दी के वर्नमाला बर बिना बदलाव के एकमत हो जाय तब बात दूसर रइही। तब अइसन म सब्द मन के दोहरा परयोग ले बांचे ल परही। जइसे भासा, राजभासा, सब्द, सिक्छा, कक्छा, परीक्छा, पाठसाला, छेत्र, सुध्दि, आदि लिखे के का जरूरत रहि जाही? ताहन व्यक्तिवाचक नाव अउ पारिभासिक सब्द ल जस के तस लिखे के तर्क घलो सही हो जाही। जइसे बोले जाथे वइसे लिखे नइ जाय अउ जइसे लिखे जाथे वइसे बोले नइ जाय ये ह अंगरेजी भासा के पहिचान आय। हिन्दी के पहिचान (बिसेसता) बर तो ये केहे जाथे के एला जइसे बोले जाथे वइसनेच लिखे भी जाथे। ये ह छत्तीसगढ़ी के घलो पहिचान आय। अइसने हे छत्तीसगढ़ी म उच्चारन भेद घलो ओखर पहिचान आय। छत्तीसगढ़ी म हिन्दी के तुलना म मात्रा कभू दीर्घ तौ कभू लघु हो जाथे। इहू कोती धियान देना जरूरी हे। जइसे-
1. राष्ट्रपति ह रास्ट्रपती, ऋषि ह रिसी, मुनि ह मुनी, साधु ह साधू, हरि ह हरी, विष्णु ह बिसनू, लिपि ह लिपी, आदि ह आदी हो जाथे।
2. मूर्ति ह मुरती, मालूम ह मालुम, शीतला ह सितला, दीदी ह दिदी, रघु ह रघू, नीति ह नीती हो जाथे।
अधिकांस छत्तीसगढ़ी लेखन करइया मन के सोच हिन्दी केन्द्रित जान परथे। ओमन पाठसाला, कार्यसाला सब्द मन म आपत्ति करथे। कहिथे के साला माने पत्नी के भाई होथे। हिन्दी म ये अर्थ सही हे छत्तीसगढ़ी म ये तो एखर बर ‘सारा’ सब्द हे। ये सोच कइसे बदलही?
इही पाय के असली सवाल हे के पहिली छत्तीसगढ़ी के अधिकृत वर्नमाला तय करे जाय अउ प्रायमरी इस्कूल म ओखर विधिवत पढ़ई कक्छा पहिली ले चालू करे जाय तब सही मायने म छत्तीसगढ़ी के भलई होही। नहीं ते हिन्दी माध्यम ले पढ़के छत्तीसगढ़ी लेखन करइया के दुकाल नइ हे। हां, वो छत्तीसगढ़ी लेखन के पढ़इया के दुकाल जरूर चारों मुड़ा बियापे हे अउ दगदग ले दिखत हे।
पूर्व सिक्छा सचिव नंदकुमार के कोसिस ले कक्छा तीसरी ले पांचवी तक बर ‘छत्तीसगढ़ी भारती’ छपवाय गे हे। बहुत अकन अउ बोली म घलो छपवाय गे हे। फेर मोला ये समझ म नइ आइस के ये कोसिस ल कक्छा पहिली ले काबर सुरू नइ करे गीस? मोला लागथे, जेखर हांथ म बदलाव के ताकत हे उही मन खुद नई चाहय के छत्तीसगढ़ी ह सरकारी कामकाज अउ जन-जन के परयोग के भासा बनय। यदि छत्तीसगढ़ी के सिरतोन भलई करना हे तौ वोला कक्छा पहिली ले पढ़ाय बर सुरू करना पड़ही। अउ एखर बर सबले पहिली जरूरी हे छत्तीसगढ़ी के अधिकृत वर्नमाला तय करना अउ आगू चल के उही वर्नमाला के मुताबिक छत्तीसगढ़ी के सब्द ल लिखना। यदि अइसन नइ होय तौ छत्तीसगढ़ी साहित्यकार के भासा तो बन सकथे वो ह जन-जन के परयोग के भासा नइ बन सकय। वो ह बोलीच बने रिही।
आखिर म फेर जोर दे के केहे जात हे के जब तक छत्तीसगढ़ी भासा के अधिकृत वर्नमाला नइ बन जाही अउ ओमा ठप्पा नइ लग जाही न पारिभासिक सब्द के वर्तनी बदलई रुकय, न छत्तीसगढ़ी भासा म एकरूपता आय।
दिनेस चौहान
सितलापारा
नवापारा राजिम
Bahut sugghar lekh likhe haw bhai, bhasa ke jankari barhis. Pher bhasa har bohawat pani aay. Abhi chhattisgarhi ke sahitya ke bhandar bharna jaruri he nawa nawa bisay, giyan -bigyan ke bat likhana chahi, transletion karke aadhunic bisay man upar.aap man se bahut asha he, budhiyar likhaiya aw aapman.basanat panchami ke din sarsati dai ke kirpa barsay sabo likhaiya man upar.