छत्‍तीसगढ़ी गज़ल – हम परदेशी तान ददा

मुरहा पोटरा आन ददा,
लात ल तंय झन तान ददा।
पानी टेक्‍टर भुइया तोर,
हमला नौकर जान ददा।
छेरी पठरू गाय गरू,
तोरेच आय दइहान ददा।
पांव परे म हम अव्‍वल
देन करेजा चान ददा।
चमकाहू तलवार तभो,
करबो हम सनमान ददा।
तुंहर असन संग का लड़बो,
हमरे हे नकसान ददा।
मालिक आंही बाहिर ले,
इंहा इही फरमान ददा।
नइये जिंकर कहूँ थिरवांह,
छत्‍तीसगढि़या जान ददा।
आव तुहीं मन घर मालिक
हम परदेशी तान ददा।

डॉ.परदेशीराम वर्मा
एलआईजी 168, आमदी नगर,
भिलाई.

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5 Thoughts to “छत्‍तीसगढ़ी गज़ल – हम परदेशी तान ददा”

  1. छत्तीसगढ के दर्द को बेहतरीन तरीके से परवाज़ देने के लिये परदेशी राम वर्मा जी का आभार।

  2. छत्तीसगढ़िया के उदार चरित्र को रेखांकित करती बेहतरीन गज़ल.

  3. दरद ले भरे ये रचना,
    मोर आंखली निकलगे पानी रे ददा ।

  4. बाक़ी सब के सिठ्ठा सिठ्ठा
    तोर ग़ज़ल में जान ददा

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल कहे हौ भाई जी , गाडा गाड़ा बधाई |

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