छत्‍तीसगढ़ी लोक कथा : जइतमाल के ठेंगा

वीरेन्‍द्र सरल

Birendra Saralबहुत जुन्ना बात आय। एक गांव म एक गरीब महराज महराजिन रहय। महराज गांव गांव किंजर के भिक्षा मांगे। भिक्षा मे जउन मिले तिही मे दुनो पराणी के गुजर बसर होवय। महराज महराजिन मन के एको झन लोग लइका नइ रिहिस। भिक्षा मे बहुत कम धन मिले। मंहगाई मनमाने बाढ़ गे रिहिस। ओमन ला ना तो तन भर कपडा मिले अउ ना पेट भर जेवन। अच्छा खाना तो सपना होगे रिहिस। चटनी बासी, पेज पसिया पीके दिन पोहावत रिहिस। गरीबी म दिन बितत रहय। एक बेर गरीबी के सेती दुनो परानी मे मनमाने झगडा मात गे। महराज निचट उदास होके अपन जीव त्यागे बर जंगल डहर निकल गे। कहे जाथे रिस खाये बुध और बुध खाये पराण। रिस के मारे घर ले निकले महराज दिनभर रेंगत रेंगत रतिहा होइस तब एक सुनसान जंगल म पहुंच गे। बियाबान जंगल म ना तो चिरई चीव करे अउ ना तो कौआ कांव। महराज भूख प्यास म ब्याकुल होगे रहय। रेंगई के मारे हाथ पांव म पीरा भरगे रहय। उपरहा म जंगल मे बघवा, भालू, हुर्रा, चितवा के डर। महराज डर के मारे कांपे लगिस। रिस म इहां आय बर तो आगे रहय फेर अब जीव के डर सताय बर धरले रिहिस। वोहा अपन जीव बचाय बर अच्छा एक ठन उंच पेड़ मे चढ़गे।
अधिरतिहा के बेरा म वो पेड़ के खाल्हे एक बघवा आके बइठ गे। महराज के पोटा पोट पोट करे बर लगिस। वो भगवान महादेव ला मने मन जीव बचाय बर गोहराय लगिस। महादेव सउहंत परगट होगे। महादेव पूछिस, तब महराज अपन दुख ला साफ साफ बतादिस। महादेव हांसत किहिस -’’नानकुन बात बर रिसाके इहां मरे बर आगे जी। ये ले मै तोला एक ठन झोला देवत हवं। तोला जउन जिनिस खाय के मन होही ओखर नाव ले के मोला सुमरबे तहन ये झोला ले वोहा निकल के तोर आघू मे आ जाही । दूसर मन ला घला कतको बाट बे फेर ये मे के जिनिस कभु सिराबे नई करें।’’ अइसे कहिके महादेव जी ह एक ठन सादा झोला ला महराज ला दे दिस अउ छप होगे।
ले दे के रतिहा बीतीस । बिहनिया महराज अपन घर डहर रेंगिस। रददा म जब महराज ला भूख लागिस तब वोहा महादेव के दे झोला के परीक्षा ले बर बइठगे। बने नहा धो के महादेव के नाव सुमरके मोतीचूर के लड्डु के मांग झोला ले करिस। तुरते झोला ले लडडू निकलिस, महराज छकत ले खइस अउ खुशी खुशी घर म आगे। चमतकारी झोला के गुण सुनके महराजिन घला गजब खुश होइस। अब महराज ह भिक्षा मांगे बर छोड़ दिस। बस दुनो पराणी ला भूख लागे तहन अपन आघू मे झोला ला मढ़ाके महादेव ला सुमरै अउ मन माफिक चीज के मांग करके अघात ले खावय। अइसने अइसने बहुत दिन बीतगें।
एक दिन महराजिन ह महराज ले किहिस-’’महादेव के किरपा ले हमर गरीबी दूर होगे हवय। हमन रोज किसम किसम के पकवान खावत हन । मोर मन हावे, हमर गांव मे बसे लोगन मन ला धला नेवता देके एक दिन खवा पिया देतेन।’’ दुनो झन बने सुनता होके एक दिन गांव भर ला मांदी भात खाय के नेवता दे दिन। गांव भर के मनखे जेवन खाय बर महराज घर के आघू म सकलागे। फेर सबके मन मे विचार आवत रहय कि येमन तो खुदे निच्चट गरीब हावे। मांदी के नेवता तो दे हावे फेर खवाही काला ? सब झन ओरी पारी खाय बर बइठ गे। महराज ह महादेव के सुमरनी करके अपन झोला ला आधू मे मढ़ा के किहिस -’’जय महादेव के सत होबे ते सब झन कर बरा पुड़ी और खीर तस्मई पहुंच जा ।’’ अतके कहते साठ सब झन कर जेवन किसम किसम के पकवान सहित छप्पन परकार के मोहनभोग पहुंच गे। सब मन भर के खइन अउ अपन अपन घर लहुटगे। फेर एक झन देखमरहा किसम के मनखे के आंखी महराज के सादा झोला म पड़गे। वोहा बिहान दिन वो राज के राज घर जाके सब बात ला बतावत किहिस-’’महराज के झोला बड़ा चमत्कारी हवय। वो झोला ला तो आपके पास रहना चाही ,अकाल दुकाल के समे आपके बहुत काम आही राजा साहब ,कइसनो करके वो झोला आपके हाथ मे आना चाही ।’’ राजा के मन म लालच समागे। बिहान दिन राजा ह महराज ला अपन राज दरबार मे बला के किहिस-’’काली तैहा गांव भर के मनखे मन ला नेवता देके काय भोजन कराय हस । कतको मनखे के तबियत बिगड़गे हावें। तोर झोला ला हमर राज खजाना म जमा कर दे नही ते तोला दस साल के जेल भोगे ला पड़ जाही ।’’ महराज डर के मारे अपन झोला ला राजा ला दे दिस अउ निचट उदास होके अपन घर लहुट गे। अब फेर उही गरीबी भूखमरी के दिन आगे। दिनभर किजंर किजंर के भिक्षा मांग के गुजर बसर करना। एक दिन फेर महराज ह जंगल के उही पेड़ तीर पहुंच गे जिंहा महादेव ह वाला झोंला दे रिहिस हावे। महादेव परगट होके पूछिस-’’ अब काय बात होगे जी मोर दे झोला कहां गवांगे ?’’ महाराज सब बात ला साफ साफ बतादिस। महादेव किहिस -’’ चल कोई बात नइहे। मैहा ये बखत तोला ये दे करिया झोला देवत हवं। अहू म वइसने अच्छा अच्छा पकवान निकलही ।’’ महराज खुश होके झोला ला धरिस अउ घर डहर रेंगिस। नदिया तीर म आके बढ़िया दातून मुखारी करिस अउ नहा धोके झोला ल अपन आधू म मढ़ा के किहिस-’’जय महादेव के सत होबे ते मोर आघू म बरा सोहारी निकल के माढ़ जा।’’
फेर ये बखत तो झोला ले एक थन बड़े लंबा डोरी निकल के महराज के हाथ गोड़ ला बांध दिस। तेखर पाछू झोला ले एक थन ठेंगा निकल के महराज ला वाह मनमाने पीटे लगिस कि वोहा मार म दंदरगे। थोडकुन होईस तहन झोला ले बड़े बड़े भांवा मांछी निकल के वोला अस चबई चाबिस कि आंखी कान फूलगे। महराज ह मने मने म महादेव ले माफी मांग के किहिस-’’मोला क्षमा कर देव महादेव अब मै लालच नई करव। ‘‘ येला सुनके ठेंगा, डोरी अउ भांवा माछी मन झोला म खुसरगे। महराज ह हाय दाई हाय ददा कहत घर कोती रेंगिस।
महराज ल देख के महराजिन किहिस-’’ये करिया झोला मे तो पहिली वाला सादा झोला ले ज्यादा स्वादिश्ट पकवान निकलथे तइसे लागथे महराज। अकेला अकेल्ला मनमाने झड़के हावो तइसे लागथे। मार मनमाने एक दिन म मोटागे हावो।’’ महराज सोचिस पकवान ला दुनो झन खाय हवन। मार ला मै एके झन काबर खाहूं। अहू ला मार खावन दे। अइसे विचार करके किहिस- ’’हहो उहीच बात तो आय। ले ना भई तोंला जउन खाय के मन होवे तउन ला तहू ये झाला ले मांग के खाले। मैहा थोड़कुन बस्ती डहर ले किंजर के आवत हवं।’’ महराज घर ले बस्ती डहर निकलगे।
पहिली बेरा किसम किसम के पकवान खाय के टकरहा महराजिन ह बने नहा धोके पूजा पाठ करके बइठगे अउ किहिस -’’जै महादेव के सत होवे तै करिया झोला ले बर्फी, पेड़ा, बरा, सोहारी निकल के मोर आधू के थारी म आ जा ।’’ बस अतकेच कहे रिहिस अउ उही ठेंगा,डोरी और भांवा माछी निकल के जइसने गत महराज के करे रिहिस उही गत महराजिन के बना दीस। महाजिन घला महादेव के हाथ जोड़ अउ पांव पड के माफी मांगिस। सब बात ला महराज कोंटा म सपट के देखत रहय। महाराजिन ह मार म दंदरे लगिस तब महाराज खलखला के हांस के किहिस-’’हावे नही वो सब पकवान ह पहिली ले जादा स्वादिष्‍ठ ?’’ महाजिन घला खलखला के हांसिस अउ किहिस-’’सब महादेव के किरपा आय महराज। मोर मन तो होवत हावे कि गांव वाले मन ला एक बेर अउ नेवता देके मादी भात खवा देतेन।’’ हां भई हा बने काम म देरी नई करना चाही । मे कालीच सब ला नेवता भेजत हवं। दुनो पराणी खलखला के हांसिन अउ किहिन अब आही मजा।
बिहान दिन महराज गांव भर हांका परवा के नेवता भेजिस। पहिली बेर के मनमाने झड़के के टकरहा मनखे मन फेर मांदी भात झडके बर अइन। सब झन ओरी पारी बइठिन तहन महराज ह महादेव ले सुमरिस। करिया झोला ले डोरी निकल के सब के हाथ पांव ला बांध दिस, जइतमाल के ठेंगा निकल के सब ला मनमाने ठठाय के शुरू करिस अउ भांवा मांछी सबके आंखी कान ला चाबे लगिस। सब झन मार म दंदरगे अउ महराज ले माफी मांगिस। महराज किहिस-’’मै माफी नइ दे सकव भई, माफी मांगना हावे ते महादेव जी ले मांगव।’’ सब महादेव के सुमरनी करे लगिन। तभे अकाशवाणी होईस जब तक ये गरीब महराज के सादा झोला ला राजा नइ लहुटाही तब तक सबला अइसने मार पड़ते रही। राजा ह तुरते अपन महल मा जाके सादा झोला ला लाके महराज ला दिस तभे ओमन ला मार पड़ना बंद होईस। सब झन मार म हकरत हाय दाई हाय ददा कहत अपन घर लहुटिन तभे कहे जाथे पर के चीज बर लालच नई करना चाही । अपन मेहनत उपर भरोसा करना चाही। मोर कहिनी पूरगे, दारभात चुरगें।

वीरेन्‍द्र सरल
बोडरा (मगरलोड़)

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One Thought to “छत्‍तीसगढ़ी लोक कथा : जइतमाल के ठेंगा”

  1. Ajay Sahu "Amritanshu"

    बढिया कहिनी हवय सरल जी लोककथा बर आप ल साधुवाद छ ग म अइसने अउ कतकोन लोककथा प्रचलित हवय जेन ला पाठक मन के आघु लाना जरूरी हवय आपके अवईया छ ग लोक​कथा के अगोरा म

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