Categories: कविता

झांझ – झोला

आगी कस अंगरा, दहकय रे मंझनिया ।
धूकनी कस धूकथे, संझा का बिहनिया ।।
हरके बरजे कस, पाना नई खरके ।
आंखी तरेंरे जब, कडके मंझनिया ।।
आगी कस अंगरा …………………

टूकूर – टूकूर देखे, नवा – नवा बहुरिया ।
भुकूर – भुकूर लागे, धनी मोर लहरिया ।।
आगी कस अंगरा …………………

चूह चुहागे पछीना, सरी अंग अंगिया ।
जरे घाम भोंभरा, ऐ…ओ परनिया ।।
आगी कस अंगरा …………………

पियासे हे तन – मन लेवई अउ चिरईया ।
डोंगरी पहाड अउ गांव का सहरिया ।।
आगी कस अंगरा …………………

झांझ झोला बरसे, आगी के गोला ।
कहां लुकाबो रे, नई बाचे चोला ।।
सांय – सांय करे अमरईया ।
आगी कस अंगरा, दहकय रे मंझनिया ।
धूकनी कस धूकथे, संझा का बिहनिया ।।

रामकुमार साहू ‘‘मयारू’’
ग्राम – गिर्रा (पलारी)
मो.नं. 98261 98219

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