‘बहू ह बने खाय बर दिस हे मितान चैतु कथे। दिन बीतत गिस एक बखत सुकारो ह अपन घर वाला ल काहत राहय। ते ह तो भारी भलमंता बने हस तोर मितान ल बनी के पइसा अउ भात बासी घलो देवत हस। काकर घर अइसने पइसा खाय बर देत होही। आज ले ओला खाना देय बर बंद करहूं। अब्बड़ दिन होगे तोर मितान ल खावत-खावत।’
एक ठक गांव म बिसाहू अउ चैतु रिहिस। दूनो झन के चेहरा ह मिलती-जुलती रहिस, तेकरे सेती गांव के सियान समारू ह बिसाहू अउ चैतु ला मितान बदे बर कथे। सियान के बात ला मान के दूनो झन मितान बद डारथे। अउ जिनगी भर एक दूसर ल सुख-दु:ख म संग देय बर परन करथे। बिसाहू अउ चैतु दूनो झन के दाई-ददा नइ रिहिस। चैतु के बिहाव होगे रिहिस, दूनो झन अब्बड़ मेहनती रिहिस। बिसाहू, घर के सबो छै एकड़ खेत ला बोय अउ अपन मितान ला बनी म कमाय बर बलाय। चैतु के घर दसे काठा के खेत रिहिस, ओतकी ला बो लेय अउ फेर अपन घर असन उवत के बूड़त मितान घर कमाय। दूनो झन एके संग बासी चटनी खाय, अउ हंसी मजाक करत राहय। दूनो झन म अब्बड़ प्रेम रिहिस। गांव म इंकर मन के प्रेम ह सब ल सीख देवत रिहिस कि मितान होय ते बिसाहू अउ चैतु असन।
चैतु ह बड सुग्घर ददरिया गीत गाए। जइसे-
बटकी मा बासी अउ चटनी म नून,
मेहा गांवथौं ददरिया, तैं कान देके सुन- रे चना के दार
आमा के पेड़ म चढ़े ले घिरिया
नींद बैरी नइ आवै तुंहर किरिया।
गांव के लइका, सियान जम्मो झन चैतु के ददरिया ल कान देके सुने। ददरिया गीत के संगे-संग अपन ददा के सिखोय फूंका-झारा ल घलो जाने। गांव म कोनो ल बिच्छी मार देय तब चैतु ल बलाय। चैतु ह बिच्छी के जहर ल फूंक-झार के उतारे मं बड़ हुसियार रिहिस। गांव के कतको झन के जीव ल बचावत ओकर जिनगी ह बीतत रिहिस। एक दिन चैतु ह अपन मितान बिसाहू ल कथे, कस मितान तैं ह बिहाव कब करबे? तोला ये बछर बिहाव करना जरूरी हे, मितान के बात ल सुन के बिसाहू कथे ले मितान ते कथस त ये बछर मेहा बिहाव जरूर करहूं। चैतु कथे, मितान त कालिच लड़की देखे बर जाबो। बिसाहू एक झन सुग्घर लकड़ी ल मन कर डारिस, चैतु ह अपन मितान बिसाहू ल कथे, कइसे बहू सुग्घर हे ते निहि। तब बिसाहू लजा के कथे बने हे मितान बने हे।
एक दिन बिसाहू ह चुपचाप अपन बियारा म बइठे कुछु सोंचत रहय। येति चैतु ह अपन मितान ल खोजत बियारा म आथे। ते कइसे चुपेचाप बइठे हस मितान चैतु ह पूछथे। तब बिसाहू कथे मे ह गुनत हौ कि मोर बिहाव के बेर जम्मो देख-रेख ल कोन करही। चैतु ह कथे- में तो हावौ न मितान मे ह देख-रेख करहूं ते ह गुनान छोड़ अउ बिहाव के तैयार ल कर। चैतु सगा मन ल नेवता नेवते बर जाथे, मड़वा गिड़ियाथे अउ बाजार जाके साग-भाजी लानथे। गांव के जम्मो झन ल मांदी खवाथे। सबो काम ल चैतु ह सगा मन संग मिलके करे लागिस। बाराती जाथे अउ दुलहिन ल बिहाके लानथे। सबो काम अउ बिहाव के नेंग जोग ह बने-बने निपट जथे। बिहाव होय के बाद एक दिन बिसाहू अपन मितान ल कथे तोर देख-रेख म मोर बिहाव ह बने-बने निपटिस अइसे कहिके गले लग जथे। ओतकी बेर बिसाहू के घरवाली सुकारो ह चाहा बनाके लाथे। दूनो मितान चाहा पिथे बिसाहू ह सुकारो ल बताथे कि एहा मोर मितान आय। इंहचे कमाथे अउ मोर संग चटनी-बासी खाके जिनगी चलावत हे। दिन बीतत गिस बिसाहू एक दिन धान बेचे ल शहर गिस अउ अपन घरवाली सुकारो ल चेता दे रिहिस कि मोर मितान ल खाय के बेरा म भात दे देबे। चैतु खेत ले काम करके घर म आथे अउ कथे बहू जल्दी मोला भात दे, मितान तो धान बेंचे ल गे हे आज एके झन खाहूं। सुकारो ह रूखा-सुखा रोटी ल दे देथे। चैतु मने मन सोंचे लागिस, कि बहू मोला कइसे सुक्खा रोटी भर ल दे दिस। फेर बिचारा का करही, बनिहार भइ बनिहार। चुपचाप खाके उठगे। सांझ कुन बिसाहू आथे अउ मितान ल कथे। तोर बहू बने खाय बर दिस निहि ग। बहू ह बने खाय बर दिस हे मितान चैतु कथे। दिन बीतत गिस एक बखत सुकारो ह अपन घर वाला ल काहत राहय। ते ह तो भारी भलमंता बने हस तोर मितान ल बनी के पइसा अउ भात बासी घलो देवत हस। काकर घर अइसने पइसा अउ खाय बर देत होही। आज ले ओला खाना देय बर बंद करहूं। अब्बड़ दिन होगे तोर मितान ल खावत-खावत। बिसाहू के बात ह ओकर माइलोगन कर नइ चलिस। चुपे रह न वो चुपे रह, मितान सुनहि ते अलकरहा हो जही बिसाहू कथे। सुनहि त सुनन दे ओला डर्रावत हन का, ओकर माइलोगिन किहिस। चैतु दूनो झन के गोठ ल कलेचुप सुनत रिहिस, ओ दिन ले अपन मितान घर भात खाय छोड़ दिस। बिसाहू अब्बड़ खाय बर मनाय फेर चैतु ह मितान के बात नइ माने। एक दिन उहि गांव के समारू ह आथे अउ कथे- मोर लइका के तबियत खराब हावै ओला अस्पताल म भरती करवाना जरूरी हे। मे ह तोर कर एक ठन गोठ ले के आय हे। मे ह खेत ल बेंचहूं मोर खेत तोर खेत म लगे हावे, ते ह ले लेते चैतु। दसे काठा के तो हरे। मने मन चैतु गुने लागिस कहिस मे ह तोर खेत नइ ले सकों समारू। मोर कर खेत लेय के पूरतिन पइसा नइ हे। हां मे ह मोर मितान ल बताहूं ओ ह ले डारही। त दूनो झन जाबो कहिके चैतु ह कथे। चैतु ह सबो गोठ ल अपन मितान ल बताइस, बिसाहू ह खेत ल ले डारिस। खेत ह लेवागे कहिके सुकारो अब्बड़ खुस हो जथे लेवाय खेत ल देखे बर तको चल दिस। अउ सोचे लागिस, खेत ल ढेलवानी दे देतेन का? काबर खेत के मेड़ म बने रेंगे के पुरतिन नइ हे। एक दिन सुकारो दूसर बनिहार ल धरके ढेलवानी रचे बर चल दिस। सबो ढेला ल चैतु के मेड़ के खाल्हे डाहर रचवाय अउ अपन डाहर नइ रचवाय। चैतु ह एक दिन खेत ल देखे बर गिस त देखथे सरी ढेलवानी ल मोरे खेत कोती रच दे हे। मने मन किहिन कि ढेलवानी के मतलब मेड़ के दूनो कोती बराबर बराबर ढेला रखे जाथे। फेर हमर बहू ह मोर खेत डाहर रखवाय हावे। मोर खेत ह छोटे होत जाही अउ ओकर खेत ह बाढ़त जाही। फेर बिचारा ह कलेचुप रहिगे। सुकारो ह दू झन बनिहार ल धरके जाय अउ मेंड ल छोलवाय, अउ रेंंगत नइ बनत हे कहिके ढेलवानी देवत जाय। अइसने करत ओला तीन बछर होगे। चैतु बिचारा के खेत छोटे होत गिस अउ ओकर मितान के खेत ह बाढ़त गिस। फेर बिचारा चैतु मितान सन टूट जबो कहिके कुछु नइ काहै। एक बखत सुकारो ह फेर मेड़ ल छोलवावत राहय। ओतकी बेर चैतु ह अपन खेत ल देखे बर आवत रिहिस। ओतकी बेर सुकारो ल बिच्छी मर देथे। ये दई! मोला बिच्छी मार दिस ओ कहिके सुकारो ह जोर से चिल्लाथे चैतु दउड़त आथे अउ फूंका, झारा करके ओकर जहर ल उतारथे। अउ अपन घर म लान के डॉक्टर ल घलो देखाथे। सुकारो ह बने हो जथे, सुकारो किहिस तैं ह मोर जीव ल बचाय अउ मैं दुष्टिन तोरे खेत ल खावत रेहेंव। आज ते नइ रते त मोर जीव ह नइ बाचतीस तैं ह देवता बरोबर अस। दूसर होतिस ते झगरा करे बर लग जतिस। आज मोर आंखी उघर गे काकरो बिगाड़ नइ करना चाही। भगवान सब ल देखत रथे अइसे कहिके सुकारो ह माफी मांगथे अउ गोहार पार के रो डारथे।
अइसन ढंग के सबो झन बने हि मिल जथे अउ खावत कमावत दिन बिताथे।
भोलाराम सिन्हा
ग्राम महानदी डाभा
विकासखंड मगरलोड
पो. करेली छोटी जिला-धमतरी
आरंभ म पढ़व :-
ओंकार …. नत्था ….. पीपली लाईव …. और एड्स से मौत
निडर पत्रकार आशा शुक्ला को वसुन्धरा सम्मान
Sughghar kahini likhe habo……aisane likhat rahav.