प्रहलाद दुबे सारंगढ के रहईया रहिन। सत्रहवीं शताब्दी के आखरी म इमन ‘जय चन्दिका’ लिखे रहिन। एमा संबलपुर के राज-वंश के वर्णन हावय। इखंर भाषा म व्रज, बसवाडी अउ छत्तीसगढी़ के मेल हे। इंखर कविता के एक उदाहरण देखव-
तुम करहु जैसे जौन,
हम हवें सामिल तौन।
महापात्र मन मंह अन्दाजे,
हम ही हैं सम्बलपुर राजे।।
राजकुमार हिये अन्ताजेव,
सोमला मन्दिर जाई बिराजेव।
एको निसर जान नई पैहे
मूढ़ में गड़रगप्प ह्वै जैहे ।
क्या जानी क्या होय,
बौहों काहे सिर बद्दी।
(परिचय डॉ.दयाशंकर शुक्ल : छत्तीसगढ़ी लोकसाहित्य का अध्ययन का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद)