जईसे-तईसे हम एक बरिस ले आप मन के हिरदे म बसे भाखा ला आप मन तीर लेजे के परयास करत रहेन. हमर सपना आज नहीं त काल जरूर पूरा होही. हमर आदरनीय वरिस्ठ संपादक सुकवि बुधराम यादव जी के संउपे बाना ला हम बने सहिन नई सम्हाल पायेन फेर हम बाना ला उतारेन घलव नहीं. आपमन भरोसा राखव हम धीरे-बांधे अपन काम करत रहिबोन, आपमन के असीस संग रहय.
संगी समीर यादव जी, दीपक शर्मा जी, युवराज गजपाल जी, ललित शर्मा जी अपन व्यस्तता के बाद घलव गुरतुर गोठ ला अपन-अपन कोती ले जउन सहजोग देइन अउ देवत आवत हें, तउन मन ला. अउ हमर अइनहे कतको संगी जेमन हमर ये पतरा म आके हमर मेर गोठ बात करिन अउ हमर भाखा के रचना मन ला पढिन. अइसे जम्मो संगी मन ले मिले ये मया के हम हिरदे ले आभारी हावन.