छत्तीसगढ़ राज बनिस, तब बाहिर के मन ‘छत्तीसगढ़ी’ बोली आय के भासा एखर ऊपर प्रस्न खड़ा कर दिन। हल्ला होय ले लगगे के ‘वियाकरन कहां हे?’ कुछ सिक्छाविद् अउ साहित्यकार मन ये बात ल सामने लइन के बियाकरन के रचना तो हीरालाल काव्योपाध्याय ह 1885 म करे रहिन हे। ये वियाकरन के अंग्रेजी अनुवाद मि. ग्रियर्सन ह करीस अउ ओखर परकासन एसियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल (खण्ड एलआईएक्स-खण्ड 1 और 2) म घलो होय रहिस हे। ये वियाकरन के परकासन 225 पेज म होय रहिस हे। एखर हिन्दी पाण्डुलिपि गंवागे। ओखर बाद 1921 म गियर्सन, हीरालाल अउ लोचनप्रसाद पांडे तीनों झन मिलके अंग्रेजी वियाकरन के हिन्दी अनुवाद करीन। ये समय तक हिन्दी वियाकरन तैयार नई होय रहिस हे। एखर बाद छत्तीसगढ़ के ही नार्मल इसकूल रायपुर के सिक्छक कामता प्रसाद गुरू ह हिन्दी वियाकरन तैयार करीन। मतलब छत्तीसगढ़ी वियाकरन के बाद हिन्दी के वियाकरन लिखे गीस।
ग्रियरसन ह छत्तीसगढ़ी भासा के वियाकरन ल विस्व म उजागर कर दिस। दुनिया के मन ल छत्तीसगढ़ी भासा के जानकारी हो गे। कुछ अनाड़ी मन छत्तीसगढ़ी भासा के विरोध करत रहिन हे। ये ह बोली आय, एखर वियाकरन कहां हे? अतेक गोहार पारत रहिन हे, अइसना बेरा म जरूरी होगे के ये छत्तीसगढी भासा के वियाकरन ल छत्तीसगढ़िया मन के आगू म रखे जाय अउ ये विरोधी मन के मुंह म तमाचा मारे जाय। ये काम ह घलो पूरा होगे। रमेन्द्रनाथ मिश्र अउप्रभुलाल मिश्र ये अंग्रेजी वियाकरन के अनुवाद करके अउ संपादित करके परकासित कराए हावयं। ये ‘छत्तीसगढ़ी बोली का व्याकरन’ पुस्तक म छत्तीसगढ़ी साहित्य के जानकारी देय गे हे, जेन ल आज सबला जाने के जरूरत हे।
ये वियाकरन पुस्तक ल जेन ह विस्व इस्तर म सवा सौ साल पहिली पहुंचगे हावय तेने ल मानक मानके छत्तीसगढ़ी भासा म एकरूपता लाना चाही। येमा एक सब्द के कई सब्द देय गे हावय, कोनो मेर ये नई लिखाय हे के अमुक सब्द ह सही अउ अमुख ह गलत।
एक वचन अउ बहु वचन के उदाहरन हावय-सब्द हे-छेरी – छै सब्द सब, सबो, सब्बो, जम्मा, जमौ, जम्मो बहुवचन म देय हावय। कखरो भी उपयोग करे जा सकथे।
सब छेरी, सबो छेरी सब्बो छेरी
जम्मा छेरी, जमौ छेरी, जम्मो छेरी
कोनो- कउन सब्द के परयोग होय हावय, आजकल कई झन येला कोनो कौउन लिखे बर जोर देवत हावंय तेन मन ल ये वियाकरन ल पढ़े के जरूरत हे। येखर अलावा पेज 66-67 म एक अवधिपूर्ण भविस्य म ग्राम्य अउ सभ्य के खण्ड म एक वचन अउ बहुवचन के बारे म लिखे हावय। येखर ले आज के भासा के लड़ई अपने अपन खतम हो जही। ये बात आज ले 125 साल पहिली लिखे गे हावय। ये सोचे के बात आय के हीरालाल जी भासा के विस्लेसन कतेक बारिकी ले करे रहिन होही। ये बात तो स्पष्ट हे के छत्तीसगढ़ी भासा के दू वर्ग हावय, येमा विरोध दूसर वर्ग ह करत हावय। छेत्रीयता के बात येमा नइए। येखर ले ये बात तो साफ हावय के येमा देय छत्तीसगढ़ी जेन ह विस्व इसतर म पहुंचे हावय तेन ह हमर मानक आय। बाद म येमा सब्द के रूप बिगड़त गीस होही पूरा पुस्तक म ‘है’ के उपयोग करे गे हावय, मैं ह ‘हे’ के उपयोग करथंव, बहुत झन मन ‘हे’ अउ कुछ मन ‘है’ के उपयोग करथें। येला अउ बने ढंग ले देखे के जरूरत हे। ये ह प्रूफ के गलती तो नोहय? ‘मैं काम करेंव’ होना चाही पर ‘मैं काम करेव’ लिखाय हे, इहू ल देखना जरूरी हे।
पेज 101 म ग्राम्य बोली के हिन्दी अनुवाद देय गे हावय, ये ह छत्तीसगढ़ी सीखे म मदद करही। कुछ आपसी संवाद देय गे हे जेमा तीनों काल म बात करे गे हावय। ये ह भासा सीखे म मदद करही। ये गोठ बात म पर्यावरण के पीरा दिखथे, एक जगह कहे गे हावय ‘दूध दही को जानी कैसन होय गय। संसार ले उठ कस गइस न। हमरे गाँ के बात नई अय, जहाँ गोहड़ी है उहाँ घलाय दूध-दही के दुकान हो गैन। ये हर कलजुग के परभाव अय हो। अउ चरागन भुइयां घले जोताय गइस।’
‘अकाल के पीड़ा घलो हावय’ इंदर राजा समे सुकाल करही तो ऐसो बमनीडीहि ले दू ठन दूहा गाय लाने के विचार बांधे हाँ।
पुस्तक के सुरू म हैहय सासक राजा अमरसिंह के कुछ गीत देय गे हे। 1735 म ये गीत के रचना राजा जी करे रहिन हे। ये गीत म छत्तीसगढ़ी के अइसना सब्द के परयोग होय हे जेन ह हिन्दी म नई मिलय।
अंत म कहावत, जनौला के संग-संग दोहा देय गे हावय। ददरिया के सुग्घर रूप लिखाय हावय आज के गीत लिखइया मन ल येला जरूर पढ़ना चाही। ‘रामायण के कथा, ढोला के कहिनी, चंदा के कहिनी’ के जानकारी घलो मिल जथे। ये हीरालाल के वियाकरन म पूरा छत्तीसगढ़ी साहित्य समाय हावय।
रमेन्द्रनाथ मिश्र अउ प्रभुलाल मिश्र के छत्तीसगढ़ के मन आभारी हें जेनमन ‘हीरालाल काव्योपाध्याय’ के ‘छत्तीसगढ़ी बोली का व्याकरन’ ल अनुवाद करके सबके आगू म लइन। ये अनुवाद ग्रियर्सन के अंग्रेजी अनुवाद के हूबहू हिन्दी अनुवाद आय। येला सबला देखना अउ पढ़ना चाही।
हीरालाल संगीत के जानकार रहिस हे। बंगला एकेडमी ऑफ म्युजिक के निर्माता सर सुरेन्द्र मोहन टैगोर ह 1885 म ‘शाला गीत चंद्रिका’ गीत माला बर रजत पदक देय रहिस हे। ‘नवकाण्ड दुर्गामन’ बर हीरालाल ल ‘काव्योपाध्याय’ के उपाधि मिलिस अउ सोन के एक बाजूबंद इनाम म मिलिस। वोमन ये वियाकरन ल लिख के अपन भासा अउ अपन माटी के करजा ल छूट दिस। हीरालाल छत्तीसगढ़ के हीरा रहिस हे।
ये अनमोल पुस्तक के मूल्य पांच सौ रुपिया हावय। एक आम मनखे बर येला खरीदना बहुत कठिन हे। येखर परकासन राजभासा आयोग दुवारा एक सौ या एक सौ पचास रुपिया ले जादा नई होना चाही। आज ये पुस्तक ल छत्तीसगढ़ के हर घर म पहुंचाय के जरूरत हे। ऑफिस के माध्यम ले या फेर पढ़ईया लइकामन के माध्यम ले। येला जनसामान्य तक पहुंचइया मन ल बधई।
सुधा वर्मा