धुर्रा-गर्दा ल झटकारे के जरूरत – गुड़ी के गोठ

मोला जब ले ये बात के जानबा होइस के इहां भगवान भोलेनाथ ह माता पार्वती संग सोला साल तक रहिके अपन जेठ बेटा कार्तिकेय ल वापस कैलाश लेगे खातिर डेरा डार के बइठे रिहीसे, तब ले मोर मन म एक गुनान चालू होगे के त फेर आज हमन ल छत्‍तीसगढ़ के जेन इतिहास देखाए जावत हे, वोहर आधा-अधूरा अउ बौना हे, जेला फेर नवा सिरा ले लिखे के जरूरत हे।
अभी तक इहां बगरे किताब मन के माध्यम ले सिरिफ अतके ज्ञान पाये रेहेन के छत्‍तीसगढ़ के इतिहास ह रमाएन अउ महाभारत कालीन हे। फेर अब जानेन के सिरिफ अतके नहीं भलुक ए माटी के जुन्ना इतिहास सृष्टिकाल संग जुड़े हे, जेला युग निर्धारण के दृष्टि ले सतयुग घलोक कहि सकथन। त फेर मन म इहू बात उपजथे के इहां जे मन ल हमन इतिहासकार के रूप म जानथन वो मन ए सब बात ल काबर नइ लिखिन। त एक बात झक ले आगू म आ जथे के इहां जतका भी इतिहासकार होए हें, उन सबो के ज्ञान से स्रोत उत्‍तर भारत ले आये धारमिक ग्रंथ मन रेहे हें, एकरे सेती उन उहां ले जुड़े घटना संग जोड़-जाड़ के छत्‍तीसगढ़ के इतिहास ल लिख दिए हें। तभे तो वो इतिहास ल इहां के मूल संस्कृति अउ धारमिक रीति-रिवाज संग जोड़ के देखबे त अन्ते-तन्ते जनाथे।
इहां के गांव-गांव अउ घर-घर म बूढ़ा देव, ठाकुर देव, साड़हा देव, शीतला दाई जइसन देवी-देवता काबर मिलथे? राम अउ कृष्ण संग जुड़े या ए मनला कुल देवता के रूप म काबर नइ पाये जाय? कहूं छत्‍तीसगढ़ के धारमिक अउ सांस्कृतिक इतिहास सिरिफ रमाएन अउ महाभारत कालीन होतीस त निश्चित रूप ले राम अउ कृष्ण ह इहां घरो-घर कुल देवता के रूप म बिराजे रहितीस। फेर अइसन नइहे छत्‍तीसगढ़ ह सतयुग माने भगवान भोलेनाथ के संस्कृति ल जीथे तेकर असल कारन हे ये माटी के इतिहास ह सतयुग माने सृष्टिïकाल तक जुन्ना हे। जेला फिर से लिखे-पढ़े अउ जनवाए के जरूरत हे।
बस्तर म एक लोकगीत मिलथे जेकर मुताबिक भगवान भोलेनाथ अउ माता पार्वती ह अपने जिनगी के सोला साल तक इहां रहिके अपने जेठ बेटा कार्तिकेय ल कैलाश लेगे खातिर मनावत रिहिन हें। हमन ल धरम ग्रंथ के माध्यम ले ए जानकारी मिलथे के भगवान गणेश ल वोकर चतुराई अउ तेज बुद्धि के सेती प्रथम पूज्य के आशीर्वाद दे दिए गे रिहीसे, तेकरे सेती आज घलो जम्मो किसम के धरम-करम के कारज म हमन गनेश के ही सबले पहिली पूजा करथन। इही प्रथम पूज्य के आशीर्वाद के सेती वोकर बड़का भाई कार्तिकेय ह रिसा के दक्षिण भारत म आके रेहे बर घर लिए रिहीसे। तब भगवान भोलेनाथ अउ माता पाïर्वती ह वोला वापिस कैलाश लेगे खातिर छत्‍तीसगढ़ के बस्तर म आके सोला बछर तक रिहीन हें।
निश्चित रूप ले एहर छत्‍तीसगढ़ खातिर गौरव के बात आय। शायद, एकरे सेती इहां के जम्मो मूल संस्कृति म शिव अउ शिव परिवार ह रचे-बसे हावय। ए कालम के अंतर्गत मैं ह इहां के मूल संस्कृति अउ मूल धरम के कतकों पइत चरचा कर डारे हावौं जेकर ले ए बात साबित हो जाथे के हमर इतिहासकार अउ संस्कृति मर्मज्ञ मन हमन ला इहां के मूल संस्कृति अउ इतिहास के बलदा उत्‍तर भारत ले आए ग्रंथ मन के मापदण्ड म चुरो-पको के उहां के रूप म इहां के संस्कृति अउ इतिहास ल देखाए-बताए हें।
ए बात ल सबो जानथें के इहां के मूल निवासी शिक्षा ले, पढ़ई-लिखई ले कतकों कोस दुरिहा रिहीन हें। एकरे सेती उन अपन गौरवशाली संस्कृति अउ इतिहास ल नइ लिख पाइन। इही बात के फायदा उठावत बाहिर ले आके इहां बसे मनखे मन अपन संग वोती ले लाने संस्कृति अउ इतिहास ल इहां के रूप म लिख-पढ़ के रख दिन। इही कटु सत्य आय जेकर सेती इहां के मूल संस्कृति अउ इतिहास ह किताब म बगरे संस्कृति अउ इतिहास ले अलग दिखथे। अब जब इहां के मूल निवासी मन घलो पढ़-लिख डारे हें, अउ संग म ए समझ डारे हें, के हमला जेन बताए अउ पढ़ाए जावत हे, वो हर हमर नहीं भलुक आने क्षेत्र के संस्कृति अउ इतिहास आय त निश्चित रूप ले वो बाहिर के संस्कृति अउ इतिहास ल अपन-अपन मुड़ ले उतार के इहां के संस्कृति, गौरव अउ इतिहास ल चढ़ाना चाही, अपन ल मानना चाही।
सुशील भोले
41191, डॉ. बघेल गली
संजय नगर, टिकरापारा, रायपुर

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One Thought to “धुर्रा-गर्दा ल झटकारे के जरूरत – गुड़ी के गोठ”

  1. Soche ke laik baat likhe haabe .. ye baat sahi he ki har gaon me thakur devata auv budha dev jaisan devi davata milathe .. ye baare me auv research ke bahunt jarurat he ..

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