Categories: कविता

नवा साल आगे रे

नवा साल आगे रे, अपन जिनगी ल गढ़।
मुड़ के पाछू मत देख, आघू-आघू बढ़॥
पहागे रात करिया,
आगे सोनहा फजर।
सुरूज उत्ती म चढ़गे,
किसान खेत डहर॥
खोंदरा ले चिरइया बोलै, चींव-चींव अडबड़।
नवा साल आगे रे, अपन जिनगी ल गढ़॥
दु हजार दस फेर
कभू नइ तो बहुरय।
घर बइठे तरिया भर,
पानी नइ तो पुरय॥
दाई-ददा के पुरखौती, चीज म मत अकड़।
नवा साल आगे रे, अपन जिनगी ल गढ़॥
अंधवा बर आंखी बन,
भैरा बर कान जी।
कोंदा बर मुंह बन,
अप्पढ़ बर गियान जी॥
खोरवा, लुलवा मन के, अंगरी ल पकड़।
नवा साल आगे रे, अपन जिनगी ल गढ़॥
बोली, भाखा, जात, धरम म,
मनखे ल मत बांटव।
भाई चारा मया पिरीत के,
रूखवा ल मत काटव॥
फरव-फुलव हरियावाव, खोवव अपन जड़।
नवा साल आगे रे, अपन जिनगी ल गढ़॥
कौशल कुमार साहू
मु.फरहदा
भाटापारा-493118
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