आज जरूरत हे अइसना साहित्यकार के जेन ह छत्तीसगढ़ के धार्मिक राजनैतिक अऊ सामाजिक परिवेस के दरसन अपन लेखन के माध्यम ले करा सकय। बिना ये कहे के मैं ह पहिली नाटककार आवं के कवि आंव। आज के कुछ लेखक मन ये सोच के लिखत हावंय के मैं ह कोन मेर फिट होहूं। जल्द बाजी म लिखे साहित्य आज के छत्तीसगढ़ के परिवेस के दरसन नई करावय। अइसना सबो लेखक नई करत हावंय फेर कुछ मन के इही स्थिति हावय।
डॉ. खूबचंद बघेल ये छत्तीसगढ़ के धरती के पहिली नाटककार आय। वो ह ये सोच के नई लिखे रहिस हे के वो ह पहिली नाटककार हो जही। 1920-30 के बीच म नाटक विद्या चरम सीमा म रहिस हे, नाचा, गम्मत के माध्यम ले सामाजिक स्थिति, समाज के गंदगी ऊपर बियंग प्रस्तुत होवय। येला देख के मनखे के मन दिमाग जागरित हो जाय। अंग्रेज के दासता म जकड़े मनखे ह अपन जाति, भेदभाव, छुआछुत अऊ मालगुजार के अत्याचार ल झेलत रहिस हे। अइसना बेरा म जरूरत रहिस हे एक अइसना विचार परगट करे के जेन सब ल जगा देवय।
ये सामाजिक पीरा खूबचंद बघेल के मन ल दंदोर दिस अऊ ऊंहा ले निकलिस ‘ऊंच-नींच’ येखर बीज मिल रहिस हे। अंतरात्मा बर्छिया के हुक्कापानी बंद होय ले। काबर के वोमन नाई के काम करे रहिन हे। ये नाटक के मंचन होईस। सामाजिक परिवर्तन होईस। अइसना लेखक बहुत भाग्यशाली होथे जिंखर नाटक या कहिनी के मंचन होथे।
डॉ. खूबचंद बघेल के दूसर नाटक आजादी के बाद लिखे गीस करम छड़हा। ये नाटक वो दौर म लिखे गीस- जब गांव के मनखे सिक्छा अऊ रोजगार बर सहर डाहर आवत रहिस हे। जब ऊंखर स्थिति कइसना रहिस हे। डॉ. साहब बहुत बारीकी ले समाज के परिवार के स्थिति ल देखे रहिन हे। तभे एक जीवन्त नाटक के लेखन कर सकिन। ये नाटक के हर पात्र अपन असन लगथे। आज ये नाटक पढ़ के लइका ह ओ बेरा के सामाजिक स्थिति ल समझ सकथे।
चीन के हमला अऊ भारत के स्थिति, नाटक जनरैल सिंह म दिखाई देथे। नाटक म छत्तीसगढ़ प्लैटून बनाये के मन्सा ल डॉ. साहब अपन कलम ले अइसे लिखे हावय के मंसा के संग-संग छत्तीसगढ़ के मनखे मन के फौज के प्रति उदासीनता दिखाई देथे। जब ये नाटक के मंच 1973-74 म रंग मंदिर म ‘पहाती सुकुवा’ के माध्यम ले प्रस्तुत होईस तब फौज म छत्तीसगढ़ के मनखे मन के संख्या बाढ़े तो लगगे।
ओखर बाद अइस ‘गरगहा’ गरगहा म समाज म बगरे अइसे गंदगी ल बाहिर लाने रहिन जेन मन मंडी म बेचे बर रखे धान के चोरी कोन करथे, कइसे करथे। फेर एक बेर समाज म बगरे बुराई ल आगू म हिम्मत करके लिखिन। ऐमा राजनैतिक पक्छ घलो हावय।
ये नाटक मन ल पढ़े के बाद आज के लइका ये बात ल जान सकथे के वो समय म छत्तीसगढ़ के सामाजिक, राजनैतिक स्थिति कइसना रहिस हे। ये होथे एक लेखक के मन के पीरा, लालसा, चाहत खुशी जेन ह रचना म झलकथे। मन म एक भाव उठथे, वो भाव ह अतेक हिलोरा मारथे के कलम ओला दिसा दे देथे एक सुग्घर रचना तइयार हो जथे। ये रचना या लेखन ल ये भाव के संग प्रस्तुत करे के मतलब ये नई रहिस होही के मैं पहिली नाटककार बनहूं। आज तो हमू मन ल ये सोचे के जरूरत हावय। डॉ. खूबचंद के पुन्यतिथि के दिन साहित्यकार रचनाकार मन अपन ये अपन विचार ल राजिम के संगम म बोहा के सरदधांजली देना चाही अउ नवा सोच के संग कलम पकड़ के खड़े हो जाना चाही। अपन कलम ले छत्तीसगढ़ के हर पक्छ ऊपर निस्पक्छ ढंग ले लेखन करे के संकल्प लेना चाही। सब लेखक एक दूसर ल बिन काटे भोंगे, एक दूसर के मदद करत प्रोत्साहित करत लेखन करही तब छत्तीसगढ़ में एक साहित्य के अइसना कोठी बनही जेमा कोनो भी परकार के सुरही तीर म नई आवय।
डॉ. खूबचंद बघेल बर इही हमर सबले बड़े सरदधांजली होही। हमर साहित्य ले डॉ. साहब के नाटक कस आज के छत्तीसगढ़ ल अवइया सौ साल बाद सब जानहीं के जबान होवत छत्तीसगढ़ कइसना रहिस हे कोन से सुख-दुख ल झेले हावय। हमर संस्कृति म कइसना परिवर्तन होय हे येला जानही।
सुधा वर्मा