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नान्हे कहिनी : डोकरा-डोकरी के झगरा

डोकरा-डोकरी के झगरागांव म एक ठन घर में डोकरा-डोकरी रहय। एखर मन के लोग-लइका नई रहिस। डोकरा-डोकरी अतका काम-बुता करय के जवान मनखे मन नई कर सकंय।
अपन खेत-खार ल अपनेच मन बोवय अपनेच मन निंदय-कोंड़य। बुता-काम ले थोर-बहुत ठलहा होवय त छांव म थोर-बहुत संगवारी मन करा गोठ-बात करे के मन होथे। एक दिन डोकरा हर बुता-काम ले आइस घर म बढ़िया खा के निकलिस बर छांव मेर। जिंहा एक घुमक्कड़ टुरा मन बइठे रहयं। उही मेर रमेश (धोनी) नाम के लपरहा पुच-पुचहा टुरा तको बइठे रहय। अब येती डोकरा ओखरे मन के आघू म बइठ जाथे। बबा ल टुरा पुचपुचहा रमेश (धोनी) पूछथे कस डोकरा, आज अउ फिलिम देखे नई गे हस। ओह दिन छत्तीसगढ़ी फिलिम देखे गे रहेस त हमू मन ल कुछु-कुछु बता न। डोकरा हर कइथे तहुं मन देखे बर चल दव। टुरा मन कइथे- हमन छत्तीसगढ़ी फिलिम नई देखे जान हमन ल बने नई लागय। डोकरा फेर ओ मन ल पूछथे, कस रे हिन्दी फिलिम बने रइथे। सब टुरा मन हां कइथे। डोकरा बिहान दिन खा-पी के शहर चल देथे हिन्दी फिलिम देखे बर। येती डोकरी हर हड़बड़ागे कहां चल दीस कहिके। सब आरा-परोस ल पूछ डारिस। कोनो नई देखे हन कहयं। डोकरी ल खोजत-खोजत ले संझा हो जाथे तइसने डोकरा हर घर आ जाथे। येती डोकरी हर भात-साग रांधे बर आगी बार डारथे चूल्हा म। साग पउलत-पउलत गे डोकरा ल पूछथे- कस डोकरा, तैं बिहनिया के कहां गे रहेस अभी आत हच। कहुं नई गे रहेंव डोकरी। ओ फलाना के तबियत खराब हे तेकर मेरा शहर गे रहेंव। डोकरी चुप हो जाथे अपन साग-भात ल बढ़िया रांधथे। डोकरा-डोकरी दूनो झन खाय बर भिड़ जाथें खा-पी के अपन-अपन दसना म सुते बर चल देथे। डोकरा हर रेंगई म थके रइथे नींद जल्दी आत रहिस। येती डोकरी हर डोकरा ल कइथे कस हो डोकरा मैं एक ठन तुमन ल गोठ कहत हंव नाराज झन होवव। डोकरा नींदे-नींद म कइथे काय गोठ आय बता। डोकरी कइथे- मोला एक ठन जुन्ना किस्सा सुना देते का अबड़ दिन होगे हावय सुने। डोकरा कइथे- आज सुत डोकरी मोला नींद आथे। तभो ले डोकरी नई मानिस फेर कइथे- ये डोकरा एक ठन सुना देवा न ओ चुरकी-भुरकी वाला अबड़ दिन होगे सुने न बास गीत, न भरथरी गीत, न लोरिक चंदा, सुआ गीत, भोजली गीत सब नंदागे, डोकरा मोला एक ठन जुन्ना किस्सा सुना देतेव। डोकरा खटिया ले उठिस अउ डोकरी ल खटिया ले चेचकार के उठा दिस। अब एको घांव झन कइबे नई तो घर ले निकाल देहूं। डोकरी खिसिया के कइथे, तैं रात दिन फिलिम देखे बर जाथस मैं तो तोला कुछु नई कहवं। आज मैं तोला एक ठन जुन्ना किस्सा सुना दे कहत हावव त मोला चेचकारत हावच। अइसे-तइसे डोकरी-डोकरा के झगरा हर रात भर पुरगे। बिहनिया होइस त डोकरा हर नहा के आगे। तेल -फूल चुपर डारिस। भात-बासी खाके शहर चल दीस। संझा के बेरा आइस त डोकरी बर एक ठन रेडियो बिसाके लाइस। तेन दिन ले डोकरा-डोकरी के झगरा हर माढ़ गे। काबर हमर जुन्ना संस्कृति हर रेडियो म प्रसारण होथे। डोकरी हर सब छत्तीसगढ़ी गीत सुनय।
श्यामू विश्वकर्मा
नयापारा डमरू
बलौदाबाजार
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