नान्हे कहिनी : लबारी

‘रामलाल कथे भाई मेहा दसमी पास होगेंव, ये ले मोर अंकसूची कहिके देखाय बर धरथे त देखथे पेपर ह ओकर ले गायब हो जाय रथे।
वोला पेपर पढ़इया मन धरके लेग जाय रथे। रामलाल ल अड़बड़ दु:ख होथे। बिचारा के पीरा पहाड़ कस हो जथे।’
रामलाल बहुत खुश रिहिस अपन अंकसूची ल देखके वोला जतन के पेपर म तोप के अपन दुकान म लइस अपन बड़े भाई ल देखाये बर, भाई दुकान म नई राहे। अपन भाई के रद्दा जोहत-जोहत अंकसूची ल टेबुल म मड़ा दिस। ओखर भाई ह आ जाथे त रामलाल कथे, भाई मेहा दसमी पास होगेंव, ये ले मोर अंकसूची कहिके देखाय बर धरथे त देखथे पेपर ह ओकर ले गायब हो जाय रथे। वोला पेपर पढ़इया मन धरके लेग जाय रथे। रामलाल ल अड़बड़ दु:ख होथे बिचारा के पीरा पहाड़ कस हो जथे। तीर-तखार अउ आजू-बाजू पड़ोसी मन ल पूछथे तभोले कुछु पता नई चले।
एक दिन ओखर संगवारी मन आ के कथें कोनो घबराए के बात नइए। बड़े ऑफिस म आवेदन लगाय ल परही ताहन मिल जही। दूसर दिन जा के आवेदन लगा डरथे त बड़े बाबू कथे- ‘तीन दिन बाद आबे।’ रामलाल अपन संगवारी मन सन तीन दिन, बाद फेर बड़े ऑफिस जाथे अऊ कथे- ‘मोर अंकसूची बनगे का सर’ त बड़े बाबू कहिथे- ‘चलो अभी यहां से जाओ दो दिन बाद आना अभी बना नहीं है।’ कहिके धुतकार देथे त रामलाल फोक मारत गोठियाथे, ”सर पाके बिहारी मोर अंकल हरे उही मोला बताइस हे कि अंकसूची बनगे कहिके”, अतका सुन के बड़े बाबू धकर-लकर ओखर नाम ल पूछथे अउ अंकसूची ल दे देथे।
जितेन्द्र कुमार साहू ‘सुकुमार’
चौबेबांधा राजिम

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