नान्‍हे कहिनी : रोजी

करे के इच्छा नई हे त छोड़व महराज! एहि साल भर पूरा करे के किरपा करव। भागवत घर हर बछर सत्यनारायण कथा अउ शंकर पूजा होवय।
दू तीन पीढ़ी ले चलत रहिस हे। बड़ सुग्घर लगय, गांव भर के मनखे आवै, कथा सुने ल, परसाद झोकेल। भागवत के मन अउ अंगना दूनो भर जाय। फेर जम्मो आनंद मजा, किचकिच हो जय, महराज के भाव बियाना म।
बबा जमाना म खाये बर खपरा न पीये बर पानी रहिस तेन दिन एहि गंवई के सहारा, रहिस हे, जीनगी के गुजारा इंहे ले होवय। फेर अब दिन गुजर गे हे। महराज अब डॉक्टर होगे हे हजारों रूपिया सोटियाथे। ओहू मरीज मन संग हंसी ठिठोली करत, गप मारत। अइसन म, दिन भर भूखे पियासे रेंकना अउ दू-तीन सौ रूपट्टी पाना, घाटा के सउदा लगय। येखरे टेंकय अउ माध्य घलो ‘इतना कमाने में तो हमें एक घटना भी नहीं लगता। यहां फालतू चिल्लाते हैं।’ महराज अब रोजी पारना चाहत राहय। भगवान घलो हर बरिस बढ़ावय चढ़ोतरी, फेर महराज जी के हिसाब से बहुत कम।
आज फेर पूजा होवत राहय। दस मिनट होगे रहिस भागवत ल चाउर फूल धरे महराज ल मनावत। भागवत फेर कहिस ‘का करबो महराज! अपन परेम, अपन आंसू, अपन छत्तीसगढ़िये म भगवान ल मनाये के कोसिस कर लेबो। नई मानहि त का करबो, ओहि पुस्तक ल देखके हमू पूजा करबो, मंतर, इस्लोक पढ़बो। देवी देवतन, भगवान ल तो परेम से संस्कीरित म प्रारथना करइया चाहि वाला काखर धन ये ऐखर ले कोनो मतलब नई राहय। का करबो महराज! यहि एक…। खैरअभी आपमन के हाथ जोरत हन, निपटावव। आप मन जतेक चाहत हव, ततके चढ़ाबो, फेर चलव…।’ कहत भागवत महराज के हाथर म छोड़िस चाऊंर-फूल।
तेजनाथ
बरदुली पिपरिया
कबीरधाम

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