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व्यंग्य

नेताजी ल भकाड़ूराम के चिट्ठी

परम सकलकरमी नेता जी राम-राम अरे! मैं तो फोकटे-फोकट म आप मन ल राम-राम लिख पारेंव। आप मन तो राम ल मानबे नई करव। राम-रावन युद्ध ल घलो नई मानव। तेखरे सेथी येहू ल नई मानव के ‘रामसेतु’ ल राम हर बनवाय रहीस। तुमन तो ये मानथव के रमायेन हर सिरिफ एकठन ‘साहित्य’ आय। कोनों परलोखिया बिधर्मी मन तुम ल अइसने हे बोलीन अऊ तुमन मान गेव नेताजी? खुरसी खातिर न? परदेसिया मन ला खुस करे खातिर, पइसा बनाय खातिर, ये सब खातिर। तब फेर ये जनता के आस्था का चीज ये? 
बिसवास का चीज ये? अब मोला समझ म अईस। नेताजी के हमर ‘सोन चिरइया’ हर घेरी-बेरी काबर बिदेसिया मन के गुलाम बनीस। तुंहर सरीखें ‘देशभक्त’ मन के कारन? आय न? बलिहारी नेताजी।
अब जब चुनई हर लकठियईस, तब तुमन ल लगीस के तुमन तो ‘दही के भोरहा मा कपसा ल खा पारेव।’ ‘राख के भोरहा म अंगरा ल छू परेव।’ तुम्हार हालत सांप छछूंदर कस होगे नेताजी। न उगलत बनत हे न लीलत। तुंहला पता हे के आदि भंवर के छाता में, नई तो दंतैया के घारा में हाथ डारहूं त पानी बूडे नई बाहंचव। तेकरे सेती तुमन पलटी मार देव। तुमन बोले लगेव के राम तो होय हे, फेर रामसेतु ल तो लंका ले लहुटत बखत ओ ह खुदे टोर दे रहीस हे। तुंहर दोगलापन म गजब के खबसूरती हे नेता जी। बिधानसभा के चुनाव तो निपटगे। लोक-सभा के चुनई होत तक इही चोला ल पहिरे रहव। तहां पाछू फटाक ले रंग बदल लेना। ठीक हे? नेता जी! तुम्हार कोंवर-कोंवर चरणारबिन्दु, मखमल ल छोंड़ के अऊ कुछु मा नई रेंगव, कहिथे। फेर अभी चुनई के सीजन चलत हे। तेखर सेती तुमन पाछू बछर भर होगे, पद खातिर पद जातरा करत हव। अभी तकलीफ उठाहू तभे तो मलई खाहू भई! अभी तुमन हमर जइसे गरीब गुरबा के झोपड़ी म आ के हमर बाल-गोपाल मन के रेंमट पोंछत हावव, हमर चटनी-बासी खावत हावव, भले पाछू कोती जा के उछर-बोकर देत होहू। तभे तो बोट पाहू भई। ये अलगे बात ये के, पद पा जाहू तहां पांच बछर तक हमर गली म तको खुसरे बर तुंहला पछीना छुटही। काबर कि तुमन बोट मांगेबर नौटंकी ल करथव। हमर दु:ख-पीरा सुनें के नांव म, तुमन ल पोचक्की मारथे। चुनई जीत के, हमार नेता बनके, पाछू तुम रजधानी म जा के चमचमा के बइठ जाथव। हमर पारा मा दिखबेच्च नई करव। इही ला कथें-‘नाम ग्रामीण बैंक, अऊ अस्थापना सहर में।’
नेताजी! ओ दिन तुमन बोलेव कि तुम दू जघा ले चुनई लड़हू। ठीक करहू। जब एक जघा के जनता तुंहर ऊपर भरोसा नई करय, तब तुमन काबर ऊंखर ऊपर भरोसा करहू? दू जघा ले चुनई लड़बे करहू। जऊन जनता तुंहर ऊपर भरोसा नई करत हे, ऊंकर मिहनत के पइसा घेरी-बेरी के चुनाव म फेंकात रहय, तुंहर का जाही? हां, एक ठन तुमन जबड़ गलती कर डारेव। जनता हा महंगई के चक्की म पिसावत हे, अऊ तुमन ये बोल देव के-‘हमारे पास कोई ऐसा बटन नहीं है जिसको दबाने से महंगाई कम हो जाय।’ नेताजी, भले तुंहर करा अइसन कोनों बटन नई हे, फेर जनता करा एक ठिक बटन हावय ‘बोटिंग-मशीन’ के बटन। जनता जब ये बटन ल चपक दिही न तब तुंहर कीम्मत कानी-कउड़ी के नई रहि जाही। तुंहर ‘महंगाई’ ल जनता एकदम ‘सस्ता’ कर दिही तब तुंहर अइरसा-बोबरा कस फुले मुंहु हर पोचक के तुतरू कस हो जाही। तुंहर मखना-कोंहड़ा कस फुले पेट हर ओसक के दुहनी कस हो जाही। तब तुमन जनता के किस्मत के बटन चपके के लइक नई रह जाहू। मुहुंला जादा झन फरकाय करो। अलहन हो जाथे।
नेता जी! यदि अलहन हो गे तब? माने तुमन चुनई हारगेव तब? का थोथना ओरमा के कलेचुप बइठ जाहू? नहीं-नहीं, मैं नई मानंव। जब तुम्हार कनिहा टूट जाही तब तुम दूसर के कनिहा झोझकाय के जुगाड़ करहू। फेर सुरता राखहू नेता जी दूसर ला पनिहाने वाला दाऊ के पनही, कभू-कभू दाऊच के मुड़ी म गिरथे। नेता जी! तुंहर ‘गरीब-परेम’ संसार-प्रसिद्ध हे। आपमन गरीब मन ल अब्बड़ परेम करथव। तेखरे सेती आप मन गरीबी ल नई हरावव। काबर कि हटे ले आपमन ल अइसे तकलीफ होही जइसे बोरिंग के सुखाय ले घर वाले मन ल होथे। गरीबी हटही तब गरीब नई रहीं त आप मन परेम काकर संग करहू? भगवान करय आपके परेम सदा हरा-भरा रहय। इही परेम हर आपके घर परवार ला हरा-भरा राखय।
तुंहर ‘दलित-परेम’ घलो बन्दना के योग्य ये नेता जी। आप मन दलित मन संग भी अघात परेम करथव। जऊन ‘पद-दलित’ होथें, उही मन आप ल पद म बइठारथें, तहां पाछू आप मन उन मन ल बडे मयां लगा के ‘दलित-दलित’ कहिथव। ‘पद’ आप करा रहि जाथे ‘दलित’ ऊंकर करा रहि जाथे। पाछू आपके पद चरन हर दलित मन के माथा ल मया लगा के चूमथे। ये पद-दलित-मिलाप हर देखे के लइक रहिथे नेता जी मन गदगद हो जाथे।
पद अऊ पइसा खातिर तो तुम अपना इमान-धरम तको बेच देता है। कितने में बेचता है नेता जी? अभी नई बतावव? ‘इस्टिंग ऑपरेसन’ म बताहू? ठीक हे भई हम टीबी म देख लेबो। हां, सुरता अईस। तुंहला ओ दिन टीबी म देखे रहेंव नेताजी। तुमन ‘चीयर-गर्ल्स’ ए मोर मतलब हे-‘ट्वन्टी-ट्वन्टी’ देखे गए रेहेव। कस नेता जी बार-बाला मन बार के भीतर नाच के अपन पेट भरथें, अऊन हर खराब हे, तब चेलीक मोटि यारी टूरी मन, अपन उधारे दे हें म नाचथें, तऊन हर बने कइसे आय नेता जी?
मुहुं चपका गे न? नइए कुछु जुआब? नेताजी पद के लोरस मा जुच्छा पानी हो गे हे? कुरसी खातिर तुम्हार धरम, तुम्हार संस्कीरती ल अंखफुट्टा मन ललकारत हें, ओकर संग खेल करत हव। अपन पागा मा ऊंकर पांव पोंछत हावव? का इही दिन खातिर हमन तुमन ल अपन नेता बनाय हावन नेताजी? इही दिन के खातिर? मन हर करू होगे। लेव एक ठिन दोहा सुन लव: अरे-रे-रे-रे भाई रे
सादा-सादा ओंढा पहिरे हें, दिल हावय करिया हो।
कोनो दू रंग वाले, कोनो तीन रंग वाले, घेंच मा डारे हें फरिया हो॥
तुंहर प्रशंसक भकाडूराम

के.के.चौबे
गयाबाई स्कूल के बाजू वाली गली
गया नगर , दुर्ग