ख्मंच मा परकास, मुनरी अंगना ला बाहरत हावय अउ घरि घरि बाहिर कोति झांकत हावय, बाहिर लंग गोधन गाना गात हावय, कुछु देर पीछू मुनरी भीतरिया जाथे। ,
गोधनः- सोना देवें सुनार ला, वो पायल बना दीस।
दिल देवें मुनरी ला, वो घायल बना दीस।।
ख्मुनरी फेर अंगना मा आके बाहिर झांके बर लागथे, दूनोंझन के नजर मिलथे, मुनरी लजाथे, गुलरी आ जाथे। ,
गुलरीः- अरे मुंॅहझौंसी! गला उठाके एती ओती का देखत हस?
मुनरीः- ख् घबरा के , कु— कुछु नींही दाई, बाहरत हों।
गुलरीः- कतका घ बाहरबे, ख् काकरो जाय के आहट होथे, , ओती कोन जवान पिट्टा ? ख् गोधन ला भागत देख लेथे। , अरे देखा, देखा सबो कोनो, ई जवान के छोरा, सबो ला थोरकुन लाज सरम नीए, संझा बिहनिया काकरो घर अंगना ला घूरत हावय।
औरत 1ः- का होइस मुनरी के माई! भरे संझा काबर हल्ला करत हावस?
गुलरी:- हल्ला नी करंव ता का करंव, ई गांव के सबो जुवान का बउरा गे हवें, संझा बिहनिया टाटी फइरका ला ढकलत रईथे, मैंहर कहत हवंव।
ख् छड़ीदार आथे ,
छड़ीदार:- अरे भउजी का होगिस, काबर अगास मुड़ मा बोहत हावस?
मुनरी:- दाई जान दे, चल भीतर।
गुुलरी:- तैंहर भीतर जाना, आज फैसला होके रिही, इ गांव के बेटी बहु के इज्जत हावय कि नीहीं।
छड़ीदार:- अरे भउजी होइस का?
औरत 1ः- होइस का ? ई मुंॅहझौंसा, गोधना मुनरी ला देखत रइथे, आप तंैइच बता छड़ीदार जवान टुरी, घर मा कोन्हों मरद नीए, ता कोन्हों मुंॅड़ी मा अगास नी बोहोही ता का करिही?
छड़ीदारः- बस भउजी! हामू सबो समझगे, आभी बुलात हावन, पंचाइत ला।
ख् उहां ले नरियाथे , सरदार हो सरदार, हो सरजुग, बटोरन, मंगरू, रमेसर,
ख् पाश्र्व मा संगीत, सबो जमा होथे अउ पंचाइत सुरू होथे। ,
सरदार:- कहा मुनरी के माई! का करिस हावय गोधन हर?
गुलरी:- ख् मुड़ी डांहक के , दुनों हाथ ला जोड़ के, , हामू का किहां, पंच परमेसर होथे, सबो देखिन हे, उ गोधन दिन मंझनिया, कतको पहन, हामर घर के चक्कर काटत रइथे, मोर बेटी ला देख देख के सनीमा के गीद गात रइथे। मोर गोसइयां नीए तभे तो। आप आपमन बिचार करा।
पंच 1ः- मैंहर बड़ दिन ले देखत रहेंव, एक तो दूसर गांव ले आके बसे हावय अउ आज ले कोन्हों पंच ला पांय नी परे हावय।
पंच 2ः- अरे पांय परई ला छांॅड़, देखते ता मुंॅहू ला अनते कर देथे।
दीवान:-अरे भाई तुमन आपन धुन बजात हावा, भाईमन आभी का करे बर हावे ओला सोचा।
सरदार:- देखा भाई गोधनवा मा जे आरोप हावय ओहर बड़ बड़खा हावय। येहर हामर समाज के दई बहिनी के बात हावय।
समाजी:- गोधनवा हे काहां?
छड़ीदार:- मनोजवा अउ परमोदवा गे हावय बलाय।
ख् मनोज अउ परमोद के संग गोधन आथे। ,
सरदार:- का रे गोधन! ई सब का सुनत हावन, तैंहर गुलरी घर के चक्कर काटथस, मुनरी ला देख के सनीमा के गीद गाथस।
ख् गोधन कछु किहां कहत रइथे, समाज मा हल्ला होथे। ,
औरत 1ः- अरे ई का किही! गांॅव भर जानत हावय, काकरो ले छिपाइस हे भला।
औरत 2ः- पुरैनहीन, ठीक कहत हवय।
आदमी 1ः- हां हां ! महूंॅ घलो देखे रहेंव।
ख् पंचाइत भर मा हल्ला होेय ब लागथे। ,
सरदार:- ख् मनखेमला चुप कराथे, , सांत रिहा, सांत रिहा, देख गोधन, तैंहर जे करे हावस, वो बड़ सरमनाक हावय, आज ले हामर टोला समाज मा , इसने कभू नी होईस हे, हामर समाज के बारोबरन मा इज्जत हावय, पूरा जिला जवार भर मा नांव हावय, चाहों ता अभीचे थाना पुलिस बलाके कोरट कछेरी के रस्दा देखा दों, पर टोला समाज के बात टोला मा रहय ता बने हावय।
पंच 1ः- ठीक बात ! एकदम ठीक बात।
गोधनः- पंच परमेसर, इ कइसे ठीक बात, महूंॅ!
छड़ीदार:- ये गोधनवा, तैंहर चोप , तैंहर चोप।
ख् पंचमन छड़ीदार ला सांत करथे ,
सरदार:- हांॅ ता भाईमन, सबो पंचमन बिचार करके ये तय करे हावन कि गोधन हर बड़ जुलुम करे हावय, एकरे बर अगर समाज मा रहे बर होही ता, गोधन ला दस रूपया जुरमाना अउ देवी माई के चैरा मा एक सेर घी चढ़ाय बर लागही, नी दीही ता आज ले समाज मा एकर हुक्का पानी बंद।
पंच1ः- ठीक बात ! एकदम ठीक बात। बोलो पंच परमेसर की जय।
समूहः- जय
ख् सब लोग चल देथे, सरदार, दीवान अउ छड़ीदार बांॅच जाथे। ,
छड़ीदार:- ख् माखुर निमारत, , आज समझ मा आगिस होही, का होथे गांव समाज अउ का होथे पंच।
ख्माखुर खात खात सबो हांॅसथे। ,
सरदार:- जुरमाना के कतका रूपया जमा होगे हावय?
दीवान:- दू ढाई सौ रूपया होगिस हावय।
सरदार:- ख् गंभीर होके, , बहुत दिन ले मन मा एकठन बिचार रिहीस।
छड़ीदार:- का सरदार जी?
सरदार:- सबो जाति के टोलामन मा पंचलैत हावय। ता हामूमन एकोठन लेथे का?
दीवान:- बड़बढ़िया सोचे हावा सरदार, काल रामनम्मी हावय, महुरत घलो बने हावय।
ख् हां हां कहत तीनों जाथे सूत्रधार आथे।,
सूत्रधारः- पीछू पन्दरा महीना के दांॅड़ जुरमाना के पैसा जमा करके महतो टोली के पंचमन पेट्ोमैक्स बिसाइन हे ई दारी, रामनम्मी के मेला मा, गांॅव
मा सबो मिलाके आठ पंचाइत मा दरी, सतरंजी, जाजीम, अउ पेट्ोमैक्स हावय, पेट्ोमैक्स ला गंवइयामन पंचलाईट कइथे, पंचलाईट बिसाय बर पंचमन तय करिन , जे दस रूपया बांॅच गे हावय,एकर पूजा के समान बिसा ली, बिना नेम टेम के कल कब्जाबाली जीनिस के सुरू नी करना चाही, अंगरेज बहादुर के राज मा घलो पुल बनाय के पहिली बलि दे जाय।
मेला ले सबो पंच दिनमान लहुंॅटिन, सबले आघू पंचाइत के छड़ीदार पंचलाईट के डिब्बा माथा मा बोहके अउ ओकर पीछू सरदार, दीवान अउ पंचमन।
ख् सबो आत हावय ,मस्ती मा झूमत रस्दा मा फुतंगी झा मिलथे। ,
सरदार:- राम राम पंडित जी।
फुतंगी:- राम राम ख् गौर से देखके , कतका मा लालटेन बिसाय ह महतो?
आदमी 1ः- आके देखा, बामन टोली के मनखेमन ला। दिन मा देखे नीही, देखत नीए पंचलाईट हावय।
आदमी 2ः- अरे इ पंडित मन आपन घर के चिमनी ला घलो बिजली बत्ती किहीं अउ दूसर के पंचलाईट ला लालटेन।
ख् महतो टोली के नौजवान मन बकलोल बामन के गीद गाके फुतंगी झा के मजाक उड़ाथे, सूत्रधार आथे, मंच मा जमो पूजा पाठ के समान के संग सबो गंवइयामन आय हावय।,
सूत्रधार:- टोली भर के लोग जमा होगिन, औरत, मरद, बुढ़वा, लइका, सियान, सबो काम धाम छांॅड़ के कूदत आईन, सबो के मुंॅहू मा एकेठन बात।
आदमी 3ः- चल रे चल , आपन मन के पंचलाईट आय हावय, आपन टोली के पंचलाईट, आप महतो टोली मा घलो रात भर अंजोर रिही।
छड़ीदार:- ख् कड़कत , हां हां दूरिही ले, थोरकुन दुरिहा ले, ठंेसा जाही।
ख् मंच मा अंधियार
मंच मा परकास, सरदार के अंगना मा मनखे मन के भीड़ लगे हावय।
पूजा के महौल बने हावय। ,
मुलगैनः- ख् समझात , देखा आज पंचलाईट के रोसनी मा कीरतन होही, बेसुरिहा मनखेमन ला पहिली कह देत हावों, आज यदि आय बर देरी होइस ता दूसर दिन ले एकदम बायकाट।
ख् औरतमन के मंडली मा गुलरी काकी गोंसाई गीद गात हावय, नान नान लइकामन मजा मा हल्ला करत हावय। ,
सरदार:- ख्हुक्का पीयत, , अरे जानत हो, जब पंचलाईट बिसायबर गेन ता, दूकानदार हर का किहीस?
आदमी 1ः-का किहीस सरदार जी?
सरदार:- ख् धुगिंया छांॅड़त , दूकानदार पहिली किहीस, पूरा पांॅच कोरी पांॅच रूपया लागही।
आदमी 2ः- अच्छा।
सरदार:- ख् मुचमुचात , फेर मैंहर मने मन सोचेंव, जे तैंहर डारा डारा ता मैंहर पाना पाना, कहेंव देखा दूकानदार साहेब, ये मत समझिहा, हामन एकदम देहाती हावन, बड़ बड़ पंचलाईट देखे हावन हामन।
आदमी 1ः- फेर का किहीस दूकानदार हर ?
सरदारः- अरे किही का? टुकुर टुकुर देखे बर लागिस, किहीस, लागत हावय आप जाति के सरदार हावव, ठीक हावय आप सरदार होके खुद
पंचलैत बिसाय आय हावो, ता जावा पूरा पांॅच कोरी मा आप ला देत हावों।
दीवान:- बढ़िया चेहरा चीन्हथे दूकानदार हर, पंचलैत के बाकस ला दुकान के नौकर नी देत रिहीस, मैंहर कहेंव देखा दूकानदार साहेब, बिना बाकस के पंचलैत ला कइसे ले जाबो। दूकानदार हर नौकर ला डांॅटत किहीस, का रे, दीवान जी के आंॅखि के आघू मा धर्रा छींचत हावस, दे दे बाकस ला।
ख् सबो झन मगन हावंय, सरदार अउ दीवान के तारीफ करत हावंय। ,
छड़ीदार:- जानत हो मुनरी के माई, रस्दा मा लानत रेहेन ता सनन सनन करत रिहीस पंचलैत हर। मोर तो डर ले करेजा धकधकात रिहीस रस्दा भर। डर के मारे अतरी पतरी सटक गे रिहीस।
ख् एकझन लइका बोतल मा माटीतेल लेके आथे, आप पंचलाईट ला बारे के समे होगिस। ,
औरत 1ः- संझा बाती के टेम होगिस, कहा दीवानजी ला, पंचलैत ला बारहीं।
सरदार:- हांॅ दीवान जी बारा, पंचलैत ला।
ख् दीवान हर सरदार के मुंॅहू ला देखथे, सबो एक दूसर के मुॅहू ला देखथें,
घोर निरासा होथे। ,
सूत्रधारः- सबो तियारी होगिस हावय, आज पहिली बार सरदार जी के सपना पूरा होवइया हावय, टोला भरके मन आज पंचलैत के रोसनी मा नहोइया हावंय, जिला जुवार भर मा महतो समाज के नांव होवोइया हावय,
लेकिन ऐन मौका मा, लेकिन लग के, पंचलैत बिसाय के पहिली कोन्हो नी सोचिन, बिसाय के पीछू घलो नी सोचिन, आप पूजा के समान चैका मा
सजाय हावंय, कीरतनिहा मन ढोल करताल खोल के बैठे हावंय, अउ पंचलैत परे हावय, गांव बालमन मा कोन्हों आज तक इसने जीनिस नी बिसाय रिहीन, जेमा बारे बुताय के झंझट रहय।
आदमी 1ः- कहावत हे ना रे भाई, गाय बिसाहूंॅ ता दूहही कोन? भुगता सजा ता लेवा मजा।
सरदार:- अरे भाई आप इ कल कब्जावाली जीनिस ला कोन बारे।
ख्आपस मा हल्ला होथे। ,
पंच 1ः- हामर बिचार रिहीस कि।
आदमी 2ः- रमेसर भाई हमेसा आधा बोली ला मुंॅहू मा राखथें, जे बोले बर हावय खुल के बोला भाई।
पंच 1ः- कहत रहेंव गुआर टोली के संकरवा ला बला लेथेंन।
छड़ीदार:- तैंहर घलो घूबेच कथस रमेसर, पहिली बार नेम टेम करके, सुभ लाभ करके, दूसर पंचइत के मनखे ला पंचलैत ला बरवाबो, एकर ले बने हे पंचलैत परे रहे।
दीवान:- हांॅ भाई, जिनगी भर के ताना कोन सहही, बात बात मा दूसर टोला के मनखे कूट करही।
सबो एके संग:- हां हां टोला समाज के इज्जत के सवाल हावय, दूसर टोला के मनखेमन ला झन किहा।
सूत्रधार:- चारो कोति उदासी छा गिस, अंधियार बाढ़े बर लागिस, पंचलैत आय के खुसी मा कोन्हों आपन घर मा आज चिमनी घलो नी बारे रिहीन, पंचलैत के आघू कोन चिमनी बारे। सबो करे कराय मा पानी फिरगिस। सरदार, दीवान , छड़ीदार काकरो मुंॅहू मा बोली नीए, पंचमन के चेहरा उतरगिस।
आदमी 1ः- कल कब्जावाली जीनिस के नखरा बड़ होथे।
लइका:- ख् कूदत कूदत आथे रोनी सूरत , दीवान काका राजपूता टोली के मन हांॅस हांॅस के पगला होत हावंय, कहत हावंय पंचलैत के आघू मा पांच घ उठक बैठक करें, तुरते बर जाही।
ख् मनखेमन ओला भगाथें ,
बूढ़वा :- रूदलसाह बनिया बड़ बातधरहा आदमी हावय, कहत रिहिस, पंचलैत के पम्पू बड़ होसियारी ले भरिहा।
सरदार:- भगवान हर हंसाय के मौका दे हावय, ता हांसिही नीही, हामर टोला समाज मा घलो ता एको आदमी नीए, जेहर इ झंझट बखेड़ा मा काम आही।
ख् सबो मायुस होके जाय बर लागथे, तभे मुनरी अउ एकझन टुरी खुसुर फुसुर करे बर लागथे। ,
दीवान:- का खुसुर फुसुर करत हावा ओती।
ख् सबोझन के नजर मुनरी कोती जाथे। ,
मुनरी:- ख्सोनारी ले,, कह ना सरदार जी ला।
सोनारी:- मैंहर नी कहों, तैंइच हर कह ना।
मुनरी:- पंचमन हर गोधन ला निकाल दीन हावंय।
छड़ीदार:- का खुसुर फुसुर करत हावा पंचाइत मा? जे बोले बर हावय, आघू मा आके कहव।
ख् मुनरी डरात सोनारी ला कथे,
मुनरी:- गोधन हर जानथे, पंचलैत ल बारे बर।
सबो एके संग:- का?
पंच 1ः- कोन? गोधन जानथे।
पंच 2:- लेकिन ओला तो ।
ख् सरदार हर दीवान कोति देखिस अउ दीवान हर पंचमन कोति, ,
सरदार:- ख् बेबस होके , अरे जाति के बंदिस का? जबकि जाति के इज्जत हर पानी मा बोहात हावय, कइसे दीवान?
दीवान:- बात तैंहर बिलकुल सही कहत हावस, सरदार । कइसे पंचमन?
सबो एकेसंग:- सरदार जी जे किही सबो ठीक हावय, हां भाई ठीक हावय, हां भाई ठीक हावय।
छड़ीदार:- परमोद! जाके देख तो गोधन ला।
ख् परमोद जाथ,े फेर लहुंॅट के आथे ,
परमोद:- गोधन आय बर राजी नी होवत हावय, कहत हावय पंचमन के का परतीत? कोन्हो कल कब्जा बिगड़ जाही, ता मोला दांॅड़ जुरमाना भरे बर परही।
छड़ीदार:- अरे भाई, कोन्हों तरह ले गोधन ला राजी करके लावा, समाज के इज्जत के सवाल हावय।
गुलरी:- रूक छड़ीदार, जरा मैंहर कहके देखंव।
ख् गुलरी काकी जाथे, फेर गोधन के संग आथे, चेहरा मा खुसी के रेखा झलकत हावय, गोधन माटीतेल पंचलैत मा डारे बर लागथे। ,
गोधन:-दीवान जी, इसपिरिट काहांॅ हावय? बिना इसपिरिट के कइसे
बरही।
ख् सबो के चेहरा मा एक घ फेर उदासी अउ चिढ़ ,
आदमी 1:- ले भला, अब ये दूसर बखेरा खड़ा होगिस।
आदमी 2ः- अरे इ सरदार अउ दीवान ला कुछू बुझाय सुझाय तो आय नीही अउ इ छड़ीदार ला तो बिना मतलब के ऐती के तेती।
औरत 1ः- काम के ना काज के , दुस्मन अनाज के, बेटा गोधन तैंइच हर कोन्हों उपाय बता?
गोधन:- कोन्हों बात नीही, थोरकन गरी के तेल लावा।
गुलरी:- मुनरी बेटी जा हामर घर ले तेल ले आ।
ख् मुनरी जाके तेल ले आथे, गोधन पंचलैत बारे लागथे।
धीरे धीरे सबो के चेहरा हर परकास अउ खुसी मा चमके लागथे। ,
सरदार:-वाह बेटा वाह! तैंहर जाति के इज्जत राख ले, तोर एक खून नीही, सात खून माफ हावय, तैंहर आप खूबेच गाबे सनीमा के गीद।
सबो मिलके:- बोला बजरंग बली की जय।
ख् जयकार ले पूरा मंच गूंॅज जाथे। ,
गुलरी:- गोधन आज रात मोर घर खाके जाबे।
ख् धीरे धीरे सबो चल देथें। मंच मा मुनरी अउ गोधन बांॅच जाथे, पाश्र्व मा एक रोमांचक संगीत बाजथे। दूनों एक दूसर के आंॅखि मा देखथे। मुनरी धीरे धीरे पंचलैत बुता देथे। ,
Regards :
Sita Ram Patel
07697110731