भास्कर : मड़ई के बिचार कइसे आइस?डॉ. कालीचरण यादव : रावत नृत्य के बहुत जुन्ना इतिहास हवै। हमर सहर म रावत नाच के समय बाजार बिहाना (बाजार परिक्रमा) के अलग परंपरा रहिस। बाजार के दिन रावत नृत्य दल सनिचरी बाजार आत रहिस अउ बाजार के एक भांवर घूम के चल देत रहिन। अंग्रेज मन के समय ले बाजार बिहाना के समय थाना म हाजिरी देहे के भी परंपरा रहिस। ए हा मोला अउ मोर कस बिचार वाला मन ल नई सुहात रहिस। फेर रावत नाच दल मन आपस म लड़त भी रहिन। ए सबके कारन समाज के छबि खराब होवत रहिस। एही ल व्यवस्थित करे अउ समाज ल संगठित करे बर मड़ई सुरू करे गे रहिस।
भास्कर : आप सरकार ले सहयोग नई लेवव, फेर अतेक बड़ आयोजन कइसे हो जाथे?
डॉ. कालीचरण यादव : ‘मड़ई‘ ल सफल बनाए म ‘मड़ई‘ के योगदान हवै। हमन सुरू म बिचार कर ले रहेन के सरकार तिर सहयोग मांगे नई जान। लेकिन खर्चा तो होथे। एखर उपाय ए करे गे के समिति ह ‘मड़ई पत्रिका‘ छपाना सुरू करिस। ए पत्रिका पूरा देस म निसुल्क बांटे जाथे। एमा केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा, संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली के सहयोग अउ विज्ञापन से मड़ई आयोजन के खर्चा पूरा हो जाथे। सील्ड ल दानदाता मन देहे हवै।
भास्कर : २५ साल हो गए। आप ल लागथे के मड़ई जउन बिचार से सुरू करे गे रहिस, ओहा पूरा होवत हवै? डॉ. कालीचरण यादव : ए बात के निर्णय त समाज ल करना हे। रहिस मोर बिचार त रावत बाजार के स्वरूप ल व्यवस्थित करे, समाज के छबि ल सुधारे अउ परंपरा के रक्षा करे के हमर उद्देश्य पूरा होवत हवे। आधुनिकता के असर ले राउत नाच आज दूर हवै। ‘अखरा ले बाजार बिदा‘ सब्बो परंपरा मड़ई म देखे जा सकत हवै। वइसे अभी बहुत काम करना हवै।
भास्कर : आयोजन समिति अब पढ़वइया लइकन ल पुरस्कार भी देत हवै। मड़ई से ए बात ल जोड़े के उद्देश्य?
डॉ. कालीचरण यादव : हमर उद्देश्य राउत नाच तक सीमित नई हे। समाज के गरीब बच्चा मन ल पढ़े-लिखे बर प्रोत्साहित करना भी हवै। ए म पइसा के नई, प्रोत्साहन के महत्व हवै। ऐखर लाभ ए मिलिस के लोग आज पढ़ाई के महत्व ल समझत हवै।
दैनिक भास्कर, बिलासपुर ले साभार