Categories
समीच्‍छा

पुस्तक समीक्षा : परिवार, व्यवहार अउ संस्कार के संगम ‘‘तिरबेनी‘‘

  • वीरेन्द्र ‘सरल‘

मनखे के काया में जउन महŸाम हिरदे के हे उही महŸाम साहित्य में कहानी के। कहानी कहंता के भाव अउ ढंग ह सुनइया के मन ला अइसे रमा देथय कि कहानी पूरा होय के पहिली मन ह अघाबे नइ करय। एक कहानी सिराथे तब मन ह दूसर कहानी सुने बर होय लागथे। फेर जब कोन्हो कहानीकार के लिखे कहानी ला पढ़ के कथा रस में डफोर के मजा लेना हे तब कहानी के भाखा अउ भाव के सबले जादा सजोर होना जरूरी होथे। भाखा कमजोरहा होथे तब कहानी के मजा ह आधा रही जाथे। अभीच-अभीच भाई चन्द्रहास साहू के कहानी संग्रह ‘तिरबेनी‘ पढ़े के मौका मिलिस। उखर लिखे कहानी के भाव अउ भाख ह महानदी के पबरित पानी जस कल-कल, छल-छल करत बोहावत पढ़इया के मन ला मोही डारथे। संग्रह के कहानी मन ला पढ़त मैं अचरज में पड़ के गुणे लागेंव कि हमर छŸासगढ़ी भाखा कतेक सजोर अउ पोठ हे अउ कतेक मिठास हे हमर भाखा म। कहानी के पात्र अउ घटना के बरनन करत कहानीकार ह अतेक सुघ्घर षबद मन के परयोग करे हे कि कहानी ह आँखी के आघू म सिनेमा जस सउंहत दिखे लागथे। हाना अउ ठेही हमर भाखा के सिंगार आय अउ मिठास ह आत्मा। ठउर-ठउर म हाना अउ ठेही के जउन परयोग चन्द्रहास भाई ह अपन कहानी म करे हावे ओखर जतका गुण गाय जाय ओहा कमती हे।




संग्रह के कहानी मन म हमर लोक परब, तीज-तिहार, घर-परिवार, हाट-बाजार, मड़ई-मेला, खेत-खार, जंगल-झाड़ी, रीति-नीति सब्बोच के गजब सुघ्घर बरनन करे हावे भाई चन्द्रहास ह। सबोच कहानी मन म जिनगी, देष अउ समाज के कोन्हों न कोन्हों गहरी बात ला बताय के जोखा मढ़ाय हे कहानीकार ह। ये संग्रह के सबले बड़े विषेशता तो ये आय कि येमे के कहानी मन म समाज के सबले जादा दीन-हीन मनखे जइसे देवार, गौरिया, गरीबहा, विधवा, बनिहार-भूतिहार के जिनगी के पीरा ल कहानीकार ह कागद म उतारे हे।
कुंदरा, का होगे, मया के सुरता अउ भदई कहानी म जइसे करनी तइसे भरनी के सीख हे तब गमत्तिहा अउ माटी म कलाकार के पीरा, छŸासगढ़िया जवान अउ मरजाद म देष के रक्षा खातिर षहीद होय जवान के षहादत के गरब के बरनन हे तब ओखर परिवार के पीरा के घला बरनन हे। अंजोर म नेत्रदान के महŸाम हे तब किरिया म वृक्षारोपण के संदेष, डाड़ म कन्या भ्रण हत्या के सजा हे तब मोंगरी म विधवा विहाव खातिर समाज बर संदेष। अंधविष्वास ह मनखे ला आँखी रहत अंधरा बना देथय। टोना-जादू, भूत-परेत, झाड़ा-फूंका जइसे अंधविष्वास ला छोड़के जब तक हम वैज्ञानिक सोच के विकास नइ करबो तब तक हमर उद्धार नइ हो सके। टोनही कहानी म इही सिखौना दे हे भाइ्र चन्द्रहास ह। उन्हला गाड़ा-गाड़ा बधाई देवत भरोसा करत हव कि अपन कहानी के माध्यम ले ओमन समाज ला नवा-नवा रद्दा देखावत रहही।

संग्रह के नाव-तिरबेनी, लेखक-चन्द्रहास साहू, समीक्षक-वीरेन्द्र सरल, मूल्य-275 रूपया