Categories: दोहा

फागुन के दोहा

कहूं नगाड़ा थाप हे, कहूं फाग संग ताल।
मेंहदी रचे हाथ म, अबीर, रंग, गुलाल॥
अमरईया कोइली कुहकय, मऊहा टपके बन।
पिंयर सरसों गंध होय मतौना मन॥
पिचकारी धर के दऊड़य, रंग डारय बिरिजराज।
उड़य रंग बौछार, सब भूलिन सरम अऊ लाज॥
मोर पिया परदेस बसे, बीच म नदिया, पहाड़।
मिलन के कोनो आस नहीं, बन, सागर, जंगल, झाड़॥
जमो रंग कांचा जग म, परेम के रंग हे पक्का।
लागय रंग चटख, नइ घुलय, बाकी रंग हे कांचा॥
गोंदा, मोंगरा, फुलवारी महकै झूमय मन के मंजूर।
अन्तस के नइये दूरी, तैं आबे, संगी जरूर॥
लाल, पिंयर, हरियर रंग, रंग ले तन अऊ मन।
होली के संदेस हे, इही जिनगी के धन।
केसर, चन्दन, तिलक, अबीर रंग देह लथपथ।
आंखी म डोरी लाल हे, इही होली के अरथ॥


आनंद तिवारी पौराणिक
श्रीराम टाकीज मार्ग महासमुन्द
Share
Published by
admin