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कविता

बसंत ऋतु

आगे बसंत ऋतु ह संगी ,
सबके मन ह डोलत हे।
पेड़ में बइठे कोयल ह,
कुहु कुहु कहिके बोलत हे।

बाग बगीचा हरियर दिखत,
सुघ्घर फूल ह फूलत हे।
पेड़ म बांधे हावय झूला,
लइका मन ह झूलत हे।

मउर धरे हे आमा में ,
महर महर ममहावत हे,
फूल फूले हे फूलवारी में
सबके मन ल भावत हे।

हवा चलत हे अब्बड़ संगी
डारा मन ह झूमत हे,
खेत खार ह हरियर दिखत,
लइका मन ह घूमत हे।

चना मटर के दिन आये हे,
लइका मन ह जावत हे।
खेत म नइहे कोनो जी,
चोरा चोरा के खावत हे।।

प्रिया देवांगन “प्रियू”
पंडरिया
जिला – कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
Priyadewangan1997@gmail.com